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ह्रदय को विशाल बनाती- आकाश मुद्रा

मध्यमा अंगुली आकाश तत्व का प्रतीक है तथा ज्योतिष विद्या में शनि की। जब अग्नि तत्व और आकाश तत्व आपस में मिलते हैं, तो आकाश जैसे- विस्तार का आभास होता है। आकाश में ही ध्वनि की उत्पत्ति होती है और कानों के माध्यम से ध्वनि हमारे भीतर जाती है। अत: आकाश मुद्रा हृदय को विशाल बनाती है।

Shivnarayan-Mundra

कैसे करें

अंगुठे के अग्रभाग को मध्यमा उंगुली के अग्रभाग से मिलाएं, शेष तीनों उंगुलियां सीधी रखें।


लाभ

  • आकाश तत्व के विस्तार से शून्यता समाप्त होती है। खालीपन, निरर्थकता, खोखलापन, मूर्खता दूर होती है।
  • कानों की सुनने की शक्ति बढ़ती है तथा कान के अन्य रोग भी दूर होते हैं। जैसे – कानों का बहना, कान में झुनझुनाहट, कानों का बहरापन। इसके लिए लम्बे अभ्यास की आवश्यकता होती है।
  • इस मुद्रा से हृदय रोग, हृदय से संबंधित रोग, उच्च रक्तचाप भी ठीक होते हैं।
  • हड्डियां मजबूत होती हैं। कैल्शियम की कमी दूर होती है। ओस्टीयोपोरोसिस (OSTEOPOROSIS) अर्थात् अस्थि क्षीणता दूर होती है।
  • दाएं हाथ से पृथ्वी मुद्रा और बाएं हाथ से आकाश मुद्रा बनाने से जोड़ों का दर्द दूर होता है।
  • जबड़े की जकड़न इस मुद्रा से दूर होती है।
  • माला के मनकों को अंगूठे पर रखकर मध्यमा उंगुली के अग्रभाग से माला फेरने से भौतिक सुख मिलता है, ऐश्वर्य प्राप्त होता है। मध्यमा उंगुली शनि की प्रतीक है।
  • ध्यान अवस्था में यह मुद्रा आज्ञा चक्र एवं सहस्रार चक्र पर कम्पन पैदा करती है जिससे दिव्य शक्तियों की अनुभूति होती है तथा आंतरिक शक्तियों का विकास होता है।
  • आकाश में Cosmic Rays हैं। यही Rays हमें ब्रह्म से मिलने में सहायक होती है।
  • मानसिक व शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए यह मुद्रा रामबाण है।
  • कफ दोष दूर होते हैं। गले में जमा हुआ कफ ठीक होता है। शरीर में कहीं भी दूषित कफ फंसा हो तो वह इस मुद्रा से दूर हो जाता है।

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