सही नियम से ही करें योगासन
योगासन सम्पूर्ण मानवता को भारतीय मनीषियों की अनुपम देन है। कुछ वर्ष पूर्व तक आम दुनिया के लिये अनजान समझे जाने वाले योग की स्थिति आज यह है कि वर्तमान में विश्व योग दिवस मनाया जा रहा है। कारण यह है कि योगासन वह चमत्कारिक लाभ देते हैं, जो कोई दवा भी नहीं दे सकती। बस इसके लिये जरूरी है, सही नियम।
हठयोगप्रदीपिका के अनुसार युवा, वृद्ध, अतिवृद्ध, व्याधित या दुर्बल ऐसे कोई भी व्यक्ति योगासन का अभ्यास कर योगसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। ‘योग’ यह बच्चों में शारीरिक व्यायाम एवं श्वसन, एकाग्रता, तनावमुक्ति के लिए एक उत्कृष्ट प्रशिक्षण है। इसी को ध्यान में रखते हुए कई योग शिविर ही नहीं बल्कि पाठशालाओं में भी योग का प्रशिक्षण दिया जाता है।
वैज्ञानिक स्वयं अब योग के बारे में यह स्वीकार करने लगे हैं कि ये अपने आपमें एक चिकित्सा विज्ञान है और वह भी चिकित्सा की अन्य विधाओं की तरह अत्यंत प्रभावशाली। याद रखें इसमें सही तरीके से किये गये योगासन ही औषधि का काम करते हैं।
ऐसे करें योगासन:
- आसनों का अभ्यास प्राय: प्रात:काल में खाली पेट करना चाहिए। इसके लिए प्रात: 5 से 7 बजे तक का समय सबसे अधिक अनुकूल तथा बेहतर होता है। वास्तव में यदि सुबह समय न हो, तो सायंकाल में भी आसनों का अभ्यास कर सकते हैं। शौच आदि के बाद ही आसनों का अभ्यास करें।
- योगासनों का अभ्यास पवित्र, स्वच्छ तथा समतल भूमि, जहाँ आवाज न हो ऐसी जगह पर करें।
- योगासनों के अभ्यास के लिए जमीन पर कम्बल जैसे वस्त्र बिछाने चाहिए। आजकल बाजार में उपलब्ध होने वाली खास चटाई (योगमेट) का प्रयोग भी योगासन करने के लिए कर सकते हैं।
- आसन करने के तुरंत बाद कुछ खाना नहीं चाहिए। आसन करने के बाद कम से कम आधे घंटे तक किसी भी प्रकार का भोजन चाहे खाद्य रूप या पेय रूप न खाए पीऐं।
- अधिक उम्र वाले, कमजोर हड्डियों वाले व्यक्तियों एवं रज:प्रवृत्ति समय तथा गर्भवती महिलाओं को यदि योगासन करने ही हों तो, शिक्षक या विशेषज्ञ के पर्यवेक्षण में ही करें।
- प्रशिक्षित योगाभ्यासी या ‘योग शिक्षक’ की सलाह के अनुसार तथा उनके निरीक्षण में ही योगासन की शुरूआत एवं उनका अभ्यास करें।
- योगा अभ्यास के शुरुआती दिनों में सुखासन, पद्मासन जैसे सुलभ आसन करें। बाद में यथा समय कठिन आसन धीरे-धीरे किए जा सकते हैं। खुद से करने की अनुमति नहीं मिलती, तब तक शिक्षक के पर्यवेक्षण में आसनों का अभ्यास करें।
किसमें कौन से योग उपयुक्त:
सिद्धासन- दीर्घकाल बैठने के लिए करें
कुक्कुटासन- पेट की समस्या जैसे अपचन, अंगमर्द में लाभ दे।
वङ्काासन – जठराग्नि वृद्धि करें, पाचन सुधारे, आध्मान, आनाह तथा अधोवायु में लाभ दे।
सर्वांगासन- पृष्ठवंश (रीड की हड्डी) का रक्त संवहन सुधारे, साथ ही लचीलापन बढ़ाए।
मत्स्यासन- जठराग्निवृद्धि करे, श्वास (दमा) जैसे विकारों में लाभ दे। उर:, ग्रीवा एवं कटिकी मांसपेशियों का तनाव कम करें।
हलासन- पृष्ठवंश (रीड की हड्डी) तथा यकृत के लिए लाभकारी, जीर्ण मलावष्टंभ, अधोवायु में अवश्य करें।
भुजंगासन- प्रजनन संस्थान के अवयवों के लिए हितकर, कुब्ज, अजीर्ण में करें, गर्भिणी में वर्ज्य है।
