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समाज के युवाओं का नौकरी की ओर रुझान कितना उचित कितना अनुचित?

उद्योग-व्यवसाय ‘‘माहेश्वरी’’ के खून में रचा बसा है। यही कारण है कि माहेश्वरी समाज की इस क्षेत्र में सफलता के ध्वज न सिर्फ देश बल्कि विश्व भर में फहराये जा रहे हैं। इस सबके बावजूद गत कुछ वर्षों में समाज के युवाओं की सोच में एक बड़ा परिवर्तन आया है। वह उद्योग-व्यवसाय की बजाय नौकरी की ओर भाग रहा है। ऐसे में चिंतनीय हो गया है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या लक्ष्मी पुत्रों के इस समाज के युवाओं का नौकरी की ओर रूझान उचित है या अनुचित? आईये जानें, इस स्तम्भ की प्रभारी मालेगांव निवासी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।

आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण

माहेश्वरी भूले व्यापार-परिभाषा
-सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

बचपन में पापा की कही बात बड़े होने पर समझ में आई कि पढ़-लिखकर टेबल के इस पार नहीं टेबल के उस पार जाने के काबिल बनो। मतलब पढ़-लिखकर जीविकोपार्जन के लिए जी-हुजूरी नहीं करनी है। आज पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी का नौकरी की तरफ रुझान बढ़ता जा रहा है। अर्थव्यवस्था की परिस्थितियां ऐसी हैं कि व्यापार में आर्थिक उतार-चढ़ाव निरंतर आ रहे हैं। व्यापारी वर्ग काफी मानसिक तनाव को झेल रहे हैं। यह भी एक वजह है कि माता-पिता नौनिहालों को व्यवसाय करने के लिए जोर नहीं देते। जैसे-जैसे शिक्षा का मोल बढ़ता जा रहा है, डिग्री़ज पहचान बनने लगी हैं और नौकरी की तनख्वाह से काबिलियत का आंकलन होने लगा है।


नौकरी में व्यापारी की तरह 24/7 मानसिक तनाव नहीं होता। व्यवसाय में काम करने की समयावधि तय नहीं है, दिन हो या रात व्यापारी तो लेन-देन, खरीद-फरोख्त, नफा-घाटा, मूल-ब्याज आदि में उलझा रहता है। सप्ताहांत छुट्टियों का मजा लेना, जीवन में सुकून के पलों को जीना, परिवार और दोस्तों के साथ में घूमना-फिरना आदि मौज मस्ती युवा पीढ़ी की सोच और चाहत रहती है, जो एक व्यवसायी के जीवन में बड़ी खींचतान से मिल पाती है। व्यापार में होने वाले आर्थिक जोखिम उठाने का जिगर भी तो नहीं है, आज की नव-पीढ़ी के पास। वर्तमान को जीने वाली युवा पीढ़ी अपनी सात पुश्तों के लिए धन संचय की इच्छा भी नहीं रखती। उन्हें सिर्फ अपनी सैलरी और बोनस से संतुष्टि महसूस होती है। माना कि व्यापारी की बंद मुट्ठी में कमाई आज की नौकरी से औसतन अधिक ही रहती है, पर आज का युवा सिर्फ कमाई की तरफ नहीं भागता। माहेश्वरियों ने ही तो पूरे विश्व को व्यापार का पाठ पढ़ाया है। व्यापार तो माहेश्वरियों की पहचान थी, पर आज हम उक्त कारणों से अपनी ही पहचान भूलाते जा रहे हैं। अगर हम इन सभी कारणों का निवारण ढूंढ पाएं तो हम अपना व्यावसायिक अस्तित्व फिर से पा सकते हैं। अनुभवी व्यापारी वर्ग को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए तभी माहेश्वरी युवा वर्ग जी-हुजूरी की पंक्ति से बाहर निकल पाएगा।

