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चैत्र नवरात्रि व नवसंत्सवर 2077

चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा 25 मार्च बुधवार से विक्रम नवसंत्सवर 2077 हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होगी। इसी दिन से वासंतिक नवरात्र भी शुरू होगा। इस बार के नवसंवत्सर का नाम प्रमादी है। इस मास में कई बड़े त्यौहार और महत्वपूर्ण तिथि आते हैं। इसलिए इस मास का उपासना करने के लिए बड़ा महत्व बतलाया गया है।

देवी पुराण के अनुसार एक साल में कुल चार नवरात्र होते हैं- दो प्रत्यक्ष (चैत्र और आश्विन) और दो गुप्त (आषाढ़ और माघ)। साल के पहले माह चैत्र में पहली नवरात्रि, साल के चौथे माह यानि आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि, अश्विन माह में तीसरी नवरात्रि और ग्यारहवें महीने में चौथी नवरात्रि मनाते हैं। इन चारों नवरात्रों में आश्विन माह की “शारदीय नवरात्रि” और चैत्र माह की “चैत्र नवरात्रि” सबसे प्रमुख मानी जाती है। मनोकामना पूर्ति के लिए देवी दुर्गा की आराधना की जाती है।

चैत्र मास का धार्मिक महत्व:

शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र के दिन माँ दुर्गा का जन्म हुआ था और उनके कहने पर ही ब्रह्मा ने पृथ्वी का निर्माण किया था। चैत्र नवरात्र के पहले दिन ही सूर्य की किरण पृथ्वी पर पड़ी थी। इसलिए हिन्दुओं नया वर्ष इस दिन से शुरू होता है। 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों का उदय भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में अथाह जलराशि में से मनु की नाव को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया था। प्रलयकाल के समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि का प्रारंभ हुआ था।इस दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन पांडव राजवंश के युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था। इस मास में देवी देवताओं की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस मास में गणगौर का पर्व भी मनाया जाएगा। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से नववर्ष मनाया जाता है।

नवसंत्सवर 2077

ज्योतिष के अनुसार इस नवरात्र पर क्या है ग्रहों का संयोग:

चैत्र मास को यह नाम चित्रा नक्षत्र की वजह से मिला है। इस बार नव संवत्सर पर बुध का प्रभाव रहेगा। नवरात्रि बुधवार से शुरू होगी अगले सप्ताह गुरुवार को खत्म होगी। प्रमादी संवत् के राजा बुध और मंत्री चंद्र होंगे। मान्यता है कि चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि जिस दिन होती है उसी दिन जो वार होता है वही संवत्सर का राजा माना जाता है। 25 मार्च से नवरात्रि शुरू होगी और 30 मार्च को देव गुरु बृहस्पति का गोचर मकर राशि में होगा। गुरु 30 मार्च 2020 को मार्गी होकर शनि की राशि मकर में गोचर करेंगे और 30 जून 2020 को पुन: धनु राशि में लौट आएँगे मकर राशि में मंगल और शनि पहले से विराजमान है तो इस तरह मकर राशि में मंगल, गुरु और शनि का योग बनेगा।

खरमास के कारण नहीं बजेगी शहनाई:

14 मार्च से खरमास शुरू हो गया है। इसलिए 13 अप्रैल तक मांगलिक कार्य स्थगित है खरमास में सूर्य का गुरु की राशि मीन में गोचर होने से पूजा-पाठ, अनुष्ठान के लिए उपयोगी होगा। साथ ही स्नान, दान और पितरों को श्राद्ध भी किया जा सकता है।

प्रथम (प्रतिपदा) नवरात्र हेतु पंचांग:

दिनांक- 25-03-2020, दिन- बुधवार, तिथि- प्रतिपदा, नक्षत्र- रेवती, योग- ब्रह्मा, करण भव- बालव, पक्ष- शुक्ल, मास- चैत्र, लग्न- मिथुन (द्विस्वभाव), लग्न समय- 10.49 से 13.15, राहुकाल- 12.27 से 1:59 pm तक, विक्रम संवत्- 2077

चैत्र नवरात्रि 2020 तिथि व घटस्थापना मुहूर्त:

