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आदतें नस्ल का पता देती हैं

किसी इंसान के पास कितनी धन-दौलत, रुतबा, इल्म, बाहुबल है ये सब बाहरी चरित्र हैं। इंसान की असलियत, उसके व्यवहार, उसकी नीयत से होती हैं। आदतें नस्ल का पता देती हैं

एक बादशाह के दरबार में एक अजनबी नौकरी के लिए हाज़िर हुआ। क़ाबलियत पूछी गई, कहा, ‘सियासी हूँ।’ बादशाह के पास राजदरबारियों की भरमार थी, उसे खास ‘घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज’ बना लिया।

चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के बारे में पूछा, उसने कहा, ‘नस्ली नहीं हैं।’ बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से घोड़े की जानकारी वालो को बुला कर जांच कराई.. उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पीकर उसके साथ पला है।

बादशाह ने अपने सियासी को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं?’ ‘‘उसने कहा ‘जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घांस मुंह में लेकर सर उठा लेता है।”

बादशाह उसकी परख से बहुत खुश हुआ, उसने सियासी के घर अनाज, घी, भुने और अच्छा मांस बतौर इनाम भिजवाया और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।

चंद दिनों बाद, बादशाह ने उससे बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, ‘तौर तरीके तो रानी जैसे हैं, लेकिन राजकुमारी नहीं हैं।’ बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला बताया, सास ने कहा हक़ीक़त ये हैं कि आपके पिता ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हमने आपकी बादशाहत से करीबी रिश्ते क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।’ बादशाह ने अपने सियासी से पूछा ‘तुम को कैसे जानकारी हुई?’

उसने कहा, ‘उसका नौकरोंं के साथ सुलूक मूर्खों से भी बदतर हैं। एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका एक शिष्टाचार होता हैं, जो रानी में बिल्कुल नहीं। बादशाह फिर उसकी परख से खुश हुआ और बहुत से अनाज, भेड़-बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार में शामिल कर लिया।

कुछ वक्त गुज़रा, सियासी को बुलाया, अपने बारे में जानकारी चाही। सियासी ने कहा जान की खैर हो तो बताऊ। बादशाह ने वादा किया। उसने कहा, न तो आप बादशाह के पुत्र हो न आपका चलन बादशाहों वाला है। बादशाह को ताव आया, मगर जान की खैर दे चुका था, सीधा अपनी माँ के महल पहुंचा।

माँ ने कहा, ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हें लेकर हमने पाला। बादशाह ने सियासी को बुलाया और पूछा बता, तुझे कैसे पता हुआ? उसने कहा बादशाह जब किसी को इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं…

लेकिन आप भेड़-बकरियां, खाने पीने की चीजें देते हैं…ये चलन बादशाह के बेटे का नहीं, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।’

विवेक कुमार चौरसिया


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Sri Maheshwari Times

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