Readers Column

सकारात्मक सोच सफलता की पहली सीढ़ी

वर्तमान में हर इंसान अपनी तरफ से मेहनत और पूरी कोशिश करता है कि वह सबसे आगे रहकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए आसमान की बुलंदियों तक पहुंचे। कोई भी इंसान जिंदगी की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता। अगर सभी लोग सफल हो गए या सभी लोग पहले, दूसरे या तीसरे नंबर पर पहुँच गए तो सफलता की ख़ुशी का महत्त्व खत्म हो जाएगा या कह सकते हैं सफलता में ख़ुशी कम हो जाएगी। सकारात्मक सोच है सफलता की पहली सीढ़ी।

सफल या असफल होने के कारण

लोग भेड़चाल की तरह एक दूसरे की नकल करने की कोशिश करते हैं। ज़्यादातर लोग नकारात्मक सोच, विचार, नीतियों को अपनाने की कोशिश करते हैं अर्थात सकारात्मक सोच नहीं रखते। खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश कम और प्रतिस्पर्धा को पीछे करने की कोशिश ज़्यादा करते रहते हैं।

अगर हमारे आसपास की रोज़मर्रा जिंदगी को समझने, पढ़ने की कोशिश करें व कुदरत, प्रकृति का अध्ययन कर अपनी सोच व नीति बनाए तो सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

हम सुनते हैं कि आजकल एक जगह बैठकर कंप्यूटर, टेक्नोलॉजी के माध्यम से लक्ष्य को पहचान कर गाइडेड मिसाइल व राकेट छोड़े जाते हैं। चालकरहित कार बाज़ारों में आ रही हैं। हज़ारों साल पहले आवाज़ सुनकर लक्ष्यभेदी बाण सफलतापूर्वक निशाने पर छोड़ा जाता था। अर्जुन ने नीचे पानी में देखकर सफलतापूर्वक मछली की आँखें भेदी थी। इन सबके पीछे एकाग्रता, मन की शक्ति व सकारात्मक सोच ज़रूरी है।


सफलता की पहली सीढ़ी

हम सड़क, हाईवे पर चलते हैं तो अपनी लाईन क्रॉस करने, कुछ जगह ओवरटेक करने पर हमारा चालान कटता है। हमने किसी को टक्कर मारी तो कोर्ट में जाकर हमें सजा, जुर्माना भरना पड़ता है। अब धीरे-धीरे ट्रैफिक रूम में बैठे बैठे गलत गाड़ी चलाने पर फाइन, चालान आपके घर पहुँच जाएगा। अगर आपके लगातार चालान हुए तो नेगेटिव मार्किंग के साथ आपका लाइसेंस कैंसिल हो जाएगा।

आज हम कहते हैं कि साइंस ने बहुत तरक्की कर ली, लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमारी कुदरत, प्रकृति में यह सब नियम हज़ारों, लाखों साल पहले बनाए हुए हैं और बिना किसी कंप्यूटर हम पर हमारे हर काम, व्यवहार पर नज़र रखी जाती है व अदृश्य रूप से हमारा स्कोर व मार्किंग होती रहती है।

अज्ञातवास के तरह साल पांडवों ने कौरवों के बुरा सोचने या खुद के बारे में नेगेटिव बातें नहीं सोची बल्कि उस समय का सदुपयोग करके अर्जुन ने शिवजी व शक्ति की तपस्या करके अनेक दुर्लभ अस्त्र-शास्त्र प्राप्त किए।


सफलता की पहली सीढ़ी

हमें सिर्फ अपनी तरक्की पर ध्यान देना चाहिए, दूसरों को कमज़ोर करने, टक्कर मारने, दूसरों पर टिप्पणी करने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से हमारी ऊर्जा तो व्यर्थ होती ही है साथ ही साथ कुदरत नेगेटिव मार्किंग करके हमारा चालान भी काटती है।

रावण अत्यधिक शक्तिशाली था परन्तु जब शत्रुतावश बाली से युद्ध करने आया तो बाली ने उसे अपने बगल में दबा लिया। यह आज हम सब पर भी लागू होता है। हम जब दूसरों पर टिप्पणी कर बुरा सोचते हैं तो हम अपनी आधी शक्ति का दुरूपयोग करते हैं।


हमें अपनी शक्ति व सामर्थ्य को पहचान कर व लक्ष्य बनाकर, दूसरों पर टिप्पणी ना करते हुए अपनी तरक्की पर ध्यान देना चाहिए। आज नहीं तो कल सफलता आपको ज़रूर मिलेगी।

शरद गोपीदासजी बागड़ी, नागपुर


Via
Sri Maheshwari Times

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