ज्योतिष ज्ञान की ज्योति- अनुसूया मालू
पुरुष आधिपत्य वाले क्षेत्र में महिलाओं को अपना स्थान बनाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। यह संघर्ष और भी कड़ा हो जाता है, जब इसमें उम्र भी बाधक बन जाती है। लेकिन ऐसी सभी बाधाओं को परास्त कर ज्योतिष-वास्तु के क्षेत्र में उम्र के 45वें पड़ाव पर अपनी ज्योतिर्विद के रूप में यात्रा प्रारम्भ करने वाली जयसिंहपुर जिला-कोल्हापुर निवासी अनुसूया मालू वास्तव में सिर्फ ज्योतिष की ही नहीं बल्कि प्रेरणा की ज्योति से भी कम नहीं हैं।
समाजसेवा का क्षेत्र हो या ज्योतिष – वास्तु आदि की बात, जयसिंहपुर जिला-कोल्हापुर (महा.) में जब भी इन क्षेत्रों के अग्रगण्य लोगों की चर्चा होती है, तो उसमें समाज सदस्य संजय मालू की धर्मपत्नी 56 वर्षीय अनुसूया मालू का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है। ज्योतिर्विद, वास्तुविद् व हस्तरेखा विशेषज्ञ के रूप में उनकी पहचान सम्पूर्ण महाराष्ट्र में एक ऐसी ज्योतिष व वास्तुविद् के रूप में है, जो इस क्षेत्र में अपने गहन अध्ययन से विश्वास का दूसरा नाम बन गई हैं।
उनके प्रति विश्वास का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि उनका प्रधान कार्यालय तो जयसिंगपुर जिला-कोल्हापूर में कार्यरत हैं ही, इसके साथ इचलकरंजी, सांगली, कोल्हापुर व पुणे में भी उनके परामर्श कार्यालय ‘महालक्ष्मी ज्योतिष’ सफलतापूर्वक कार्यरत हैं। अपने इन सभी कार्यालयों द्वारा उन्होंने अपने इस परामर्श को ‘कार्पोरेट लूक’ तो दिया है, लेकिन अपनी इस सेवा को विशुद्ध व्यवसाय कभी नहीं बनने दिया।
उम्र के 45वें पड़ाव पर शुरूआत
ज्योतिष में भास्कराचार्य जैसी उच्च उपाधि प्राप्त स्व.श्री मिठुलालजी दाड के यहाँ 18 सितम्बर 1966 को जालना में जन्मीं श्रीमती मालू की इस गूढ़ ज्ञान की ओर बढ़ने की यात्रा अत्यंत रोचक है। श्रीमती मालू को बचपन से पढ़ाई का शौक था लेकिन 24 नवम्बर 1986 को जल्दी विवाह होने के कारण पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी। फिर पारिवारिक जिम्मेदारियों में ऐसी व्यस्त हुई कि कुछ करने का अवसर ही नहीं मिला।
लेकिन उनके अन्तर्मन में उच्च शिक्षा ग्रहण करने की कसक बराबर बनी हुई थी। इसी के चलते पति की प्रेरणा से आखिरकार 45 साल की उम्र मे पढ़ाई पुनः शुरू की और अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया। इसके बाद जीवन ने नया मोड़ लिया। उनकी रूचि ज्योतिष – वास्तु आदि के क्षेत्र में थी। अत: वर्ष 2009 में हस्तरेखा शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर वर्ष 2011 में वास्तुविशारद तथा वर्ष 2012 में ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने भास्कराचार्य तक शिक्षा प्राप्त की।
उनकी जुबानी उनकी कहानी
श्रीमती मालू बताती हैं कि गुरुजी को शंका थी, मैं एक माहेश्वरी नारी भास्कराचार्य नहीं बन पाऊंगी। पर मेरी कठोर मेहनत और समर्पित लगन को देखकर वे भी हतप्रद रह गये। मैं अव्वल नंबर सें पास होकर अपनी लगन से पढ़ाई पूरी करती हुई आगे बढ़ती ही रही।
8 साल की पूरी पढ़ाई की और आचार्य तथा भास्करचार्य पद लेने के बाद ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ बैंगलोर आश्रम में मंत्र शास्त्र दीक्षा लेते हुए, ध्यान, प्राणायाम एवं ब्लेसिंग कोर्स को पूरा किया। वर्तमान में वैदिक धर्म संस्था से जुड़कर भी कार्यरत हूँ। अभी तक ज्योतिष शास्त्र में मंत्रों का महत्व, सुखी जीवन के सूत्र तथा ज्योतिषशास्त्र का हमारे जीवन में महत्व आदि जैसे विशिष्ट विषयों पर श्रीमती मालू अपने व्याख्यान भी दे चुकी है।
समाज व परिवार भी साथ-साथ
श्रीमती मालू अपनी इस ज्योतिष यात्रा में समाज व परिवार की जिम्मेदारी से भी बिल्कुल दूर नहीं हुई है। आप महिला संगठन से लम्बे समय से जुड़ी रही हैं। महाराष्ट्र प्रदेश माहेश्वरी महिला संगठन में सचिव रहीं हैं एवं वर्तमान में अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं।
उनका एक पुत्र तथा एक विवाहित पुत्री का पौत्र-पौत्री तथा नाति-नातिन आदि से भरापूरा परिवार है, जिसकी जिम्मेदारी भी वे सफलतापूर्वक सम्भाल रही हैं। उनके इन्हीं योगदानों को देखते हुए उन्हें महिला संगठन द्वारा अभी तक ज्ञान, टेलेंट, आदर्श नारी तथा आदर्श माता आदि कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।