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बच्चे के लिए ज्योतिष से करें विषय चयन

जब परिवार में हमारे बच्चे के भविष्य अर्थात् उसकी उच्च शिक्षा की दिशा तय करने का अवसर आता है, तो भारी असमंजस्य की स्थिति बन जाती है। समझ नहीं आता कि उसके लिये क्या अच्छा है और क्या नहीं? ऐसे में ज्योतिष ही सटिक मार्गदर्शन कर सकता है। 

आजकल के विकासशील और आधुनिक युग ने मनुष्य की मानसिक क्षमता को विकसित तो किया ही है, साथ में उसको दूरदर्शिता भी प्रदान की है। बच्चे के जन्म के समय से ही आजकल के माँ-बाप का बच्चे के भविष्य को लेकर सोच-विचार शुरू हो जाता है। बच्चे की मानसिक क्षमता कैसी होगी, किस प्रकार की विद्या वह ग्रहण करेगा किस प्रकार की नौकरी या व्यवसाय वह अपनाएगा, क्या वह अपनी रोजी रोटी अपने बल पर पाएगा?

इस तरह के प्रश्न मन को घेरे रखते हैं। हर बच्चा अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार ही विद्या ग्रहण करता है। माता-पिता को बच्चों की विद्या प्राप्ति के दौरान अनेक कठिनाइयां आती हैं। कई बार बच्चा मेहनत करने के उपरांत भी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण नहीं हो पाता। यह सब परेशानी विद्या अर्थात शिक्षा की गलत दिशा चुन लेने से ही उत्पन्न होती हैं।


जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव से विद्या का विचार किया जाता है। पंचम भाव बुद्धि, मानसिक क्षमता को दर्शाता है। दशम से विद्याजनित यश का विचार होता है। द्वितीय भाव को प्राथमिक शिक्षा का घर माना गया है। जिन ग्रहों का विद्या प्राप्ति के भिन्न-भिन्न विषयों के लिए विचार किया जाता है, वे इस प्रकार हैं, बृहस्पति से वेद वेदान्त, व्याकरण व ज्योतिष विद्या का विचार किया जाता है। बुध से वैंद्यक गणित, कानून नीति, सूर्य से वेदांत, मंगल से न्याय, गणित विद्या, शुक्र से गानविद्या, प्रभावशाली व्याख्यान शक्ति एवं साहित्य, चन्द्रमा से वैद्य, शनि से अंग्रेजी या विदेशी भाषा, राहू और शनि से अन्य देशीय विद्या का विचार होता है।


  • चन्द्र लग्न या लग्न स्थान से पंचम स्थान का स्वामी यदि बुध, शुक्र या बृहस्पति के साथ केन्द्र त्रिकोण या एकादश में बैठे हों तो मनुष्य विद्वान होता है।
  • यदि किसी जन्म कुंडली में विद्याकारक बृहस्पति और बुद्धिकारक बुध दोनों एकत्रित हों तथा शुभ स्थानों में बैठे हों तो बालक बहुत बुद्धिमान होता है।
  • पंचम स्थान के स्वामी और लग्नेश द्वारा स्थान-परिर्वतन का योग बालक को विद्या यशस्वी बनाता है।
  • चतुर्थेश चतुर्थ स्थान में, लग्नेश लग्न में, जातक को विद्वान बनाता है।
  • बुध स्वग्रही तथा उच्च लग्न से केन्द्र या त्रिकोण में हो, तो विद्या सम्पति की प्राप्ति होती है।
  • यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र नवम स्थान में हो तो जातक प्रसिद्ध विद्वान होता है।
  • पंचमेश जिस स्थान में हो और उस स्थान के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या दोनों और शुभ ग्रह बैठें हों, तो जातक तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी होता है।
  • यदि पंचम स्थान शुभ ग्रहों से घिरा हो, बुध और बृहस्पति दोष रहित हो, नवांश में भी उनकी स्थिति लाभदायक हो तो जातक तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है।
  • यदि पंचमेश छठें, आठवें या बारहवें भाव में हो तो विद्या प्राप्ति में कठिनाइयां आती हैं।
  • यदि पंचमेश, बुध, बृहस्पति व शुक्र दुःस्थानगत हो, या अस्त हो तो जातक मंदबुद्धि को होता है।
  • पंचम स्थान पर पाप ग्रहों की दृष्टि या पाप ग्रहों की उपस्थिति, बुध की छठें, आठवें, बारहवें स्थान की उपस्थिति स्मरणशक्ति को क्षीण करती है तथा जातक विद्या प्राप्ति नहीं कर पाता।

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