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। घटस्थापना को कलश स्थापना भी कहते है। चैत्र नवरात्रि का पर्व 25 मार्च, बुधवार से 2 अप्रैल, गुरुवार तक मनाया जा रहा है। प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 24 मार्च मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से शुरू हो जायेगा। मीन लग्न सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 17 मिनट तक रहेगा बुधवार को सुबह 6.10 बजे से सुबह 10.20 बजे तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा। इसकी कुल अवधि 4 घंटे 9 मिनट की है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा मीन राशि द्विस्वभाव राशि है अत: इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन देवी के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है।
नवरात्रि के नौ दिन इन नौ देवियों की पूजा और अर्चना की जाती है। पहले दिन देवी शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी, नौवीं सिद्धिदात्री।

क्यों करते हैं कलश स्थापना?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं। कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं।

पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। नवरात्रि में जौ बोने के पीछे प्रमुख कारण यह माना जाता है कि जौ यानि अन्न ब्रह्म स्वरुप है, और हमें अन्न का सम्मान करना चाहिए। इसके अलावा धार्मिक मान्यता के अनुसार धरती पर सबसे पहली फसल जौ उगाई गई थी। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का सोलह श्रृंगार कुमकुम या बिंदी, सिंदूर, काजल, मेहँदी, गजरा, लाल रंग का जोड़ा, मांगटीका, नथ, कान के झुमके, मंगलसूत्र, बाजूबंद, चूड़ियां, अंगूठी, कमरबंद बिछुआ,पायल आभूषण और सुहाग से करते हैं।

पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है। गाय का घी शक़्कर, दूध व दूध की मिठाई, मालपुए, केला शहद, गुड़, नारियल, तिल अलग-अलग वस्तुओं का भोग लगाया जाता है।

माता में श्रद्धा और मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्रि में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं। छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता है और वे ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती हैं, इसीलिए नवरात्रि में इनकी विशेष पूजा करते हैं।

उम्र के अनुसार कन्याओं को कौन सी देवी का स्वरूप मानते हैं?

चार साल की कन्या – कल्याणी,
पांच साल की कन्या – रोहिणी,
छ: साल की कन्या – कालिका,
सात साल की कन्या – चण्डिका,
आठ साल की कन्या – शांभवी,
नौ साल की कन्या – दुर्गा
दस साल की कन्या – सुभद्रा

भगवान शिव ने माँ दुर्गा की सेवा के लिए हर शक्तिपीठ के साथ एक-एक भैरव को रखा हुआ है, इसलिए देवी के साथ इनकी पूजा भी ज़रूरी होती है। तभी कन्या पूजन में भैरव के रूप में एक बालक को भी रखते हैं।
नवरात्रि का पहला दिन यदि रविवार या सोमवार हो तो मां दुर्गा “हाथी” पर सवार होकर आती हैं।यदि शनिवार और मंगलवार से नवरात्रि की शुरुआत हो तो माता “घोड़े” पर सवार होकर आती हैं। वहीं गुरुवार और शुक्रवार का दिन नवरात्रि का पहला दिन हो तो माता की सवारी “पालकी” होती है और अगर नवरात्रि बुधवार से शुरू हो तो मां दुर्गा “नाव” में सवार होकर आती हैं।

नवरात्रों पूजा से करे अपने ग्रहों को अनुकूल:

चैत्र नवरात्रि के दौरान अखंड दीपक मंदिर के अग्नि कोण दिशा में प्रज्जवलित करें। शुद्ध घी में थोड़ा कपूर डालकर दीप जलाएं। ऐसा करने से हमारे शुक्र ग्रह का शोधन होकर, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। अखंड दीपक ना जला पाएँ तो पूरे चैत्र नवरात्रि सुबह व शाम दीपक अवश्य जलाएं।किसी भी मंदिर में बल्ब का दान करें। इससे आपके राहु ग्रह शुद्ध होंगे और जीवन में आ रही विपरीत परिस्थितियों से विजय प्राप्त होगी, साथ ही दुर्घटना आदि से बचाव होगा ।नवरात्रि पूजन के समय मंदिरों में स्त्रियां हमेशा बाल बांधकर जाएं। बिखरे बाल शनि ग्रह के दुष्प्रभाव को आमंत्रित करते हैं, जो जीवन को कष्टदायक बनाते हैं। इसलिए ऐसा करने से बचें।

इतने क्रिया कर्म ना भी कर पाएँ तो पूरे नवरात्र शुद्ध मन से संकल्प करें की किसी का दिल ना दुखाएँ। किसी गरीब का अपमान ना करें, यही सबसे बड़ी पूजा है।


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