2015Maheshwari of the year

प्रदीप बाहेती

‘श्री माहेश्वरी टाईम्स’ समाजसेवा के क्षेत्र में ‘‘माहेश्वरी ऑफ ईयर-2014’’ अवार्ड से सम्मानित कर रही है, जयपुर के ख्यात समाजसेवी प्रदीप बाहेती को। उन्हें उनकी दीर्घ सेवाओं और सेवा क्षेत्र में अनहोनी को होनी कर देने की विशेषज्ञता को लेकर यह सम्मान प्रदान किया जा रहा है। श्री बाहेती ने ही वर्ष 2014 में देश में प्रथम बार जयपुर से लोहार्गल दर्शन यात्रा की ऐतिहासिक शुरूआत की थी।

जयपुर में प्रदीप बाहेती समाजसेवा के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिनके लिये कुछ भी असम्भव नहीं। उन्हें समाज ने जब भी जो भी जिम्मेदारी सौंपी, उन्होंने उसे इस तरह निभाया कि उनकी वह सेवा अपने आप में मिसाल बन गई। वर्तमान में अ.भा. माहेश्वरी युवा संगठन समाज के उत्पत्ति स्थल लोहार्गल को तीर्थ का स्वरूप देने के लिये वहां भव्य माहेश्वरी भवन का निर्माण करवा रहा है। इसके निर्माण के लिये जब योग्य समाजसेवी की आवश्यकता महसूस हुई, तो इस राष्ट्रीय संगठन की निगाहें भी श्री बाहेती पर ही जा टिकी।

श्री बाहेती वर्तमान में लोहार्गल भवन निर्माण समिति के अध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। इसमें पूर्ण पारदर्शिता से संगठन के निर्देशानुसार गरिमामय भवन का निर्माण करवाना उनकी मुख्य जिम्मेदारी है, जिसे वे पूर्ण सजगता व समर्पित भाव से निभा रहे हैं। इसके साथ-साथ वे एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, लोहार्गल के प्रति जन जागरण।

वहाँ विशिष्ट आयोजन तथा आने वाले शृद्धालुओं के लिये व्यवस्थाऐं जुटाकर इस सामान्य से पद पर रहते हुए भी लोहार्गल तीर्थ से अधिक-से-अधिक समाजजनों को जोड़ने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2014 में जनजागरण के लिये सर्वप्रथम जयपुर से लोहार्गल दर्शन यात्रा का ऐतिहासिक आयोजन किया। इसमें लगभग 500 से अधिक समाजजन शामिल हुए।

संस्कारों से मिली सेवा भावना:

इरादों के पक्के प्रदीप बाहेती बचपन से ही अपने उद्देश्य व अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे हैं। श्री बाहेती मात्र 13 वर्ष की आयु से ही दया, करुणा और परोपकार का महत्व समझ गए थे। यह उम्र ऐसी होती हैं, जब बालक शरारतों और खेल में ही मगन रहता है, लेकिन श्री बाहेती उन सबसे हटकर थे। पढ़ाई में गंभीर तो वह थे ही, साथ ही खेलकूद में भी सक्रिय रहते थे। इस सबके साथ महत्वपूर्ण बात यह है कि वह शुरू से ही दीन-दुखियों की मदद में सदा आगे रहते थे।

बचपन के अपने दिनों को याद करते हुए प्रदीप बाहेती बताते हैं कि हमारे परिवार के संस्कार ऐसे ही हैं। श्री बाहेती बचपन से ही महत्वाकांक्षी थे, समाज सेवा का जज्बा उनके अंदर था। वह चाहते थे कि समाज खुशहाल रहे, समाज की खुशहाली में ही देश की खुशहाली है। ज्यों-ज्यों वह बड़े होते गए समाज सेवा की दिशा में कुछ करने की उनकी इच्छा बलवती होती गई। अपने मिशन के प्रति पूरी तरह समर्पण व मिलनसारिता जैसे गुण उन्हें अपने पिता श्री आर.डी. बाहेती से मिले हैं।

ऊर्जावान ‘युवा’ व्यक्तित्व:

श्री बाहेती बचपन से ही एक ऊर्जावान व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं। उनकी यही ऊर्जा वर्तमान में उनकी सेवा गतिविधियों में अप्रतीम क्षमता के रूप में सामने आ रही है। राजस्थान विश्वविद्यालय कॉमर्स कॉलेज से बी०कॉम करने वाले श्री बाहेती खेल के प्रति भी बेहद जागरूक रहे हैं। बैडमिंटन उनका प्रिय खेल है।

