रिटेल व्यवसाय के ‘‘किंग’’- राधा किशन दम्मानी
राधा किशन दम्मानी – वर्तमान में रिटेल चेन मॉल ‘‘डी मार्ट’’ से देश का शायद ही कोई क्षेत्र अपरिचित हो। कारण है कि यह देश के कोने-कोने में स्थित अपनी शाखाओं द्वारा उत्कृष्ट व विश्वसनीय सेवा दे रहा है। यही कारण है कि भारत में डी मार्ट की राष्ट्र स्तर पर तीसरा स्थान है। आपको यह जानकार हर्ष होगा कि देश को रिटेल व्यवसाय डीमार्ट की सौगात देने वाले भी माहेश्वरी हैं,
मिस्टर व्हाईट के नाम से ख्यात व्यवसायी राधाकिशन दम्मानी, जो व्यवसाय जगत में देश भर में सबसे सम्पन्न व्यक्तियों में 12 वाँ स्थान रखते हैं। श्री माहेश्वरी टाईम्स श्री दम्मानी को उनकी सफल व्यावसायिक यात्रा के लिये ‘‘माहेश्वरी ऑफ द ईयर अवार्ड’’ प्रदान करते हुए गौरवान्वित महसूस करती है।
‘‘डी मार्ट’’ वर्तमान में देश की एक ऐसी विशाल रिटेल व्यवसाय चेन है, जो अपनी सैकड़ों शाखाओं तथा लाखों कर्मचारियों के साथ देश के कोने-कोने में अपनी सेवा देते हुए हर देशवासी की जुबान पर हरदम रहने वाला एक नाम बन चुकी है। यह कम्पनी वर्तमान में देश की तीसरी शीर्ष रिटेल व्यवसाय करने वाली कम्पनी के रूप में आईपीओ में रजिस्टर्ड है।
इस उपलब्धि के बाद एक सर्वेक्षण के अनुसार श्री दम्मानी देश के शीर्ष 20 भारतीय अरबपतियों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। पत्रिका ‘‘फोर्बस’’ के अनुसार श्री दम्मानी का देश के शीर्ष सम्पन्न व्यवसायियों में 12 वाँ स्थान है। श्री दम्मानी दो बार मुम्बई के सबसे बड़े ‘टेक्सपेयर’ का सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं। इतना ही नहीं रिटेल व्यवसाय के साथ-साथ श्री दम्मानी एक ऐसे देश के शीर्ष पूंजी निवेशक भी हैं, जो कई प्रमुख कम्पनियों को आर्थिक सम्बल प्रदान कर रहे हैं।
एक दशक से अधिक समय तक काजल की कोठरी माने जाने वाले शेयर व्यवसाय से सम्बद्ध रहकर अकुत सम्पत्ति अर्जित करने के बावजूद श्री दम्मानी अपने प्रसिद्ध नाम ‘‘मि. व्हाईट’’ की तरह बिल्कुल साफ-सुथरा और निष्कलंक ही रहे। वैसे ‘‘मि. व्हाईट’’ नाम उनके परिचितों ने उनके पहनावे के कारण दिया है। कारण है श्री दम्मानी अक्सर सफेद ट्राऊजर तथा सफेद शर्ट ही पहनना पसंद करते हैं।
व्यवसायी परिवार में लिया जन्म
श्री राधा किशन दम्मानी का जन्म सन् 1954 में बीकानेर (राजस्थान) के एक परम्परागत मारवाड़ी परिवार में श्री शिवकिशन दम्मानी व सरस्वती देवी के यहाँ हुआ था। गोपीकिशन दम्मानी का भाई के रूप में साथ मिला। पिताजी शिवकिशनजी स्टॉक मार्केट व्यवसाय से सम्बद्ध थे।
अत: श्री दम्मानी को बचपन से व्यवसायिक माहौल अवश्य मिला लेकिन इसके बावजूद आपका शेयर बाजार की ओर रूझान नहीं था।स्कूली शिक्षा पूर्ण कर श्री दम्मानी ने ‘‘मुम्बई विश्विद्यालय’’ से बी.कॉम. के लिये प्रवेश लिया लेकिन रूझान व्यवसाय की ओर अधिक होने से पढ़ाई में अधिक मन नहीं लगा और अपनी इस उच्च शिक्षा को आपने अधूरा ही छोड़ दिया।
ऐसे बढ़े शेयर बाजार की ओर कदम
