2022

चिकित्सा की दुनिया के ‘मसीहा’ – डॉ दिगंबर झंवर

कोरोना की दूसरी लहर में जब पूरा देश त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा था। सब जगह अस्पतालों में ऑक्सीजन के साथ-साथ इस बीमारी में रामबाण समझे जाने वाले इंजेक्शन रेमडेसिविर की भी जबरदस्त शॉर्टेज हो गई थी। ऐसे में समाज के लिये मसीहा बनकर सामने आये महाराष्ट्र की सबसे बड़ी दवा (इंजेक्टेबल्स) कम्पनी के मालिक व रेमडेसिविर इन्जेक्शन के निर्माता डॉ दिगंबर झंवर। जब ‘गिद्ध’ रेमडेसिविर की 50-60 हजार रूपये तक में कालाबाजारी कर रहे थे, ऐसे में भी उन्होंने लगभग 1.5 हजार इन्जेक्शन समाज को निःशुल्क देकर समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते हुए, कई समाजजनों को नवजीवन दिया। चिकित्सा के क्षेत्र में आपके योगदानों के लिये श्री माहेश्वरी टाईम्स परिवार आपको श्री ‘‘माहेश्वरी ऑफ द ईयर 2021’’ से सम्मानित करते हुए गौरवान्वित महसूस करता है।


अन्य लोगों के साथ ही माहेश्वरी समाज भी कोरोना महामारी के इस भयानक दौर में रेमडेसिविर इन्जेक्शन की कमी से जूझ रहा था। ऐसे में समाजजन भी इस परेशानी से कम प्रभावित नहीं रहे। वे भी रेमडेसिविर के लिये मारे-मारे भटक रहे थे। ऐसे में एक व्यक्ति समाज के लिये मसीहा बनकर सामने आये, जिनका नाम है, डॉ. दिगंबर झंवर।

dr digambar jhanwar

कमला लाइफ साइंस लिमिटेड के मालिक डॉ. दिगंबर झंवर पालघर स्थित अपनी फैक्ट्री में इस इंजेक्शन का उत्पादन सिपला कंपनी के लिए करते हैं। जब इसकी भारी कमी थी और लोग 50 हजार रूपये तक वसूलकर इनकी कालाबाजारी कर रहे थे, ऐसी स्थिति में भी वे माहेश्वरी बंधुओं के लिये इंजेक्शन नि:शुल्क देने को तैयार हो गए। समाज के प्रति उनकी भावना इन शब्दों में सामने आई कि ‘समाज बंधुओं को जीवन देना मेरा पहला कर्त्तव्य है।’

डॉ. झंवर के इस उदार हृदय के चलते ये जीवन रक्षक इंजेक्शन भीलवाड़ा, जोधपुर, गुलाबपुरा, जयपुर, बड़ौदा, सूरत, इंदौर, कोलकाता, रायपुर एवं संपूर्ण महाराष्ट्र जैसे कोरोना महामारी से झुलसे शहरों में भेजने की व्यवस्था की जा सकी।

इसमें लगभग 1500 से भी ज्यादा इंजेक्शन का डिस्ट्रीब्यूशन संभव हो पाया है, जिससे जरूरतमंद समाजजन को अत्यंत राहत मिली। इस योगदान के लिये आपको माहेश्वरी मंडल बोईसर पालघर डहाणू रोड द्वारा ‘‘महेश भूषण’’ तथा भायंदर जिला माहेश्वरी सभा द्वारा ‘‘महेश गौरव’’ से सम्मानित किया गया।


समाज बना था दवा वितरण में सहयोगी

संपूर्ण माहेश्वरी समाज बंधुओं ने ऐसे कठिन समय में समाज को सहयोग देने के लिए डॉ. दिगंबर झंवर का भावुक हृदय से आभार व्यक्त किया। इसी तरह संपूर्ण भारतवर्ष में जरूरतमंद समाजबंधुओं को नि:शुल्क रेमडेसिविर इंजेक्शन के युक्तियुक्त वितरण करने हेतु मुंबई प्रदेश के भूतपूर्व अध्यक्ष माणकचंद काबरा एवं अ.भा. माहेश्वरी महासभा के कार्यकारी मण्डल सदस्य दिनेश सोमानी एवं सभापति श्याम सोनी, का भी उनके सतत् सहयोग हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया, जिनकी चुस्त-दुरूस्त व्यवस्था से सैकड़ोें समाजजनों का जीवन बच सका।

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उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में लाखों लोगों की जान बचाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन के निर्माता और 300 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाली महाराष्ट्र की सबसे बड़ी दवा कंपनी ‘कमला ग्रुप ऑफ कंपनीज’ के डॉ. दिगम्बर चेयरमेन हैं।