धनुरासन- कब्ज, संधिगत विकार एवं पाचन संस्थान के विकार जैसे अजीर्ण आदि में लाभ दे।
पश्चिमोत्तानासन- स्थौल्य में उदरवृद्धि (तोंद) कम करें, यकृत- प्लीहा के कार्य सुधारे, अर्श, मधुमेह व्याधि में लाभ करे, स्वास्थ्य बनाए रखे।
मयूरासन- तुरंत ताजगी लाए, अजीर्ण, गुल्म, उदर, यकृत के विकार जैसे रोगों में लाभ दें। शरीर में रक्त संवहन सुधारे।
मत्स्येंद्रासन- वायु की गति का नियमन एवं जठराग्निप्रदीप्त करे।
शवासन- थकान दूर करे, मन को शांति दे।
सिद्धासन/वङ्काासन/मुक्तासन/गुप्तासन- सभी आसनों में मुख्य आसन है, जो 72000 नाड़ियों का मल शोधन करे।
पद्मासन- सभी व्याधियों में हितकर, विशेषत: कटितथा अधो भाग के नाड़ियों को दृढ़ एवं लचीला बनाए।
भद्रासन- समस्त व्याधियों में लाभ दे।
उष्ट्रासन- ग्रीवा एवं पसलियां दृढ़ बनाए, कटि और उदर की स्थूलता कम करे, त्रिदोष नाशन, पचनशक्ति की वृद्धि करे, शरीर में लचीलापन बढ़ाए।
चक्रासन- उर, उदर, कटि, ग्रीवा, हस्त, पाद तथा जानु इन सभी अवयवों का बल एवं लचीलापन बढ़ाए साथ ही स्वास्थ्य बढ़ाए।
बध्दपद्मासन- तन्द्रा-निद्रा-आलस्य, मलावष्टंभ तथा स्वप्न दोष में लाभ दे, पचनशक्ति बढ़ाए। कटि से उपर के अंगों की पुष्टिकर, श्वास, कास, भगंदर में लाभ दे। उदरवृद्धि व कब्ज में लाभ दे।
अर्धमत्स्येंद्रासन- कटि, जंघा, वक्ष, बाहु, ग्रीवा की नाड़ियों तथा स्नायु की पुष्टि करे, पचन सुधारे, साथ ही मूत्रदाह, प्रमेह में लाभ दे।
धनुरासन- पृष्ठवंश (रीड की हड्डी) को लचीला, दृढ़ तथा पुष्ट बनाए, मन्दाग्नि, अधोवायु में लाभ दे। स्कन्ध से लेकर बाहु, पाद, जंघा एवं जानु की मांसपेशियों तथा नाड़ियों को ताकत दे।
त्रिकोणासन- संपूर्ण शरीर में योग्य प्रकार से रक्त का संवहन करने में मदद करे, पृष्ठ, कटी, ग्रीवा, स्कन्ध तथा हस्त को बल दे।
शीर्षासन- अच्छी नींद आने में लाभकर, नाक, कान एवं मुख की व्याधियों में लाभ दे। यह आसन 10 मीनिट से ज्यादा समय तक न करें।
शलभासन- पैर की मांसपेशियों को सुदृढ़ बनाए। बात, पित्त एवं कफजन्य विकार तथा मधुमेह में लाभ दे।
हलासन- उर एवं पृष्ठ की पुष्टि करने में लाभ दे, जठराग्नि तथा क्षुधा वृद्धि करे, उदर, पृष्ठ कटिकी पीड़ा में लाभ दे।
ऊर्ध्वसर्वांगासन- मस्तिष्क, हृदय, फुफ्फुस इन अवयवों की पुष्टि करे। वात एवं रक्त के विकार में लाभ दे, पाचनशक्ति बढ़ाए।
योगों का योग है सूर्य नमस्कार:
सूर्य नमस्कार यह बारह आसनों का समूह है। यह बारह नमस्कारों का एक आवर्तन है, जिसमें दक्षासन, नमस्कारासन, पर्वतासन, हस्तपादासन, पादप्रसरणासन, मूधरासन, चतुरंगप्रणिपातासन, अष्टांगप्रणिपातासन, भुजंगासन, पुन:मूधरासन, एकपादस्थितासन एवं पुन: हस्तपादासन का अन्तर्भाव होता है। इन्हीं बारह आसनों के आधार पर सूर्यनमस्कार की बारह अवस्थाएं हैं।
इसके प्रयोग से शरीर में लाघव उत्पन्न होता है। जाठराग्नि बढ़ती है तथा मन और शरीर सुदृढ़ होता है। ‘योग’ यह एक ऐसी कला है, जिसके द्वारा मन, शरीर एवं आत्मा का नियंत्रण किया जा सकता है। खासकर, योगासनों के अभ्यास से मांसपेशियों की ताकत, लचीलापन बढ़ने के कारण स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद होती है, जो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अत्यंत आवश्यक है।