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कल तभी है जब जल है

यह एक आश्चर्यजनक सत्य है की भारत में वर्षा के मौसम में एक क्षेत्र में बाढ़ की स्तिथि होती है जबकि दूसरे क्षेत्रों में भयंकर सूखा होता है। पर्याप्त वर्षा के बावजूद लोग जल की एक-एक बूँद के लिए तरसते हैं तथा कई जगह संघर्ष की स्तिथि भी पैदा हो जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है की हमने प्रकृति प्रद्दत अनमोल वर्षा जल का संचय नहीं किया और वह व्यर्थ में बहकर दूषित जल बन गया।

वहीं दूसरी ओर मानवीय लालसा के परिणामस्वरूप भूजल का अंधाधुंध दोहन किया गया परन्तु धरती से निकाले गए इस जल को वापस धरती को नहीं लौटाया। इससे भू-जलस्तर गिरा तथा भीषण जलसंकट पैदा हुआ। एक अनुमान के अनुसार विश्व के लगभग 1.4 अरब लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। प्रकृति ने अनमोल जीवनदायी सम्पदा “जल” को हमें एक चक्र के रूप में दिया है। इस जल चक्र का निरंतर गतिमान रहना अनिवार्य है।

अतः प्रकृति के खजाने से जो जल हमने लिया है उसे वापस भी हमें ही लौटना होगा, क्योंकि हम स्वयं जल नहीं बना सकते। अतः हमारा दायित्व है की हम वर्षाजल का संरक्षण करें तथा प्राकृतिक जलस्त्रोतों को प्रदुषण से बचाएँ और किसी भी कीमत पर पानी को बर्बाद ना होने दें।


हमारे देश में 12 माह नदियां कल- कल बहती थीं और पीने का पानी तो सहज ही हर कहीं उपलब्ध हो जाता था। आज दृश्य तेजी से बदलता जा रहा है। अब पेयजल के लिए गर्मी के दिनों में तो मारामारी मच जाती है। सोचें की यह स्तिथि रही तो आने वाला हमारा ‘कल’ कितना भयावह होगा?
– श्याम पलोड़, उज्जैन

वर्षाजल संचय सबसे कारगर उपाय:

जलसंकट को लेकर हमें हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ जाना चाहिए। इससे निपटना ज़रूरी है तभी हमारा आज और कल (वर्तमान एवं भविष्य) सुरक्षित रहेगा। इसके लिए कई वैज्ञानिक तरीके हैं जिनमे सबसे कारगर तरीका है- रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, अर्थात वर्षाजल का संचय व संग्रहण करके इसका समुचित प्रबंधन एवं आवश्यकतानुसार आपूर्ति।

दुसरे शब्दों में हमने जो प्रकृति से लिया है, वह प्रकृति को ही वापस लौटाना भी है। यदि वर्षाजल के संग्रहण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल जलसंकट से झूझते शहर अपनी तत्कालीन जरूरतों के लिए पानी जुटा पाएंगे बल्कि इससे भूजल भी रिचार्ज हो सकेगा। अतः शहरों के जल प्रबंधन में वर्षाजल की हर बूँद को सहेजकर रखना ज़रूरी है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही जल संचय की परंपरा थी तथा वर्षाजल का संग्रहण करने के लिए लोग प्रयास करते थे।

इसलिए कुँए, बावड़ी, तालाब, नदियां आदि पानी से भरे रहते थे। इससे भूजलस्तर भी ऊपर हो जाता था तथा सभी जलस्रोत्र रिचार्ज हो जाते थे। परन्तु मानवीय उपेक्षा, लापरवाही, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के कारण ये जलस्रोत्र मृत प्रायः हो गए ।

दूसरे देश हमसे अधिक सजक:

वर्षाजल संरक्षण(रेन वॉटर हार्वेस्टिंग) का इतिहास काफी पुराना है। विश्व विरासत में सम्मिलित जॉर्डन के पेट्रा में की गयी पुरातात्विक खुदाई में ईसा पूर्व सातवीं सदी में बनाये गए ऐसे हौज निकले जिनका इस्तेमाल वर्षाजल को एकत्र करने में किया जाता था। इसी प्रकार श्रीलंका स्थित सिजिरिया में बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए रॉक कैचमेंट सिस्टम बना हुआ था। यह सिस्टम ईसा पूर्व 425 में बनाया गया था। इसे भी विश्व विरासत में सम्मिलित किया गया है।