उनके इस ग्रुप ऑफ कम्पनीज में इंपल्स फार्मा प्राइवेट लिमिटेड, कमला लाइफसाइंसेज लिमिटेड, क्रुक्स फार्मा प्राइवेट लिमिटेड, काईटमार्क हेल्थकेयर, कॅमफोर्ड हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड तथा विदेश स्थित झॅडॉन फार्मा नाईजीरिया लिमिटेड आदि शामिल हैं।


फैमिली फिजिशियन से बने उद्योगपति

अत्यंत सादगी से रहने वाले डॉ. दिगंबर झंवर का जन्म दो भाई व तीन बहनों के भरेपूरे परिवार में सायखेड़ा जिला नासिक (महाराष्ट्र) में हुआ था। प्रायमरी व माध्यमिक स्तर की शिक्षा सायखेड़ा में हुई एवं हाई स्कूल शिक्षा पैतृक गाँव शेन्दुरणी जिला-जलगाँव में हुई।

बचपन से कुशाग्र बुद्धि के डॉ. झंवर ने दसवीं कक्षा में अव्वल आकर भविष्य में MBBS डॉक्टर बनने का सपना संजोया। किन्तु धन की तंगी ने उनका MBBS डॉक्टर बनने का सपना तोड़ दिया। किन्तु कहते हैं ना कि जहां चाह वहां राह, धुन के पक्के, दृढ़ निश्चयी डॉ. दिगंबर झंवर ने पुणे यूनिवर्सिटी के माध्यम से BAMS की डिग्री प्राप्त करके 1994 में पालघर में अपना खुद का क्लीनिक खोला।

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क्लिनिक को लोगों से भारी प्रतिक्रिया मिली। कुशाग्र बुद्धि और बीमारियों पर अपनी बेहतरीन पकड़ के कारण शीघ्र ही वो अपने इलाके में प्रसिद्ध हो गए, फिर उन्होंने 1997 में अपने बड़े भाई राजेंद्र झंवर की मदद से गुरुकृपा रिटेल मेडिकल शुरू किया। पिता श्री जयकिशन झंवर भी इस कार्य में अपने बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगे।

डॉक्टर झंवर ने अपने कारोबार को बढ़ाने का निर्णय लिया और वर्ष 1999 में ग्रेस फार्मा के नाम से मेडिसिन के होलसेल व्यापार की शुरुआत की। यह काम भी बहुत शीघ्र ही जम गया। पिताजी का गत वर्ष 2018 में देहावसान हो गया। अब उन्हें 75 वर्षीय माताजी का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है।


इस तरह रखा उद्योग जगत में कदम

मार्केट में उनके ब्रांड की दवाइयों की डिमांड बढ़ने लगी तो डॉ. झंवर ने अपना स्वयं का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट डालने का निर्णय लिया और वर्ष 2007 में एमआईडीसी बोइसर में अपने चार मित्रों के साथ मिलकर इंपल्स फार्मा प्राइवेट लिमिटेड नाम से टेबलेट एवं केप्सुल बनाने के प्लांट की शुरुआत की।

कुछ दिनों तक सभी ठीक-ठाक चलता रहा पर यह खुशियां ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई और वर्ष 2013 में सभी सहयोगियों ने मिलकर प्लांट को बेचने का निर्णय किया। टोकन प्राप्त हुआ किंतु भाग्य की बात है कि पार्टी ने बाकी का पैमेंट देने में असमर्थता दिखाई।

उसी समय डॉक्टर झंवर ने अपने दृढ़ विश्वास, इष्ट भगवान दत्तात्रेय एवं परिवार के समर्थन से इस प्लांट को अकेले चलाने का निर्णय लिया और अपने सभी साथियों को 6 महीने में उनका पैसा वापस कर दिया। दृढ़ विश्वास, कड़ी मेहनत और भगवान के आशीर्वाद से कंपनी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगी। वर्तमान में कम्पनी की स्थिति क्या है, यह सबके सामने है।


अब टॉप 10 में जाने की तैयारी

स्वयं डॉ. झंवर ने अपने उद्योग-व्यवसाय में अपनी सफलता के वह कीर्तिमान स्थापित किये हैं, जो समाज का सिर गर्व से ऊंचा कर देते हैं। एक छोटे से मेडिकल स्टोर से अपने कॅरियर की शुरूआत करने वाले डॉ. झंवर वर्तमान में पांच लिमिटेड कंपनियों के माध्यम से 300 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर के साथ एलोपैथिक दवाइयों के प्रमुख उत्पादकों में से एक हैं।

