पर्यावरण प्रेमी परिवार के संस्थापक- गौरव मालपानी
जब मन में जुनून हो और कुछ करने का हौसला हो तो किस तरह लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है, इसका पर्याय बन चुके हैं, उज्जैन निवासी गौरव मालपानी । मात्र 3 माह पूर्व प्रारम्भ उनकी संस्था “पर्यावरण प्रेमी परिवार” वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण के एक अभियान का रूप ले चुकी है।
उज्जैन शहर में स्वयंसेवी संस्था “पर्यावरण प्रेमी परिवार” न सिर्फ पौधारोपण कर शहर को हरा भरा करने में जुटी है, अपितु पेड़-पौधों की रक्षा में भी योगदान दे रही है। 8 वर्ष के बच्चे से लेकर 95 वर्ष के वयोवृद्धों वाले इस परिवार की पहचान ही धीरे-धीरे नाम के अनुरूप “पर्यावरण प्रेमी” ही बन गई है।
मात्र 3 माह पूर्व 11-12 सदस्यों के साथ प्रारम्भ इस संस्था से अब तक 22 पर्यावरण प्रेमी तन-मन-धन से जुड़ चुके हैं और अब तक उनकी संस्था 1100 से अधिक पौधों का न सिर्फ रोपण कर चुकी है, बल्कि उनकी नियमित रूप से पूरी तरह देखरेख भी कर रही है।
कोरोना काल में मिली प्रेरणा
श्री गौरव मालपानी का जन्म 25 दिसंबर 1984 को मंदसौर जिला (म प्र) के छोटे से ग्राम गर्रावद में राजेंद्र कुमार मालपानी व पुष्पा मालपानी के यहाँ हुआ था। लगभग 26 वर्ष पूर्व जब श्री मालपानी 8वीं कक्षा में अध्ययनरत थे, तभी से उनका परिवार उज्जैन में स्थापित हो गया। वैसे तो श्री मालपानी ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है, लेकिन कक्षा 10वीं में अध्ययन करते हुए ही वे अपने पारिवारिक इलेक्ट्रिक व सेनेटरी व्यवसाय से सम्बद्ध हो गए।
वर्तमान में पिताजी के मार्गदर्शन में यह व्यवसाय होलसेल के रूप में सुस्थापित हो चुका है। कोरोना महामारी की दूसरी लहार के दौरान जब ऑक्सीजन की कमी से लोगों को दम तोड़ते हुए देखा तो श्री मालपानी ने अपनी तमाम व्यावसायिक व्यस्तता के बावजूद पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कुछ करने का बीड़ा उठा लिया। उनकी इस सोच ने उनसे 3 माह पूर्व संस्था “पर्यावरण प्रेमी परिवार” की स्थापना उनके मित्रों के साथ मिलकर करवा दी।
ऐसे काम करती है उनकी संस्था
पर्यावरण प्रेमी परिवार से वर्तमान में न सिर्फ 22 सदस्य बल्कि उनके पूरे परिवार ही सम्बद्ध हैं। शुरुआत तो मात्र 15 पौधों के रोपण से हुई थी, लेकिन वर्तमान में उनका संगठन हर रविवार को 101 पौधों का न सिर्फ रोपण करता है, बल्कि उनकी देखरेख भी करता है।
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इसमें लागत व समय को कम करने के लिए उन्होंने आधुनिक मशीनों की व्यवस्था भी की है। गड्ढे खोदने के लिए सेमीऑटोमैटिक मशीन है। वहीं किसी भी प्रकार की कटिंग के लिए डीसी कटर है। नतीजा यह है कि अब 22 मिनट में गड्ढे खोदकर 101 पौधे रोपित भी कर दिये जाते हैं।
अन्य समाजसेवी संस्थाओं को इसी उद्देश्य से वे अपनी ये मशीन प्रदान भी कर देते हैं। गत 15 अगस्त तक उनकी टीम 1100 से अधिक पौधे रोप चुकी है।
लोहे के ट्री गार्ड का उपयोग नहीं
श्री गौरव मालपानी का संगठन रोपे गए पौधों की सुरक्षा के लिये लोहे के ट्री गार्ड न लगाकर बांस की चिपटों व सुतली से पौधों के आसपास सुरक्षा की व्यवस्था करता है। इसके पीछे श्री मालपानी कारण बताते हैं कि जब पौधे बड़े होकर पेड़ का रूप लेते हैं, तो लोहे के ट्री गार्ड उसके तने में फंसकर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
अतः इनका उपयोग या तो करें नहीं और करना पड़े तो जैसे ही पौधे बड़े होने लगे समय पर इन्हे निकाल दें। श्री मालपानी की टीम अपने डीसी कटर द्वारा ऐसे कई पेड़ों के ट्री गार्ड काटकर उन्हें जीवनदान भी दे चुकी हैं, जिनके तने में ये फंस गए थे।
परिवार भी अभियान में साथ-साथ
उनके इस अभियान में श्री मालपानी सहित उनके सभी साथियों के परिवार भी जुड़े हुए हैं। श्री गौरव मालपानी के साथ-साथ उनके माता-पिता, पत्नी पूजा मालपानी, अनुज, सौरभ एवं विधि मालपानी सहित इनके चारों बच्चे भी इस अभियान में सहयोग देते हैं।
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इसके अंतर्गत फलदार, छांवदार तथा औषधीय पौधों का नर्सरी से खरीदकर रोपण होता है लेकिन पौधों की कमी न हो इसके लिये श्री मालपानी अपने मकान की छत पर भी आम एवं नीम के पौधे तैयार कर रहे हैं। इसके लिये वे आम की गुठलियां एकत्र कर उन्हें नर्सरी की तरह बो कर पौधे तैयार करते हैं। वर्तमान में उनके मकान की छत पर लगभग 250 से अधिक आम के पौधे तैयार हो चुके हैं।
पौधों के रोपण के समय उनकी टीम माइक, स्पीकर के साथ पौधों को भजन भी सुनाती है, जिससे उनकी वृद्धि ठीक से हो। इस कार्य में समाज बंधू नितेश कासट, मुकेश जावंधिया, कमलेश जवंधिया, मयूर सारडा, पुनीत माहेश्वरी, आनंद राठी एवं राजीव माहेश्वरी आदि का तन मन धन से सहयोग रहता है।