श्री राधा किशन दम्मानी ने अपनी बी.कॉम. की पढ़ाई तो अधूरी छोड़ दी लेकिन अब उनके सामने व्यवसाय प्रारम्भ करने की चुनौती थी। पिता के शेयर व्यवसाय के प्रति श्री दम्मानी का रूझान नहीं था। आखिरकार पर्याप्त चिंतन के बाद श्री दम्मानी ने ‘‘बॉल बेयरिंग विक्रय’’ व्यवसाय की अपने कॅरियर के रूप में चयन किया।
इसी दौरान दुर्भाग्य से पिताजी का देहावसान हो गया और उनके व्यवसाय की पूरी जिम्मेदारी भाई गोपीकिशनजी पर आ गयी। ऐसी स्थिति में पारिवारिक जिम्मेदारी के चलते अपने ‘‘बॉल बेयरिंग विक्रय’’ व्यवसाय को बंद कर श्री दम्मानी को अपने भाई के साथ मिलकर शेयर बाजार में न चाहते हुए भी कदम रखना ही पड़ा। वैसे आपके भाई गोपीकिशनजी पूर्व से ही शेयर व्यवसाय को सम्भाल रहे थे। इसमें राधाकिशनजी ने सर्वप्रथम स्टॉक मार्केट की क्रिया प्रणाली को देखकर और सीखकर समझना प्रारम्भ किया।
शेयर बाजार की विशेषज्ञता का सफर
कुछ दिनों तक शेयर बाजार को देख समझने के बाद वे शेयरों के उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाने लगे। इसके आधार पर श्री दम्मानी ने 32 वर्ष की उम्र में स्टॉक मार्केट में अपने प्रथम निवेश से शेयर व्यवसाय की शुरूआत की। अपने अनुमान के आधार पर वे निवेश तो करते थे, लेकिन इसमें उन्हें वह सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही थी, जिसकी अपेक्षा उन्हें थीं।
शीघ्र ही वे यह समझ गये कि मात्र अनुमान से इस जोखिम भरे व्यवसाय में सफलता प्राप्त करना सम्भव नहीं है। क्योंकि इस व्यवसाय के कई ऐसे गुर हैं, जिन्हें सिखने के लिये ‘‘गुरू’’ जरूरी है। बस उन्होंने शेयर बाजार में निवेश के ऐसे गुर सीखना प्रारम्भ कर अपनी पूंजी की वृद्धि करना शुरू कर दिया। उनके इस प्रयास में किस्मत से उन्हें शेयर बाजार में निवेश के विशेषज्ञ के रूप में वर्ष 1990 के प्रारम्भ में दलाल स्ट्रीट के किंग माने जाने वाले चंद्रकांत सम्पत का साथ मिला। वे उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए।
ऐसे चली सफलता की यात्रा
श्री राधा किशन दम्मानी अपनी प्रारम्भिक असफलताओं के कारण को समझ गये थे, जो उन्हें कम समय के निवेश से मिली थी। बस उन्होंने इसे समझ कर कुछ दीर्घावधि के लिये निवेश करना प्रारम्भ कर दिया।
वर्ष 1980 के मंदेड़िये के रूप में ‘‘दलाल स्ट्रीट’’ पर एक तरह से शेयर बाजार के ‘‘कोबरा’’ कहे जाने वाले मनु माणेक का राज चलता था। श्री दम्मानी ने उन्हें देखकर मंदेड़िया के रूप में किये जाने वाले शेयर व्यवसाय के गुर सीखे। धीरे-धीरे वे मनु माणेक से सीखे इन गुरों का स्वयं भी उपयोग करने लगे और तत्कालिक तौर पर शेयर बाजार की महाशक्ति कहे जाने वाले शेयर दलाल हर्षद मेहता के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़े हो गये। हर्षद मेहता वर्ष 1992 में भारतीय इतिहास के सबसे बड़े शेयर घोटाले का मास्टर माइंड था।
‘‘ट्रिपल-आर’’ बने हर्षद की चुनौती
