Jeevan Prabandhan

सेवा ऐसी हो कि सत्य भी बना रहे

अपने और परिवार के लिए तो सभी कमाते हैं, कुछ कमाई ऐसी भी होनी चाहिए जो सेवा के रूप में बदल सके। आजकल सेवा भी हथियार बना ली गई है। धंधा बना ली गई है। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन अब शस्त्र के रूप में सेवा और खतरनाक होती जा रही है। जो दुनियादारी के सेवक हैं, वे अक्सर ऐसे ही काम करते हैं।

कोई सेवक कहता है, ‘मैं हिन्दू धर्म को संगठित करना चाहता हूँ’ कोई कह रहा है, ‘मैं इस्लाम की सेवा करना चाहता हूँ’, कोई ईसा की सेवा में घूम रहा है। नेता कह रहे हैं हम देश की सेवा कर रहें हैं। यह सब समाजसेवा तो हो ही सकती है लेकिन इससे भीतर परमात्मा पैदा नहीं होता।

जब चित्त में ईश्वर या कोई परम शक्ति होती है तो इसका रूप बदल जाता है। हिन्दू धर्म के साधु-संतो की, इस्लाम के ठेकेदारों की, ईसाइयत के पादरियों की और हमारे राष्ट्र के नेताओं की सेवा के ऐसे परिणाम नहीं आते जैसे आज धर्म के नाम पर मिल रहे हैं। इसलिए इसके ईश्वर वाले स्वरुप को समझना होगा। यह अभी चित्त के आनंद से वंचित है।


परमात्मा का एक स्वरुप है सत्य। ईमानदारी से देखा जाए तो चाहे धर्म हो या राजधर्म, जो लोग सेवा का दावा कर रहे हैं उनके भीतर से सत्य गायब है। सेवा ऐसी होना चाहिए कि सत्य भी बना रहे।

धर्म का चोला ओढ़ लें यहाँ तक तो ठीक है, अब तो लोगों ने भगवान का ही चोला ओढ़ लिया है। वेश के भीतर से जब विचार समाज में फिंकता है तो लोग सिर्फ झेलने का काम करते हैं, वे यह समझ नहीं पाते कि सत्य कहाँ है।

इसलिए दूसरे कह रहे हैं उनसे सावधान रहें और हमें जो करना है उसके प्रति ईमानदार रहें। लगातार प्रयास करें कि भीतर परमात्मा जागे और तब बाहर हमारे हाथ से कुछ सेवा के कर्म हों। परमात्मा का एक स्वरुप है: सत्य।

सेवा के इश्वर वाले स्वरुप को समझना होगा। यह ऐसी होनी चाहिए कि सत्य भी बना रहे। दूसरे जो कर रहे हैं उनसे सावधान रहते हुए हमें जो करना है उसके प्रति ईमानदार रहें।

पं विजयशंकर मेहता
(जीवन प्रबंधन गुरु)


Via
Sri Maheshwari Times

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