भारत में भी राजस्थान प्रदेश के थार क्षेत्र में 4500 वर्ष पूर्व बारिश के पानी को एकत्र करने के प्रमाण हड़प्पा में की गई खुदाई के दौरान पाए गए। इज़राइल, सिंगापुर, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर काफी समय से काम हो रहा है। अब समय आ चुका है जबकि भारत में भी इस तकनीक को अनिवार्यतः लागू करने के लिए जन-जागरण को प्रोत्साहन दिया जाए। यह अत्यंत आसान तकनीक है।

इसके अंतर्गत वर्षाजल को व्यर्थ बहने से रोक कर इसे नालियों/ पाइप लाइनों के माध्यम से इस प्रकार संगृहीत किया जाता है ताकि इसका उपयोग फिर से किया जा सके। भूजल भंडारों में वर्षाजल द्वारा भण्डारण बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान जलसंकट में यह ना केवल ज़रूरी है, बल्कि बेहद सस्ता व फायदेमंद भी है। इससे हमारे जल भंडार भर जायेंगे तथा जलस्तर भी ऊपर पहुँच जाएगा।

कहाँ अधिक उपयोगी है वॉटर हार्वेस्टिंग:

सामान्यतया वर्षाजल संग्रहण कहीं भी किया जा सकता है, परन्तु इसके लिए वे स्थल सर्वथा उपयुक्त होते हैं जहाँ पर जल का बहाव तेज़ होता है और जल शीघ्रता से बह जाता है। इस प्रकार जल संग्रहण के लिए सर्वथा उपयुक्त होते हैं:
1 कम भूजल वाले स्थल।
2 दूषित भूजल वाले स्थल।
3 पर्वतीय/विषम जल वाले स्थल।
4 सूखा या बाढ़प्रभावित स्थल।
5 प्रदूषित जल वाले स्थल।
6 कम जनसंख्या घनत्व वाले स्थल।
7 अधिक खनिज व खारा पानी वाले स्थल।
8 महंगे पानी व विद्युत् वाले स्थल आदि।

सामान्यतः वर्षाजल शुद्ध जल होता है तथा इसका उपयोग सभी कार्यों के लिए किया जा सकता है। तथापि बर्तनों की साफ़-सफाई, नहान व कपड़ा धोना, शौच आदि कार्य, सिंचाई के लिए, मवेशियों के पीने, नहाने आदि के लिए एवं औद्योगिक उपयोग आदि में यह सर्वथा उपयुक्त हैं।

कैसे करें रेन वॉटर हार्वेस्टिंग:

सीधे ज़मीन के अंदर:
इस विधि के अंतर्गत वर्षाजल को एक गड्ढे के माध्यम से सीधे भूजल भंडार में उतार दिया जाता है।
खाई बनाकर रिचार्जिंग:
इस विधि से बड़े संसथान के परिसरों में बाउंड्रीवॉल के साथ-साथ बड़ी-बड़ी नालियां (रिचार्ज ट्रेंच) बनाकर पानी को जमीन के भीतर उतारा जाता है। यह पानी ज़मीन में नीचे चला जाता है और भूजल स्तर में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
कुओं में पानी उतारना:
वर्षाजल को मकानों के ऊपर की छतों से पाइप द्वारा घर के या पास के किसी कुँए में उतारा जाता है। इस ढंग से ना केवल कुआ रिचार्ज होता है, बल्कि कुए से पानी ज़मीन के अंदर के भूजलस्तर को ऊपर उठाता है।
ट्यूबवेल में पानी उतारना:
भवनों की छत पर बरसाती पानी को संचित करके एक पाइप के माध्यम से सीधे ट्यूबवेल में उतारा जाता है। इसमें छत से ट्यूबवेल को जोड़ने वाले पाइप के बीच फ़िल्टर लगाना आवश्यक हो जाता है। इससे ट्यूबवेल का जल हमेशा एक समान बना रहता है।
टैंक में जमा करना:
भूजल भंडार को रिचार्ज करने के अलावा बरसाती पानी को टैंक में जमा करके रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। इस विधि से बरसाती पानी का लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है। एक हज़ार वर्गफीट की छत वाले छोटे मकानों के लिए यह तरीका बहुत ही उपयुक्त है।


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Sri Maheshwari Times

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