वर्ष 1980 के अंत से लेकर 1990 के प्रारम्भ का समय स्टॉक मार्केट का ‘‘डार्क फेज’’ माना जाता है। इस अवधि में हर्षद मेहता का पूरे शेयर मार्केट पर एक तरह से इस तरह कब्जा था कि शेयर के भाव उनकी इच्छा से घटते तथा बढ़ते थे। व्यवसाय में हर्षद को टक्कर देने के लिये श्री दम्मानी ने शेयर बाजार के तीन आर अर्थात ‘‘ट्रिपल – आर’’ की एक जोड़ी बनाई। इस ट्रिपल आर में एक स्वयं, दूसरे राजू दी चार्टिस्ट तथा तीसरे भी ‘आर’’ से नाम प्रारम्भ होने वाले एक ‘‘रुकी’’ निवेशक थे।
ट्रिपल आर व हर्षद सिर्फ प्रतिस्पर्धी ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने मिलकर एक भारतीय टायर कम्पनी ‘‘अपोलो टायर्स’’ में निवेश भी किया था। फिर इनके ग्रुप को हर्षद की कार्यप्रणाली सही नहीं लगी और यहीं से इनके रास्ते पूरी तरह अलग हो गये। इस बीच वर्ष 1992 तक व्यवसाय जगत में हर्षद से इनका संघर्ष चलता ही रहा। फिर हर्षद के शेयर घोटाले के उजागर होने के बाद स्टॉक मार्केट पर ‘‘ट्रिपल-आर’’ का ही लगभग एक छत्र राज्य हो गया
फिर बदली निवेश नीति
‘‘शार्ट सेलिंग’’ टेक्निक से हर्षद से प्रतिस्पर्धा में श्री राधा किशन दम्मानी भी अच्छा मुनाफा कमा रहे थे लेकिन जब शेयर घोटाले में हर्षद दोषी करार दिये गये तो पूरा शेयर बाजार प्रभावित हो गया। ऐसे में स्वयं श्री दम्मानी भी कैसे अप्रभावित रह सकते थे?
वे भी अभी तक शार्ट टर्म इन्वेस्टर ही थे, ऐसे में उन्हें ‘लांग टर्म इन्वेस्टर’ बनने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ा। इसके लिये उन्होंने कई कंपनियों की आधारभूत संरचना तथा लांग टर्म इन्वेस्टरमेंट के तरीकों को समझा और विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनी, बैंकिंग कम्पनीज तथा कंज्यूमर कम्पनियों में निवेश प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1999 से वर्ष 2000 की अवधि स्टॉक मार्केट में भी ‘टेक्नोलॉजी बूम’ लेकर आयीं। श्री दम्मानी अभी तक अपने व्यवसाय में पुरानी तकनीकों का ही उपयोग कर रहे थे। अत: उन्हें हानि उठानी पड़ी।
समय की मांग को समझते हुए श्री दम्मानी भी नवीन तकनीकों को स्वीकारते हुए ‘‘वेल्यू इंवेस्टर’’ बन गये। श्री दम्मानी ने अपनी दीर्घ अवधि के निवेश की नीति के अंतर्गत जीई केपिटल ट्रांसपोर्टेशन इण्डस्ट्रीज, वीएसटी इंडस्ट्रीज, सम्टैल लि., सोमानी सिरामिक्स, जयश्री टी, 3 एम इंडिया, सेन्च्युरी टेक्सटाईल एण्ड इंडस्ट्रीज आदि कई प्रतिष्ठित कम्पनियों में निवेश किया और शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट से दूरी बना ली।
रिटेल इंडस्ट्रीज की ओर बढ़ाये कदम
शेयर बाजार की अनिश्चितता को देखते हुए श्री राधा किशन दम्मानी ने सिर्फ दीर्घावधि के लिये निवेश तक अपने आपको सीमित कर अपने स्टॉक मार्केट व्यवसाय को भी सीमित कर लिया और अचानक ‘‘रिटेल इंडस्ट्री’’ में कदम बढ़ाने का निर्णय कर लिया। श्री दम्मानी का एक निवेशक के रूप में उपभोक्ता कम्पनियों से जुड़ाव तो था ही, इसी जुड़ाव ने उन्हें रिटेल इंडस्ट्री की ओर कदम बढ़ाने के लिये प्रेरित किया।