इनकी 5 फैक्ट्रियां भारत में और 1 फैक्ट्री विदेश में हैं। वे वर्ष 2026 तक ‘आईपीओ’ लाकर, भारत की शीर्ष 10 कम्पनीयों में स्थान पाने का और वर्ष 2030 तक 10000 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने का लक्ष्य रखते हैं।

उनसे उनकी सफलता का राज पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘आत्मचिंतन एवं विश्वास, आध्यात्मिक एवं ईश्वर समर्पित दृष्टि व वृत्ति, लक्ष्य (टारगेट) के प्रति दृढ़ तन्मयता, कठोर परिश्रम तथा बड़ों का आशीर्वाद ये ऐसे पाँच सूत्र हैं, जो मेरी जीवन यात्रा में मेरा सम्बल बने।’


जिम्मेदारी के लिये युवा पीढ़ी तैयार

झंवर बंधुओं ने अपने अथक प्रयत्नों से जिस विशाल फार्मेसी उद्योग की स्थापना की है, अब उसे सम्भालने के लिये उनकी युवा पीढ़ी भी तैयार है। बड़े भाई राजेंद्र झंवर के सुपुत्र 25 वर्षीय डॉ. नीरज ने शासकीय मेडिकल कॉलेज सोलापुर (महाराष्ट्र) से एमबीबीएस की उपाधि 2021 में हासिल की है।

अब वे भी पारिवारिक औषधि निर्माण के व्यवसाय में सम्मिलित हुए हैं। स्वयं डॉ. दिगम्बर झंवर के परिवार में पुत्र डॉ. पुष्कर (24 वर्ष) और पुत्री कु. पलक (21 वर्ष) हैैं। पुत्र डॉ. पुष्कर गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज बी.जे. मेडिकल कॉलेज पुणे से एमबीबीएस की डिग्री वर्ष 2022 में पूर्ण करेंगे। तत्पश्चात वे भी अपने पारिवारिक औषधि निर्माण के व्यवसाय में सम्मिलित होंगे। कु.पलक बी.फार्मेसी द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है। उनका लक्ष्य भी एम. फार्मेसी के पश्चात इसी व्यवसाय में आना है।


समाजसेवा में धर्मपत्नी भी सहभागी

अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद समाजसेवा के क्षेत्र में भी डॉ. झंवर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान दे रहे हैं, जिनमें आपकी धर्मपत्नी सौ. योगिता झंवर आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर योगदान दे रही है। डॉ. झँवर के प्रयास से पालघर बोइसर क्षेत्र में 1998 में माहेश्वरी मंडल बोईसर पालघर डहाणू रोड की स्थापना की गई और स्वयं डॉ. झंवर इसके संस्थापक सदस्यों में से एक रहे।

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मंडल के अध्यक्ष भी रहे एवं थाना जिला माहेश्वरी सभा के उपाध्यक्ष भी रहे। आज भी अपनी व्यस्तता के बावजूद मंडल के लिए तन मन धन से समर्पित रहते हैं। कहते हैं कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति, अपने ऊपर विश्वास, कठिन परिश्रम, भगवान का आशीर्वाद एवं परिवार के बड़ों का आशीर्वाद जरूरी होता है किंतु अपनी अर्धांगिनी के सहयोग के बिना यह सब संभव नहीं होता।

श्रीमती झंवर एक शांत स्वभाव, मृदुभाषी एवं परिवार के प्रति समर्पित नारी हैं, जिन्होंने अपने पति की बढ़ती हुई जिम्मेदारियों में से परिवार की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली एवं पति को परिवार के दैनिक कर्त्तव्य से मुक्त किया। आज वह परिवार के साथ-साथ उद्योगों में भी पूर्ण रूप से अपने पति को सहयोग प्रदान कर रही है।

श्रीमती झंवर कमला फाउंडेशन की अध्यक्षा भी हैं। कमला फाउंडेशन ने समाजसेवा में अपने झंडे गाड़ दिये है। पालघर के ग्रामीण अस्पताल को बड़ा करने एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त करने हेतु कमला फाउंडेशन ने एक बड़ी राशि खर्च की।

चिपलुन में आई बाढ़ में पीड़ित लोगों को विभिन्न प्रकार से मदद पहुंचाई गई। भयंदर जिला माहेश्वरी सभा के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के तहत आयोजित नि:शुल्क मैमोग्राफी जांच शिविर के पहले शिविर का पूरा आर्थिक खर्च भी कमला फाउंडेशन ने उठाया।


