दीपावली पर्व पर कैसे करें शास्त्रोक्त विधि से पूजन
दीपावली पर्व वास्तव में पर्वों का महापर्व है, जिसमें धनतेरस से लेकर दीपावली तक के पर्व प्रमुखता से शामिल हैं। इन पर्वों का अपना विशेष महत्व है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होना सम्भव है, जब सम्बंधित पर्व की समस्त पूजा विधि शास्त्रोक्त विधि-विधान से सम्पन्न हो। तो आईये हम जानें कैसे करें विधि विधान से दीपोत्सव की समस्त पूजन। इस बाद दीपावली चतुर्दशी के संयोग के साथ विशेष संयोग बना रही है।
प्रथम पर्व- धनतेरस
सर्वप्रथम नहाकर साफ वस्त्र धारण करें। भगवान धन्वन्तरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवन्तरि कर आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरत रोग विधूतं
अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढ़ निगूढ़ औषध्यरूपम्, धन्वन्तरि च सततं प्रणमामि नित्यं।
इसके पश्चात् पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़ें। भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल, पुष्प आदि चढ़ाए। चांदी के पात्र में खीर का नैवैद्य लगाएं। ( अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवैद्य लगा सकते हैं। )
तत्पश्चात् पुनः आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को अर्पित रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें।
‘‘ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्य फट्।।’’
इसी दिन इसके बाद भगवान धनवन्तरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाए। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त दीपदान करना चाहिए। रात्रि को एक दीपक में तेल, एक कौड़ी, काजल, रौली, चाँवल, गुड़, फल, फूल व मीठे सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करना चाहिए।
द्वितीय पर्व- नरक चतुर्दशी
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा व व्रत का विधान है। इस दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करके सूर्योदय के पूर्व स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
सितालोष्ठसमायुक्त सकण्टकदलान्वितम।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ।।
स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यम से परिवार के सुख की कामना करें। इसके साथ ही प्रदोषकाल में चार बत्तियों वाला दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में रखें और उसका निम्न मंत्र से पूजन करें-
दीपश्चतुर्दश्यां नरक प्रीतये मया।
चतुर्वर्ति समायुक्त र्वपानतये (लिंग पुराण)
अर्थात्- आज चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता तथा सर्व पापों के नाशों के लिये मैं 4 बत्तियों वाला चौमुखा दीप अर्पित करता/करती हूं।
इस बार विशेष- इस बार चर्तुदशी और दीपावली दोनों एक ही दिन हैं। इस तिथि को सूर्योदय सूर्योदय के पूर्व ही प्रात:काल स्नान करने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। श्री ब्रह्मा पुराण के अनुसार जो मनुष्य प्रात:काल स्नान करता है, वह प्राय: निरोगी रहता है, जीवन भर सुखी और संतुष्ट रहता है।
इस पर्व पर स्नान करने के पूर्व शरीर पर तिल के तेल की मालिश करने का अधिक माहात्म्य बताया गया है। इस चतुर्दशी के दिन यदि दीवाली भी शामिल हो जाए तो तेल में लक्ष्मी और जल में गंगाजी निवास करती है, ऐसा विश्वास किया जाता है।
चतुर्दशी को महारात्रि माना जाता है, इसलिए इसमें शक्ति के उपासकों को शक्ति की पूजा करनी चाहिए। इस रात्रि में मंत्र भी सिद्ध किए जा सकते हैं।
तृतीय पर्व- दीपावली महापर्व
दीपावली पर महालक्ष्मी के साथ इनका पूजन भी किया जाता है। इसके लिये निम्न विधि अपनाऐं-
देहली विनायक पूजन
व्यापारिक प्रतिष्टादि में दीवारों पर ‘‘ऊँ श्रीगणेशाय नमः’’ स्वस्तिक चिन्ह, शुभ-लाभ आदि मांगलिक एवं कल्याण शब्द सिन्दूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ऊँ देहलीविनायकाय नमः इस नाममंत्र द्वारा गंध -पुष्पादि से पूजन करें।
श्रीमहाकाली (दवात) पूजन-स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
‘‘ऊँ श्रीमहाकाल्यै नमः’’ मंत्र से गंध-पुष्पादि पंचोपचारोें से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महकाली का पूजन करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तस।
उत्पन्ना त्वं च लोाकानां व्यवहारप्रसिद्धये ।।
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या
भक्तेः समस्तैव्यवहारदक्षैः।
जनर्जानानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यादास्तु।।
लेखनी पूजन
लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और-
लेखनी निर्मित पूर्व ब्रम्हाणा परमेष्ठिना।
लोकांना च हितर्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।
ऊ लेखनीस्थायै देव्यै नमः
इस नाममंत्र द्वारा गंध, पुष्प, चावल आदि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यातः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
बहीखाता पूजन
बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठ, धनिया, कलमगट्टा, अक्षत, दुर्वा और द्रव्य रखकर सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युशंकरप्रभृतिभिदेवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
ऊँ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः
इस नाममंत्र से गंधाकद उपचारों द्वारा पूजन करें
कुबेर पूजन
तिजोरी अथवा रूपए रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आव्हान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरू।
कोशं वद्राय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
आहृान के बाद ऊँ कुबेराय नमः नाममंत्र से गंध,पुष्प आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्य निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वप्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः।।