यह परिवर्तन का नियम
-श्रीकांत बागड़ी, उज्जैन

ये सत्य है कि माहेश्वरी समाज के लोगों ने व्यापार उद्योग धंधों के लिए विश्व में अपनी पहचान बनाई। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद, माहेश्वरी समाज के तत्कालीन युवाओं ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए, राजस्थान छोड़कर मुंबई, कोलकाता, मद्रास आदि कई स्थानों की ओर कूच किया था। ये उस समय एक बड़ा बदलाव था। इस परिवर्तन से माहेश्वरी ने पूरे भारत के व्यापार में, अपनी पकड़ बनाकर, अपनी उन्नति को बरकरार रखा। आज समीकरण में काफी बदलाव आया है। परंपरागत व्यापार सुकड़ते जा रहे हैं। शिक्षा में हमारे युवा काफी आगे बढ़ गए हैं। दूसरी ओर व्यापार में कम पढ़े अमर्यादित लोगों के आने से, पीढ़ियों की प्रतिष्ठा लुप्त होती जा रही है। ऐसे में युवाओं का झुकाव नौकरी की तरफ होना सर्वथा उचित ही है। आज की नौकरी में प्रोफेशनलिज्म है।

गहन चिंतन ज़रूरी
-पूजा नबीरा, काटोल

युवाओं की सोच में परिवर्तन के लिए भूमिका या पृष्ठभूमि की तैयारी करने की ज़िम्मेदारी समाज की नई सोच ने उठाई है। माता-पिता भी यही बीज उनके अंतर्मन में रोपित करते हैं कि यदि उनका चयन पढ़-लिखकर नौकरी के लिए नहीं हुआ तो वे नाकाबिल हैं और बहुत अच्छा व्यवसाय होने के बाद भी वे बच्चों को कुछ साल जॉब करने के लिए प्रेरित करते हैं। समाज में यह प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है कि इतने लाख के पैकेज का जॉब बच्चे कर रहे हैं। अगर पढ़-लिखकर वे सीधे व्यवसाय संभालें तो उनकी प्रतिभा कम आंकी जाती है। यही कारण है वे सीधे विदेश का ऑफर स्वीकार कर लेते हैं और वही के होकर रह जाते हैं। मन में बचपन से प्रतिस्पर्धा उनके मन में नौकरी के लिए ही होती है। हम स्वयं नौकर ही बनना चाहते हैं जबकि हमारा मूल गुण है कि अनेक लोगों को हम रोज़गार दे पाने में सक्षम हो। अतः शिक्षा के बाद भी उनको अपने व्यवसाय को शीर्ष तक ले जाने कि शिक्षा दी जानी आवश्यक है। हम मूल रूप से वैश्य हैं। गुण धर्म से व्यवसाय करने के लिए समर्पित। अतः पुनः इस पर गंभीरता से विचार, चिंतन, मनन होना चाहिए, जिससे हम व्यावसायिक हुनर को परिमार्जित कर पुनः नए उद्योग धंधे स्थापित कर लोगों के लिए रोज़गार के मार्ग खोल सकें व शिक्षा के उपयोग से नई ऊंचाइयां छु सकें।

नौकरी की ओर रुझान उचित
-आरती बाहेती, जयपुर

उद्योग व्यवसाय माहेश्वरी के खून में रचा बसा है। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि युवा पीढ़ी व्यवसाय के बजाय नौकरी की ओर पलायन कर रही है। उन्हें लगता है कि शिक्षा के माध्यम से जो डिग्री उन्होंने हासिल की है, उनका सही इस्तेमाल वो व्यवसाय की बजाय नौकरी से ही कर सकते हैं। कम मेहनत और बिना पूँजी के वो व्यवसाय में जितना कमा सकते हैं उसकी तुलना में नौकरी में सैलरी के अलावा बोनस, भत्ता और अनेक प्रकार की सुविधाएं मिलती है। इन सभी का आज की शिक्षित युवा पीढ़ी फायदा उठाना चाहती है, जो कि सिर्फ नौकरी में ही संभव है। अतः मेरे हिसाब से नौकरी की ओर रुझान उचित है।


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