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जीवन में पेंसिल के गुण अपनाएं

मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख, मान-अपमान, तकलीफें-समस्याएँ, यश-अपयश, लाभ-हानि आते जाते रहते हैं। हर परिस्थियों को हम किस तरह से सकारात्मकता या नकारात्मकता से लेते हैं, उसे समझते व सुलझाते हैं उसी पर हमारी जीवनकथा लिखी जाती है। बचपन में हमारे शिक्षक, माता-पिता, सहपाठी व आगे जीवन में हमारे मित्र, शुभचिंतक, मार्गदर्शक का रोल भी शार्पनर व इरेज़र जैसे महत्वपूर्ण रहता है। हम हमारे जीवन की तुलना पेंसिल से कर सकते हैं। जीवन में पेंसिल के गुण अपनाएं।

पेसिंल के पाँच ऐसे कुछ गुण जिन्हें यदि हम अपना लें तो सदा संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हैं।

याद रखें की जीवन मे पेंसिल के साथ शार्पनर व इरेज़र भी जरूरी होता है। शार्पनर समय समय पर पेंसिल को तेज करता है व इरेज़र पेंसिल द्वारा की हुई गलतियों को सुधारता है। हम पेंसिल को अपना गुरु बनाकर पेंसिल से कुछ सीखने की कोशिश कर सकते हैं।


पहला गुण

पेंसिल को लिखने के लिए हाथ की आवश्यकता होती है। इसी तरह हमारे भीतर भी महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता होती है, किन्तु हमें यह कभी भूलना नहीं चाहिए की हमें एक ऐसे हाथ(मार्गदर्शक) की आवश्यकता होती है जो निरन्तर हमारा मार्गदर्शन करे।

हमारे लिए वह हाथ ईश्वर(आत्मा) का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। जरूरत होती है की हम अपने अंतरात्मा की आवाज सुनकर कैसे अपने विवेक व बुद्धि का ईस्तमाल करते हैं।


दूसरा गुण

पेंसिल के गुण अपनाएं

पेंसिल को लिखते लिखते बीच में रुकना पड़ता है और फिर शार्पनर से पेंसिल की नोक बनानी पड़ती है। इससे पेंसिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में वह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी चलती है।

इसी तरह हमारे जीवन मे हमें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त कर धैर्य से सहन करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से हम एक बेहतर मनुष्य बन सकेंगे।


तीसरा गुण

पेंसिल हमेशा अपना अहंकार छोडकर अपनी गलतियों को सुधारने के लिए इरेज़र का प्रयोग करने की इजाज़त देती है। इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गई हो तो उसे स्वीकार करने से हमें हमारे लक्ष्यों की ओर निर्बाध्य रूप से सफलतापूर्वक आगे बढ़ने में मदद मिलती है।

हमारे माता पिता की डांट, सहपाठी, सहयोगी, शुभचिंतकों की आलोचना-निंदा को हम सकारात्मकता से लेकर हमारे व्यक्तित्व को निखार सकते हैं।


चौथा गुण

एक पेंसिल की कार्य प्रणाली में मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु इसके भीतर के ‘ग्रेफाईट’ की होती है। ग्रेफाईट की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी,लेखन उतना ही सुन्दर होगा।

इसी तरह हमारे भीतर की पवित्र आत्मा, सबके लिए सकारात्मक, सात्विक सोच-विचार हमारे जीवन को यशस्वी, सफल बनाने में हमारी मदद करते हैं। इसलिए हमें हमेशा अपने सोच विचार पर अंकुश रखते हुए अपने विचारों के प्रति सजग रहना चाहिए।


पांचवा गुण

पेंसिल के गुण अपनाएं

पेंसिल सदा अपना निशान छोड़ देती है। ठीक इसी प्रकार हम कुछ भी कार्य, सोच, विचार, व्यवहार करते हैं तो हम भी परिवार, प्रकृति, सृष्टि,समाज मे अपना निशान, छाप छोड़ देते हैं।

अतः सदा ऐसे कर्म करें जिन पर हमें लज्जित न होना पड़े अपितु हमारे व हमारे परिवार, सहयोगियों, मित्रों का सिर गर्व से उठा रहे। अतः हमें अपने प्रत्येक कर्म, सोच, विचार क्रिया-प्रतिक्रिया के प्रति सजग रहकर करना चाहिए।


हमारा प्रत्येक कार्य, व्यवहार, सोच विचार प्रकृति, सृष्टि मे अपनी छाप, तरंग छोडती है। पेंसिल के गुण अपनाएं।

शरद गोपीदासजी बागड़ी

Via
Sri Maheshwari Times

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