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अपनी हार को अपना शस्त्र बनाइये

जिंदगी की राह तो जिंदगी के प्रारंभिक काल से ही शुरु हो जाती है। एक राह से जिंदगी शुरू होती है बीच में हम राह बदलते रहते हैं, कुछ राहें रास आती है, कुछ पर ह्रास होती है परंतु सही राह पर संभल-संभल कर चलते हुए ही व्यक्ति उस मुकाम पर पहुंचता है, जहां वह समाज में अपनी एक पहचान बना लेता है। एक परिचित नाम बन पाता है। यह राह लंबी के साथ आसान नहीं होती। इस राह पर अनेकों बार व्यक्ति फिसलता है, गिरता है और जो गिरकर उठ जाता है वही दोगुनी गति से दौड़ का हिस्सा बन जाता है और पहचान बना पाता है। पहचान पाने की इच्छा हर व्यक्ति की होती है, परन्तु मात्र इच्छा करने से कोई चाहत पूरी नहीं होती है, चाह के लिये उचित राह का चयन जरूरी होता है, उचित राह एक प्रारंभ है, प्रारब्ध नहीं। प्रतिभा और परिश्रम से ही प्रारब्ध की दिशा भी तय होती है। इन सबका उचित संयोग ही नाम और पहचान देगा। अपनी हार को अपना शस्त्र बनाइये।


उचित अध्ययन

सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिये जरूरी है कि जिस दिशा में आप कार्य करना चाहते हैं उस विषय का गहन अध्ययन करें। बचपन में जब बच्चे स्कूल जाते हैं तब से उनकी रूचि का पता करें। आजकल एप्टीट्यूट टेस्ट होते हैं जो बच्चे की रूचियों के आधार पर भविष्य की संभावनाएँ बताते हैं। उसकी जहाँ रूचि है, वही दिशा पक़ड़ायें परंतु जरूरी है उस दिशा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करें।

यदि आप डॉक्टर बनना चाहते हैं तो डॉक्टरी की पढ़ाई बिना डॉक्टर नहीं बन सकते। व्यापारी समाज के लोग कहेंगे, हमारे बाप-दादाओं ने कौन सी पढ़ाई की थी फिर भी व्यवसाय को किस ऊँचाई पर पहुँचा दिया।

लेकिन हम ये न भूलें कि उन्हें उस समय उपलब्ध व्यवहारिक शिक्षा अपने परिवार में बचपन से प्राप्त हुई। अब आपके पास अधिक मौका है आप व्यावहारिक और किताबी दोनों ज्ञान एकत्र करें जिससे सफलता तीव्र गति से प्राप्त होगी।


सकारात्मक सोच

अनुभव और ज्ञान अर्जित कर जब आप कार्य क्षेत्र में उतरते हैं तो इतने मात्र से ही राह जिंदगी की सहज, सरल नहीं हो जाती। किसी भी व्यक्ति की जीवनी उठाकर देख लीजिये उन्हें अनेकों बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जिंदगी की राह में सफलता की दौड़ में सबको ही दौड़ना पड़ता है और कोई भी बिना गिरे, बिना क्षतिग्रस्त हुए, बिना हारे सफल नहीं रहा।

यही परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी है और यहां से ही सफलता की राह शुरू होती है। शरीर की हार संभव है, परंतु हार मन की नहीं बननी चाहिए। इस हार से मन को और मजबूत बनाना चाहिये। स्वयं को समझें, हार सबके जीवन में आई परंतु हारे नहीं। नये सिरे से शुरुआत कीजिये। अपनी हार को अपना शस्त्र बनाइये।

हार की वजह ढूंढिये, वजह का तोड़ निकालिये। नई स्फूर्ति से फिर चल दीजिये राह पर। सजग हो तेजी से कदम उठाइये, दूसरे राहगिरों से चौकन्ने रहिये। आप पायेंगे जिंदगी की राह पर अब सफलता आपका सम्मान बढ़ाने आपके साथ चलने लगी है। राह जिंदगी की सोच-सकारात्मक सोच के सहारे संवर जायेगी।


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