पालघर ग्रामीण अस्पताल की बेड क्षमता भी की दुगनी

पालघर ग्रामीण अस्पताल के प्रथम तल पर कमला फाउण्डेशन की अध्यक्षा डॉ. झंवर की धर्मपत्नी श्रीमती योगिता झंवर द्वारा प्रदान किये गये दो करोड़ रूपये के आर्थिक सहयोग से निर्माण कार्य किया गया है। गत 14 मई 2021 को इसका समाजसेवक डॉ. नंदकुमार वर्तक द्वारा उद्घाटन किया गया। इससे अस्पताल में रोगियों के लिए बेड की क्षमता दोगुनी हो जाएगी।

वर्तमान में एक लाख लोगों पर यहाँ मात्र 30 बेड की क्षमता वाला यह अस्पताल है। इस अस्पताल के प्रबंधन को मरीजों के इलाज के लिए भारी बोझ उठाना पड़ रहा था। ऐसे में पालघर के मरीजों को बेहतर सुविधा दिलाने के लिए कमला फाउण्डेशन द्वारा सामाजिक जिम्मेदारी स्वीकार की गई।

अब इस अस्पताल की 63 बेड की क्षमता हो जाएगी। इस उद्घाटन अवसर पर कमला फाउण्डेशन की अध्यक्षा योगिता झंवर, कमला लाईफ साईंसेस के चेयरमैन स्वयं डॉ. दिगंबर झंवर, मैनेजिंग डायरेक्टर राजेंद्र झंवर, जिला कलेक्टर डॉ. माणिक गुरसल, नगराध्यक्ष उज्जवला काले, प्रांताधिकारी धनाजी तोरास्कर आदि उपस्थित थे।


नाना-नानी से मिले धार्मिक संस्कार

डॉ. झंवर तथा उनके सभी भाई बहनों पर उनके नाना-नानी सायखेड़ा-नासिक (महाराष्ट्र) के निवासी स्व. श्री रामनाथ व श्रीमती कमलाबाई धूत का अत्यंत गहरा प्रभाव रहा है। कारण यह था कि डॉ. झंवर की माता श्रीमती राधाबाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। अतः नाना-नानी भी उनके साथ ही रहते थे।

नानीजी का वर्ष 1992 तथा नानाजी का वर्ष 2013 में देहावसान हुआ। इस दीर्घावधि में झंवर भाई-बहनों को न सिर्फ नाना-नानी का स्नेह मिला बल्कि संस्कार भी मिले। इनका कितना प्रभाव उनके ऊपर पड़ा उसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि इनकी कई कम्पनी सहित सेवा फाउंडेशन का नाम भी नानीजी के नाम ‘‘कमला’’ से प्रारंभ होता है।

स्वयं डॉ. झंवर बताते हैं कि नानाजी दत्त सम्प्रदाय से सम्बद्ध होकर दत्त भगवान की उपासना में ऐसे खो गये थे कि उन्होंने जीवन के 30-32 वर्ष अन्न का त्याग कर केवल दही सेवन करके ही गुजारे और 91 वर्ष की अवस्था तक जीवित रहे। नाना और नानीजी जमीन पर सिर्फ चटाई बिछाकर ही सोते थे।


अध्यात्म की ओर भी अब बढ़ेंगे कदम

डॉ. झंवर का सम्पूर्ण परिवार नाना-नानी के पदचिन्हों पर चलते हुए विशुद्ध रूप से भारतीय संस्कृति व परम्पराओं का अनुसरण करता है। अत: डॉ. दिगम्बर झंवर और बड़े भाई राजेंद्र झंवर वर्ष 2030 तक अपने तीनों बच्चों पर इस उद्योग की जिम्मेदारी छोड़कर वानप्रस्थी होना चाहते हैं।

श्री क्षेत्र त्रयंबकेश्वर और नासिक के पास 25 एकड़ भूमि पर भव्य दत्त भगवान के मंदिर, सेन्द्रीय खेती, गोशाला, वेद पाठशाला, योग पाठशाला, आयुर्वेद पाठशाला, आयुर्वेद औषधि निर्माण, आयुर्वेद एवं योग की आरोग्य शाला, भक्त निवास, अन्नछत्र जैसी रचनात्मक गतिविधि सनातन धर्म के प्रति समर्पित आध्यात्मिक एवं धार्मिक गतिविधियों पर आधारित आश्रम बनाने का दृढ़ संकल्प है।

2030 के पश्चात 2040 तक श्री दत्तसंप्रदाय का पठन, चिंतन, मनन, लेखन एवं प्रचार प्रसार करने का उनका मानस है। 2040 के बाद मौन व्रत धारण कर एकांतवास एवं सन्यास लेकर आध्यात्मिक ऊंचाई को छुना चाहते हैं। उनका लक्ष्य जिस तरह उद्योग व्यवसाय में सफलता के शिखर को छुआ, ठीक उसी तरह आध्यात्म के क्षेत्र में भी सफलता अर्जित करना है।


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