उन्होनें राजस्थान स्टेट जूनियर बैडमिंटन में 9 साल तक प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1976 में कॉमर्स कॉलेज और वर्ष 1977 में राजस्थान विश्वविद्यालय में बैडमिंटन टीम के कैप्टन भी रहे। स्वास्थ्य के प्रति पूर्ण सजग श्री बाहेती की दिनचर्या प्रातः जल्दी उठना और 5 कि.मी. की दौड़ व योगाभ्यास उनकी समाजसेवी गतिविधियों में सहायक बनी हुई हैं।

17 साल की उम्र से समाज को समर्पित:

समाज सेवा के प्रति उनमें इतनी लगन थी कि वह 17 वर्ष की आयु से ही सामूहिक विवाह व समाज के अन्य कार्यक्रमों में कार्यकर्ता के रूप में सहयोग करने लगे। अपने काम के प्रति उनका समर्पण इस कदर था कि उन्हें जो भी जिम्मेदारी सौंपी जाती, वे उसे पूर्ण कुशलता के साथ पूरी करते। उनकी इन्हीं योग्यताओं को देखते हुए उन्हें 1991 में माहेश्वरी नवयुवक मण्डल, जयपुर का अध्यक्ष चुना गया। माहेश्वरी नवयुवक मण्डल से उनका जुड़ाव 1976 में हुआ था। इस वर्ष वे मण्डल की कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए थे तथा वर्ष 1983 तक आप मण्डल के सदस्य रहे।

इस दौरान उन्होनें अनेक सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता से भाग लिया। सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने के कारण ही उन्हें 1989 में मण्डल का सचिव और 1991 में अध्यक्ष चुना गया। यही नहीं उनका अध्यक्ष का कार्यकाल इतना अच्छा रहा कि वर्ष 1993 -1995 में उन्हें माहेश्वरी नवयुवक मण्डल जयपुर का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। श्री बाहेती के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस तरह उन्होनें सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

सेवा से बनाया एक इतिहास:

श्री बाहेती का मानना है कि हमें समाज की बदौलत ही सब कुछ प्राप्त होता है। समाज ही हमें प्रतिष्ठा, सम्मान देता है, इसलिए हमारी भी समाज के प्रति एक भारी जिम्मेदारी बनती हैं। इस जिम्मेदारी को निभाने में वह कभी पीछे नहीं रहें। संगठनात्मक कामों में उनकी एक विशेष पहचान बन चुकी थी। यही कारण था कि 1995 में उन्हें अ.भा. माहेश्वरी युवा संगठन (पश्चिमांचल) का उपाध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1999 में उन्हें माहेश्वरी समाज जयपुर का संयुक्त शिक्षा सचिव बनाया गया था। उन पर भवन निर्माण समिति के सचिव की भी जिम्मेवारी थी।

उन्होनें अपनी कार्यकुशलता का परिचय देते हुए विद्याधर नगर जयपुर में माहेश्वरी गर्ल्स पब्लिक स्कूल का निर्माण मात्र 11 माह में पूरा करवाकर रिकार्ड बनाया। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्वेश्य से समाज के अधीन माहेश्वरी गर्ल्स कॉलेज की स्थापना भी की गयी, जिसके वह संस्थापक सचिव रह चुके हैं। श्री बाहेती की धर्मपत्नी प्रीति बाहेती भी उनकी अनुगामी होकर विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं को अपनी सेवा दे रही हैं।

कई जिम्मेदारियों का सफल निर्वहन:

व्यवसाय की व्यस्तता के बावजूद पारिवारिक जिम्मेदारियों के अन्तर्गत वे  एक पुत्र, पिता, पति, भाई, श्वसुर व दादा आदि सभी रिश्तों की जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हुए अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। इनमें एक है, वन बंधु परिषद। यह एक ऐसी संस्थाहै, जिसमें गांव-शहरों से दूर रहने वाले बनवासी बच्चों को साक्षर बनाया जाता है, उनमें शिक्षा के प्रति रुचि जागृत की जाती है। श्री बाहेती वनबंधु परिषद के सचिव हैं। यह जिम्मेदारी वे वर्ष 2007 से निभा रहे हैं।

वनबंधु परिषद संस्था वास्तव में स्वामी विवेकानन्द के उस सपने को पूरा कर रही है, जिसमें उन्होनें कहा था – ‘‘अगर वनवासी बालक स्कूल नहीं जा सकता है, तो स्कूल को उसके दरवाजे पर पहुॅचना होगा।’’ इस तरह वे पूरे देश भर में 57 हजार के लगभग एकल शिक्षक विद्यालयों के माध्यम से बच्चों को साक्षर कर रहे हैं। चिकित्सा व रक्तदान शिविरों के आयोजन में वह सबसे आगे रहते हैं। वह लोगों को तो रक्तदान के लिए प्रेरित करते ही है, स्वयं भी कई बार रक्तदान कर चुके हैं। अनेक निर्धन बच्चों की शिक्षा का जिम्मा भी वह उठा रहे हैं। प्रदीप का मानना है कि जरूरत मंद की समय पर सेवा करना ही सच्चा मानव धर्म हैं।

