वास्तव में क्या हैं महालक्ष्मी
वर्तमान दौर में लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ धन सम्पदा ही बनकर रह गया है। यही कारण है कि इसी की प्राप्ति के लिये सभी प्रयास किये जाते हैं। जबकि हकीकत देखें तो इसका अर्थ अत्यंत व्यापक है और महालक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत पवित्र-पावन, सिर्फ धन – दौलत तक सीमित नहीं।
हमारे प्राचीन ऋषियों का प्रत्येक कार्य तप, ध्यान इत्यादि का उद्देश्य हमेशा शुभ एवं आध्यात्मिक समृद्धि के लिए होता था। तब लक्ष्मी का अर्थ जीवन के चार आयामों धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के समन्वय से जीवन को परमतत्व के मार्ग पर ले जाना था। हमारी सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में भी लक्ष्मी देवी का उल्लेख आता है परंतु वहां लक्ष्मी का अर्थ धन की देवी नहीं, सौभाग्य एवं धर्म की देवी है, जो मानवीय लक्ष्य की ओर किया हुआ इशारा है। धन की उपयोगिता सीमित है। इस संसार में आप धन से सबकुछ नहीं प्राप्त कर सकते। न धन से आप माता-पिता खरीद सकते हैं, न प्रेम, न ज्ञान। ऐसा बहुत कुछ है जो धन से नहीं खरीदा जा सकता। परंतु सौभाग्य से आप जो चाहें वो प्राप्त कर सकते हैं। अथर्ववेद में भी लक्ष्मी को शुभता, सौभाग्य, संपत्ति, समृद्धि, सफलता एवं सुख का समन्वय बताया गया है। पुराणों में लक्ष्मी के आठ प्रकार बताए गए हैं जिन्हें ‘अष्ट-लक्ष्मी’ के नाम से संबोधित किया गया है। ये हैं आदिलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी एवं धनलक्ष्मी।
सिर्फ सद्लक्ष्मी ही हैं महालक्ष्मी
लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय मानी गई है। विभिन्न देवताओं की भिन्न-भिन्न शक्तियों का मूल स्त्रोत भी माता लक्ष्मी ही हैं। पुराणों कें अनुसार माता लक्ष्मी ने अग्निदेव को अन्न का वरदान दिया, वरुण देव को विशाल साम्राज्य का, सरस्वती को पोषण का, इंद्र को बल का, बृहस्पति को पांडित्य का इत्यादि-इत्यादि। इससे सिद्ध होता है कि माता लक्ष्मी की कृपा जिस पर भी हो जाए उसे नाना प्रकार के ऐश्वर्य, सुख, साधन, वैभव की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी के हाथ में कमल है। शास्त्रों में कमल को ज्ञान, आत्म एवं परमात्म साक्षात्कार एवं मुक्ति का प्रतीक माना गया है। हमारा लक्ष्य जल-कमलवत् रहने की शिक्षा देना है। इसका अर्थ है कि समस्त ऐश्वर्य के बीच रहते हुए भी जीव को निर्लिप्त रखना। माता के दोनों ओर दो गज शक्ति का प्रतीक हैं। माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जो अंधेरे में भली-भांति देखने में सक्षम है। इसका अर्थ है कि जब चहुंओर दुःख का अंधकार छाया हो तो माता की कृपा से हमारी दृष्टि सम्यक रहती है एवं हम अपना मार्ग सरलता से ढूंढ सकते हैं। माता लक्ष्मी के हाथ से हमेशा धनवर्षा होती रहती है जो इस बात की सूचक है कि हमें केवल धन का संग्रह ही नहीं करना है अपितु उसे वास्तविक सत्य-धर्म कार्य के लिए खर्च कर धर्मार्थ के मार्ग को सार्थक भी करना है।
लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये जरूरी नारी सम्मान
माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया है जो सर्वश्रेष्ठ हैं। लक्ष्मीजी विष्णुप्रिया हैं। माता सदा विष्णुजी के चरणों में रहती हैं। यह इस बात का द्योतक है कि धन आदि ऐश्वर्य सदा उत्तम पुरूषों के पास ही टिकता है जो विष्णु भगवान के गुण अपनाते हैं अर्थात सिर्फ लक्ष्मीजी की पूजा आराधना से लक्ष्मी नहीं आती। अधम पुरुष जो विष्णुजी के आचरण के विपरीत व्यवहार करते है उनको लक्ष्मीजी की प्राप्ति नहीं होती और यदि संयोगवश प्राप्ति हो भी जाए तो लक्ष्मीजी वहां हमेशा के लिए टिकती नहीं है। कलियुग में लक्ष्मी का वास नारी में कहा गया है। अतः कन्या के जन्म पर कहा जाता है कि लक्ष्मी जी पधारी हैं। विद्वानों का ये भी कहना है कि यदि हम कन्या के अवतरण पर निराश हो जाते हैं तो लक्ष्मी उल्टे पांव लौट जाती है। जिस घर में नारी का आदर होता है, वहां माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है एवं जहां नारी का अनादर होता है, वहां से लक्ष्मी का पलायन हो जाता है। माता लक्ष्मी की कृपादृष्टि हेतु समस्त नारी जाति का सम्मान करना अत्यावश्यक है। चूंकि माता लक्ष्मी समस्त प्रकार के ऐश्वर्य की प्रदात्री हैं इसलिए माता लक्ष्मी को केवल धन की देवी मानने की भूल न करें।
गृहलक्ष्मी को भी रखें प्रसन्न
यदि आप चाहते हैं कि दीपावली पर माता महालक्ष्मी को इस तरह प्रसन्न करें जिससे सुख समृद्धि की आपके परिवार पर वर्षा हो, तो शास्त्रोक्त पूजा के साथ कुछ उपाय भी जरूरी हैं। इसमें सबसे प्रथम है, गृहलक्ष्मी की प्रसन्नता। याद रखें शास्त्र वचन है, ‘‘यस्य नार्यस्तु पूज्यंते’’ अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है। वास्तव में देखा जाऐ तो यहाँ इस वचन का सम्बंध सुखी दाम्पत्य से भी है। आपका दाम्पत्य जीवन स्नेहिल, सुगंधित और पुष्पित हो, इसके लिए आवश्यक है कि आप अपनों से आत्मीय रूप से जुड़ें,एक-दूसरे को अपनाएं। दाम्पत्य जीवन में उस लड़की को मान-सम्मान दें, जो सब कुछ छोड़कर आपके घर-संसार में आकर मिल गई है। आप उसका जितना आदर करेंगे, वह आपके प्रति, आपके परिवार के प्रति उतनी ही अधिक समर्पित होगी। समर्पण का यह भाव ही दाम्पत्य जीवन का आदर्श है।