इस प्रकार प्रार्थनाकर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य,दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी में रखें।
तुला (तराजू) पूजन
सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
ध्यान के बाद ‘‘ऊँ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’’ इस मंत्र से गधाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन करेंं।
दीपमालिका (दीपक) पूजन
किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ‘‘ऊँ दीपावल्यै नमः’’ इस नाममंत्र से गंधादि उपचारोें द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्यदर्निश्व तारकाः।
सर्वेषा ज्योतिषां ज्योतिर्दीपाल्यै नमो नमः।।
दीपमालाओं का पूजन कर संतरा, ईख, धान, इत्यादि पदार्थ चढ़ाए। धान का लावा (खील), गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित करें।
महालक्ष्मी पूजन
कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) को भगवती श्री महालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन (नई) प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिये किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें।
पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा भक्ति पूर्वक सायंकाल महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। श्री महालक्ष्मी जी की मूर्ति के पास ही पवित्र पात्र में केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य लक्ष्मी (रूपयों) को भी स्थापित करें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें।
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन, प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़के-
ॐ अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्मभ्यन्तरः शुचिः ।।
उसके बाद जल अक्षत लेकर पूजन का निम्न मंत्र से संकल्प करें-
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिक मासे कृष्णपक्षे पुण्याममावस्यायां तिथौवार का उच्चारण वासरे… (वार का नाम) गोत्रोत्पन्नः (गोत्र का उच्चारण करें) / गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापानिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्री महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौश्रीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दे।
प्रतिष्ठा
पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण प्रतिष्ठा करें। बाएं हाथ मे चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाए-
ऊँ मना जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पितिर्यज्ञमिमं
तनात्वरिष्टं समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्पतिष्ठ।
ऊँ अस्ये प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्ये देवत्वपमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
पूजन
सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करें इसके बाद कलश तथा षोडशमातृ का (सोलह देवियों का ) पूजन करें। तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें
‘ऊँ महालक्ष्म्यै नमः’ इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना
विधिपूर्वक श्री महालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
युक्तं सदा यक्तव पादवपंकजम् ।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्तयाखिलकामसिद्धये ।।
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्ननां सा में भूयात् त्वदर्चनात् ।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नमः प्रार्थनापूर्वक समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
महालक्ष्मी की आरती
दीपावली पर देवी महालक्ष्मी, भगवान श्रीगणेश, देहली विनायक, दवात, लेखनी, बही, कुबेर, तुला व दीपमाला पूजन के पश्चात महालक्ष्मी की आरती की जाती है। आरती के लिए थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बनाकर चावल तथा पुष्पों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
एक पृथक पात्र में कपूर भी प्रज्जवलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख लें। आरती-थाल व स्वयं की जल से शुद्धि करें (छिड़क लें)। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य परिवारजनों के साथ घण्टानादपूर्वक महालक्ष्मीजी की आरती करें।
मंत्र पुष्पांजलि
आरती पश्चात् दोनों हाथों में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मंत्र का पाठ करें-
ऊँ या श्री स्वयः सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊँ श्री महालक्ष्मै नमः मंत्रपुष्पांजलि समर्पयामि।
समर्पण
पूजन के अंत में-
‘कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम् न मम।’
यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल गिराएं।
विसर्जन
पूजन के अंत मे अक्षत लेकर श्रीगणेश एवं महालक्ष्मी की नूतन प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम।
इष्टकामसमृयर्थ पुनरागमनाय च।
पूजन के विशेष मुहूर्त
धन्वन्तरि प्राकट्य दिवस(धन त्रयोदशी) पर यम निमित्त दीपदान दिनांक 13 नवम्बर 2020 शुक्रवार को सायं 5/59 तक रहेगा।
नर्क चतुर्दशी एवं दीपावली
14 नवम्बर 2020 शनिवार को चतुर्दशी योग दोपहर 2/18 तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त में चतुर्दशी योग में अभ्यङ्ग, तेल उबटन लगाकर स्नान कर अपने इष्ट देवता तथा ग्राम देवता का दर्शन पूजन करना शुभकारी होता है तथा नर्कवास के योग को समाप्त करता है। इसी दिवस अमावस्या काल में महालक्ष्मी पूजन प्रशस्त है।
श्रेष्ठ लग्न मुहूर्त- वृश्चिक लग्न प्रात: 6/53 से 9/08। कुम्भ लग्न दोपहर दोपहर 1/01/से 2/34 तक। वृषभ लग्न सायं 5/44 से 7/42 तक। सिंह लग्न रात्रि 12/11 से रात्रि पर्यन्त 2/24 तक।
श्रेष्ठ होरा मुहूर्त- मद्ममान प्रात: 10/40 तक दोपहर 1.40 तक, दोपहर 2.40 से कुछ लोग चौघड़िया मुहूर्त में भी पूजन कर लेते हैं।