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कैसे सुखद हो हमारी जीवन संध्या

जीवन की संध्या अर्थात जीवन का उत्तरार्ध या कहें वृद्धावस्था का नाम आते ही हर कोई सिरह उठता है। कारण है, इसका अत्यंत भयावह रूप में अभी तक अभिशाप की तरह प्रचारित होना। जबकि देखा जाए तो वृद्धावस्था अभिशाप नहीं बल्कि वरदान है। यह हमारे हाथ में है कि हम इसे क्या बनाते हैं? आईये जाने कैसे सुखद हो हमारी जीवन संध्या?

परिवार ही हमारे प्राणों का आधार है। प्रत्येक मानव स्थायी सुख चाहता है किंतु यह शाश्वत सत्य तभी संभव है जब हम जीवन जीने की कला को जान लें। जीवन जीना और जीवन को जानना दोनों अलग-अलग बातें हैं। जीवन को जीते तो सभी हैं पर जानते विरले ही हैं।

समय के साथ-साथ मानव की जरूरतें बदल जाती हैं। वर्तमान दौर की भागमभाग भरी जीवन शैली में अधिकांश पारिवारिक सदस्यों में समय का अभाव होता है। कभी पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में, तो कभी नई पीढ़ी और हमारे आदरणीय के विचारों में अंतर होने से बुजुर्ग वर्ग अपने आप को एकांकी पाते हैं।

हमारे बुजुर्ग समुदाय को लगता है जीवन का अंतिम पड़ाव अभिशाप है। पर वास्तविकता में देखा जाए तो जीवन का यह उत्तरार्ध अभिशाप नहीं वरदान है।


बदलाव को करें स्वीकार:

बाल्यावस्था का काल जिस तरह चिंतामुक्त होता है, उसी तरह जीवन का उत्तरार्ध भी अगर दृढ़ इच्छाशक्ति अपना ली जाए तो तनाव रहित हो सकता है। आयु के अनुरूप मानव की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। समय गतिवान है, कल तक जो सबकी जरूरतें थीं, जिनके निर्णयों पर ही सारे कार्य होते थे। हो सकता है, आज स्थिति में बदलाव आया हो।

इस बदलाव को हमें सहर्ष स्वीकारना होगा। यह सुख के स्रोत का सोपान है। शिशु को बाल्यावस्था में केवल मां का सान्निध्य सुहाता है। धीरे-धीरे जीवन में परिवार, मित्र, रिश्ते, हमसफर यह सब जुड़ते हैं और मानव के अस्तित्व की अहमियत विस्तारित होती जाती हैं। प्रसारण और आकुंचन का पाठ हमें घोंघा से भली प्रकार सीखने को मिलता है।

वह आवश्यकता पढ़ने पर ही प्रसारित होता अन्यथा अपने आपको सिमट लेता है। जीवन के इस सत्य को हम भी अपना ले तो काफी समस्याओं पर विराम लग जाएगा। जीवन के उत्तरार्ध में हम जितना हो सके दायित्व निर्वहन का बोझ हल्का करते हुए चलेंगे तो जीवन पथ की राह का आनंद ले पाएंगे।

साथ ही अधिक अपेक्षाओं की उम्मीद रखना दुःख का मूल कारण है। परिवर्तन संसार का नियम है। यह जानते हुए भी हमारी अपेक्षा रखने की परंपरा पर विराम नहीं लग पा रहा।


अधूरे सपनों को लगाएं पंख:

जीवन की आपाधापी में चलते हुए समय के अभाव से बहुत कुछ पीछे छूट जाता है। युवावस्था में कॅरियर, फिर विवाह और दायित्वों के बोझ तले हम इतना दब जाते हैं कि चाहकर भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहते हैं।

यह अवस्था अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए ईश्वर द्वारा मिली हुई सुनहरी सौगात है। इस अवस्था में समय अभाव की दिक्कत ना रहने से हम स्वयं के स्वास्थ्य पर व्यायाम, सुबह की सैर, बागवानी, अध्यात्मिक क्रियाकलापों में सहभागी होते हेतु पर्याप्त समय आसानी से निकल पाते हैं।

अपने हम उम्र साथियों के साथ समय व्यतीत करने से तरोताजा भी महसूस होता है और एकांकीता से निजात पाई जा सकती है। जब तक स्वास्थ्स सृदृढ़ हो स्वालंबी रहे अपने कार्य स्वयं करने से सेहत भी अच्छी रहेगी साथ ही परिवार को सहयोग भी मिलेगा।

परिवार में छोटे-छोटे बच्चों के साथ समय व्यतीत करने से आपके अनुभवों द्वारा जीवन का पाठ सीखने से उनकी राह भी आसान होगी। उन्हें बोधात्मक कहानियां सुनाए, उनके भीतर परोपकार से बीज बोए।

साथ ही इस युग के बच्चों से तकनीकी ज्ञान सिखा जा सकता है जिससे घर बैठे अनेक मनोरंजन के कार्यक्रम उपलब्ध हो सकते हैं। बच्चे माता-पिता से अधिक दादा-दादी के करीब होते हैं।


अत्यधिक हस्तक्षेप व सलाह नहीं:

21वीं सदी में जन-मन में जो स्वतंत्रता की लहर दौड़ रही है, हर कोई इसमें शामिल हैं, हर व्यक्ति की अपनी योजनाएं तय होती हैं और हर एक को अपनी सोच सही लगती है। किसी को भी अपने निजी कार्यों में हस्तक्षेप आज के दौर में पसंद नहीं आता। पूछने पर अत्याधिक जरूरत हो तभी सलाह दी जाए तो बेहतर होगा जिस से हमारा भी आदर बना रहता है।

भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमान में हर एक की जिंदगी में अलग-अलग पड़ाव आते हैं। जरूरी नहीं जो संघर्ष आपने किया हो वह आने वाली पीढ़ी को भी करना पड़े इसलिए यह चर्चायें जितनी कम हो उतना बेहतर होगा। हर आयु वर्ग से कदमताल मिलाकर चले तो पारिवारिक सदस्य स्वयंम हर जगह आपकी उपस्थिति चाहेंगे।

सुखद हो जीवन संध्या

संवादों का आदान-प्रदान जब जारी रहेगा तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को टॉनिक मिलते रहेगा जो स्वास्थवर्धक होगा। अपना वर्चस्व रखने से अच्छा होगा मित्रवत व्यवहार रखे जिस से परिवार से आपस संबंधों में पारदर्शिता रहेगी झूठ को स्थान नहीं मिलेगा और दूरदृष्टि से देखा जाए तो रिश्तों की प्रगाढ़ता ही जीवन की अनमोल पूंजी है।

इसलिए परिवार को स्नेहरूपी से भिगोते रहिये फिर आपके बगिया के पुष्पों की महत आपके उत्तरार्द्ध को सुगंधित करते रहेगी।

राजश्री राठी, अकोला

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Sri Maheshwari Times

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