अध्यात्म के प्रति भी समर्पित:

समाज के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाले प्रदीप बाहेती एक साथ कई जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। वह समय का मूल्य समझते हैं, इसलिए एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देते। जीवन प्रबंधन गुरू पं. विजय शंकर मेहता उनके आदर्श हैं। वह उनके बताए नियमों का पालन करते हैं। उनके कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, सिर्फ भाग ही नहीं लेते, बल्कि उनके कार्यक्रमों के संयोजन की जिम्मेदारी भी उठाते हैं।

जयपुर में प्रतिवर्ष दशहरा पर पं. विजय शंकर मेहता के एक वृहद कार्यक्रम ‘‘एक शाम जीत के नाम’’ का आयोजन करवाते हैं। इस आयोजन के श्री बाहेती राष्ट्र्रीय अध्यक्ष हैं। इन कार्यक्रमों से जुड़ने का परिणाम ही यह है कि वह व्यवसाय की बड़ी से बड़ी समस्या को आसानी से सुलझा लेते हैं, कभी तनाव में नहीं आते।

उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर पं. मेहता ने श्री बाहेती को वर्ष 2016 में उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ में बनने वाले हनुमतधाम का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मनोनीत किया है। अन्य आध्यात्मिक कार्यों में भी रुचि रखते हैं। विपश्यना ध्यान शिविर में लगातार 10 दिन तक मौन साधना वे कई बार कर चुके हैं।

बाहेतीजी का सेवा ‘दर्शन’:

  • केवल बातें करने से समाज सुधार नहीं होता, कथनी को करनी में बदलना पड़ता है। नियमों को किसी पर थोपा नहीं जा सकता, इसीलिए उन नियमों को पहले अपने जीवन में उतारना पड़ता है, उन्हें अपनाना पड़ता है, तभी वह नियम सार्थक हो पाते हैं। हम किसी अन्य को कोई बात तभी कहने के अधिकारी हैं, जब हम स्वयं उस बात से सहमत हों। दूसरे लोग भी तभी किसी बात को मानते हैं, जब वह देख लेते हैं कि कहने वाला उसका पालन कर रहा है।
  • आज समाज को नए विचारों वाले युवाओं की जरूरत है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में प्रतिभाशाली व्यक्ति ही समाज का विकास करने में सहायक हो सकते हैं। माहेश्वरी समाज में युवा सामाजिक कार्यों में काफी आगे रहते हैं, लेकिन यह संख्या और बढ़नी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा युवाओं को समाज की मुख्य धारा में आना चाहिए।
  • कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। यदि पूर्ण आत्मविश्वास व लगन के साथ किसी कार्य को हाथ में लिया जाए तो वह अवश्य पूर्ण होता है। हमें हमेशा अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए, तभी हम जीवन में सफल हो सकते हैं।
  • युवा अपनी कार्यशैली के प्रति बहुत ही प्रोफेशनल हैं। वह हर क्षैत्र की जानकारी रखते हैं, काफी ज्यादा जानते हैं उन्हें अवसर मिले, तो वह इसे साबित करके दिखा सकते हैं। युवा वर्ग अपने कर्तव्यों में समाजहित को सर्वोपरी रखें। उन्हें समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए।
  • यह सही है कि समस्याओं से लक्ष्य को पाने में बाधों आती है। अगर लक्ष्य को पाने की चाहत बुलंद हो, तन-मन दोनों साथ दे रहे हो और सकारात्मक सोच के साथ सूझबूझ से काम लिया जाए तो सफलता हासिल की जा सकती है।
  • हमें वक्त के साथ चलना चाहिए तभी हम दुनिया में अपना अस्तित्व कायम रख पोंगे। संचार तकनीक के कारण पूरा विश्व सिमट गया है। पाश्चात्य देशों के खान-पान, रहन-सहन, सभ्यता एवं संस्कृति का प्रभाव समाज के युवक-युवतियों पर पड़ रहा है। परिवर्तन में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि बिना परिवर्तन के विकास नहीं होता। पर इतना ध्यान रखा जाना चाहिए कि संस्कृति एवं संस्कारों के विपरीत कोई काम नहीं हो, और हम अपनी जड़ों से दूर ना हो।
  • समाज का प्रत्येक युवा संस्कारवान बने, तभी वह समाज में व्याप्त बुराइयों का विरोध कर सकता है। आज प्रत्येक समाज में भ्रूण हत्या, लिंगानुपात में अंतर, वैमनस्य, दिखावा, फिजूलखर्ची आदि की समस्याएँ हैं। माहेश्वरी परिवार भी इससे अछूते नहीं हैं। युवाओं को इन सबसे लड़ना होगा। समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ाना होगा।  

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Sri Maheshwari Times

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