वर्ष 1999 में रिलायंस रिटेल के सीईओ दामोदर मल के साथ मिलकर श्री दम्मानी मुम्बई में ‘‘अपना बाजार’’ की फ्रैंचाइजी ले चुके थे। श्री दम्मानी ने इससे ठीक 2 वर्ष बाद डी-मार्ट की शुरूआत ‘सुबरबन – मुम्बई’ में प्रथम स्टोर से की। फिर वर्ष 2002 में उन्होंने ‘‘अपना बाजार’’ को भी अधिगृहित कर लिया। वर्तमान में डी-मार्ट के देशभर में 160 से अधिक स्टोर्स हैं और यह आईपीओ में इसके पेरेन्ट्स नेम ‘‘एवेन्यू सुपर मार्केट’’ के रूप में रजिस्टर्ड भी है। श्री दम्मानी स्वयं अपने ‘‘डी-मार्ट’’ की सफलता का आधार तीन स्तम्भों को मानते हैं, ‘‘विक्रेता, उपभोक्ता तथा कर्मचारी’’।
अत्यंत सहज-सरल व्यक्तित्व
श्री राधा किशन दम्मानी देश के शीर्ष 20 सम्पन्न व्यक्तियों में शुमार हैं, इसके बावजूद उनकी सादगी हर मिलने वाले का मन मोह लेती है। वे अक्सर साधारण से सफेद ट्राऊजर तथा शर्ट पहनते हैं। उन्हें देखकर सामान्यत: कोई नहीं कह सकता कि वे इतनी बड़ी हस्ती हैं। आमतौर पर भीड़भाड़ वाले आयोजनों व नाम कमाने की चाहत से दूर रहना श्री दम्मानी की आदत है।
यही कारण है कि वे लोगों तथा मीडिया से कम ही मिलते हैं, लेकिन जरूरतमंदों की मदद करने से चुकते भी नहीं। इसके लिये वे किसी संस्था के भी मोहताज नहीं रहे। उन्हें कोई वास्तविक जरूरतमंद नजर आया तो वे इसी तरह मदद करते हैं, जैसे एक हाथ मदद करे तो दूसरे को भी पता न चले। आपके परिवार में तीन विवाहित पुत्रियां शामिल हैं।
मंजरी व मधु चांडक तथा ज्योति काबरा। मंजरी वर्तमान में मैनेजर के रूप में ‘डी-मार्ट’ का व्यवसाय सम्भाल रही है। श्री दम्मानी के भाई गोपीकिशन तथा उनकी धर्मपत्नी, हायपर मार्केट को प्रमोट करने में सहयोग कर रहे हैं।
जरूरतमंदों की सेवा में बढ़ाये कदम
रिटेल इण्डस्ट्री में कदम रखने के बाद श्री राधा किशन दम्मानी ने संगठित संस्थागत रूप से समाजसेवा में योगदान देने का भी संकल्प लिया। इसी के अंतर्गत मुम्बई में बाम्बे हॉस्पिटल के समीप ‘गोपाल भवन’ की शुरूआत की। यह संस्था चिकित्सा हेतु मुम्बई जैसे महानगर में आने वाले रोगियों व उनके परिजनों को अत्यंत न्यूनतम दर पर आवास तथा खाने-पीने की सुविधा प्रदान करती है।
इसके पीछे बस लक्ष्य यही है कि कोई भी जरूरतमंद पैसे की कमी से बिना चिकित्सा के काल का ग्रास न बने। मानव सेवा की इस श्रृंखला में माहेश्वरी समाज की सेवा अन्तर्गत अपने माता-पिता के नाम पर ‘‘शिवकिशन-सरस्वतीदेवी चेरिटेबल’’ ट्रस्ट का गठन भी किया। यह ट्रस्ट समाज के गरीब-बेसहारा सदस्यों को हर प्रकार से आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
बिना माहेश्वरी समाज संगठनों की मदद लिये यह ट्रस्ट अपने स्तर पर सम्पूर्ण व्यवस्था स्वयं ही सम्भालता है। इससे सहायता प्राप्त करने के लिए ट्रस्ट के निर्धारित प्रारूप अनुसार जानकारी प्रदान करना अनिवार्य होती है। इसके पश्चात ट्रस्ट प्रबंधन सहायता राशि प्रदान करने का निर्णय अपने स्तर पर कर लेता है।
-मित्रों एवं परिचितों से बातचीत के आधार पर तैयार आलेख।