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कैसे देखें पंञ्चांग ?

लक्ष्मी और काल अर्थात् समय का गहन सम्बंध है। लक्ष्मी उन्हीं पर प्रसन्न होती हैं, जो समय को महत्व देते हैं। इसी महत्व को देखते हुए दीपावली पर होने वाली महालक्ष्मी की पूजन में पंचांग की भी पूजन की जाती है। लेकिन इस पूजन का महत्व तभी है, जब हम पंचांग देखकर इसका लाभ ले सकें। तो आईये जानें किस तरह और क्या-क्या जान सकते हैं, हम अपने पंचांग से?

‘‘पंञ्चांग’’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है, पाँच अंगों की जानकारी। काल गणना के पाँचों प्रमुचा अंगों की जानकारी जो दे उसे ही पंचांग कहते हैं। इनमें प्रमुख पाँच अंग हैं, वर्ष, माह, वार, तिथि और नक्षत्र। वास्तव में देखा जाऐ तो स्थूल रूप से पंचांग की शुरूआत इन्हीं के लिये हुई थी, जो कलांतर से सतत शोध से और भी गहन व सुक्ष्म होता चला गया। वर्तमान में पंचांग ज्योतिष का आधार स्तम्भ है, जिसके आधार पर ही कोई भी ज्योतिषी फलकथन कहता है।

देश-शहर के बारे में विस्तृत जानकारी

सर्वप्रथम तो हम पंचांग से सम्बंधित शहर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसमें उस शहर में सम्बंधित दिनं का दिनमान, सूर्योदय-सूर्योस्त का समय, चंद्रोदय-चंद्रास्त तथा खगौलिकीय जानकारी के लिये सम्बंधित शहर के अक्षांश व देशांश शामिल होते है। वर्तमान में पंचांग में देश के सभी प्रमुख शहरों के साथ ही लगभग सम्पूर्ण विश्व के प्रमुख शहरों के देशान्तर भी दिये होते हैं। इन देशान्तरों के द्वारा कुछ गणनाकर हम इन सभी शहरों के सम्बंध में भी यह सभी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

तिथि-वार आदि काल गणना

पंचांगों में ईसवी वर्ष के अनुसार दिनांकों के साथ लगभग उनके सामने ही उस दिनांक की तिथि भी अंकित होती है। उसके आगे सम्बंधित तिथि की समाप्ति का समय ज्योतिषिय कालगणना के अनुसार घटी-पल में और उसके आगे वर्तमान कालगणना पद्धति के अनुसार घंटा-मिनिट में भी दिया होता है।

पंञ्चांग

गत दिनांक की तिथि समाप्ति से उक्त दिनांक की तिथि समाप्ति तिथि तक सम्बंधित तिथि रहती है। अतः हम शुद्धतापूर्वक किसी भी दिनांक को किसी भी समय रहने वाली तिथि को ज्ञात कर सकते हैं। इस सारिणी में सम्बंधित दिनांक के वार के साथ ही नक्षत्र, योग, दिनमान, सूर्योदय-सूर्योस्त आदि जानकारी भी दी जाती है। वर्तमान में इसी सारणी में सम्बंधित दिवस के व्रत-त्यौहार की जानकारी भी अंकित की जाती है।

किसी भी कार्य का मुहूर्त

कहा जाता है कि सही समय पर किसी कार्य शुभारम्भ का अर्थ उसकी आधी सफलता है। इसीलिये हमारी संस्कृति में हर शुभकार्य के लिये मुहूर्त देखा जाता है। यह कार्य सामान्यतः ज्योतिषाचार्य ही करते आये हैं, लेकिन वर्तमान में पंचांगों से आम व्यक्ति भी आसानी से मुहूर्त ज्ञात कर सकता है। वर्तमान में जैसे उदाहरणार्थ उज्जैन से प्रकाशित श्री विक्रमादित्य पंचांग में प्रारम्भ के पृष्ठों में विभिन्न कार्यो के लिये मुहूर्त शुद्ध कर दिये होते हैं।

अतः पाठक इनके द्वारा अपने इच्छित कार्य के लिये मुहूर्त को देख सकते है। इतना ही नहीं विवाह जैसे गहन अवसरों के लिये भी सामान्यतः घर बैठे मुहूर्त देखा जा सकता है। इसके लिये वर-वधू की चंद्र राशि के अनुसार विवाह मुहुर्त शुद्धता पूर्वक दिये जाते हैं। इनमें अतिश्रेष्ठ, पूजा योग्य (अर्थात् मध्यम) व नेष्ट (त्याज्य) का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। चौघड़िये भी सूर्योदय के अनुसार स्पष्ट किये जा सकते हैं।

ज्योतिष गणनाओं का आधार

ज्योतिष के विशेषज्ञ तिथि आदि की गणना वाले पृष्ठ के नीचे दी गई ग्रह स्थिति और लग्न मान से गणना कर जन्म कुण्डली आदि का निर्माण जैसे समस्त ज्योतिषिय कार्य कर सकते हैं। वैसे इसके लिये ज्योतिष की कम से कम सामान्य जानकारी होना आवश्यक है।

फिर भी इसमें सूर्योदय-कालीन समस्त ग्रह स्पष्ट इस तरह किये जाते हैं कि इनसे बड़ी आसानी से सम्बंधित समय व शहर के अनुसार ग्रह स्पष्ट किये जा सकते हैं।

कई जानकारियों का खजाना

वर्तमान में पंचांग अत्यंत वृहद रूप ले चुके हैं। इनमें सूर्य व चंद्र ग्रहण की स्पष्ट स्थिति उसके ग्रहण काल के अनुसार तो दी ही जाती हैं, साथ ही देश आदि के लिये वर्षफल भी स्पष्ट है। इनके साथ जातक का सामान्य राशिफल भी स्पष्ट होता है।

इसके साथ और भी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ पंचांगकर्ता शामिल करते हैं। जैसे श्री विक्रमादित्य पंचांग में अनिष्टकारी ग्रहों की शांति के उपाय, कुंडली मिलान, स्वप्न विचार, वैधव्य, विष कन्या, तथा मांगलिक योग, व्यापार भविष्य आदि कई जानकारियाँ दी गई हैं।


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