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जीवन जीने की एक कला है सकारात्मकता

सकारात्मकता वास्तव में जीवन जीने की एक कला है। जिसमे निपुणता हमारे जीवन को एक नया नजरिया देती है। वो नज़रिया जिससे इंसान सिर्फ आगे ही बढ़ता है और हमेशा आत्मसंयमित तथा संतुलित रहता है, फिर चाहे जो परिस्थिति आए या जिस मोड़ पर वो खुद को खड़ा पाए, वो उसका सामना कर ही लेता है।

सकारात्मकता हमारे दिमाग की एक अवस्था है, जिसमे आप हमेशा सकारात्मक ही सोचतें हैं अर्थात कैसा भी समय आया हो अच्छा या बुरा आप एक ही दिशा में विचार रखते हैं, तो वो सकारात्मकता कहलाती है। ये वो अवस्था है, जो सबको हासिल करना है। मुमकिन भी है पर वास्तविकता में उसकी तरफ मेहनत बहुत कम लोग ही करते हैं। क्योंकि उस तरफ आगे बढ़ने के लिए भी दिमाग में एक आशावादी सोच का होना ज़रूरी है।

सकारात्मक कैसे बनें:

इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण ये है कि आपको सकारात्मक रहने का अभ्यास करना होगा। उसके लिए हमेशा अपनी सोच को उसी दिशा की ओर प्रेरित करना होगा। नकारात्मक विचार आते हैं ये सच है पर उनसे चिपकिए मत। उनसे दूर हो जाईए। वो ऐसे कि आपको जब भी लगे कि अब विचार अपनी दिशा से भटक रहे हैं, तो उसी समय एक ऐसा पल याद करें, दिन का या कुछ समय पहले का जब आप किसी चीज़ से बहुत खुश हुए थे और आपको अच्छा लगा था।

ऐसा करने से आप एक दम से अपनी दिशा बदली हुई महसूस करेंगे। अपने विचारों का निरिक्षण कीजिए। उन्हें एक सही दिशा दिखाइए। ऐसा दोहराते रहिए और इस रीती पर अडिग रहिए। बस जैसे ही एक बार आपको सकारात्मकता ने आकर्षित कर लिया बस फिर समझिये अच्छे दिन आ चुके हैं।

सकारात्मकता कब ज़रूरी:

ऐसा कोई समय निश्चित नहीं होता कि व्यक्ति को कम से कम तब तो सकारात्मक हो ही जाना चाहिए। बल्कि ये तो हमारे हर पल हर घंटे की ज़रूरत है। ऐसी सोच विकसित करने का भी कोई सही या गलत समय नहीं होता बस जिस पल ठान लो और अपने दिमाग से कह दो कि ये अच्छा तरीका है।

जीवन को बिताने का वो ही समय सही बन जाता है। एक शुरुआत कि ज़रूरत होती है और फिर प्रयास की उसके बाद तो एक समय ऐसा आ ही जाता है की आपकी आदत हो जाती है हर बात को पॉजिटिव लेने की।

सकारात्मकता क्यों ज़रूरी:

हम हमेशा देखते हैं कि जो होना होता है, वो होकर ही रहता है। चाहे उस दौर में हम संतुलित रहे हों या आत्मसंयम खोया हो। तो क्यों ना अपने आप के अंदर वो सोच लाएं, वो सकारात्मकता लाएं कि चाहे जैसी परिस्थिति आ जाए हम नहीं हिलेंगे।

उसका सामना पूरी हिम्मत से डट के करेंगे तथा आशावादी रहेंगे। अतः एक सकारात्मक दिमाग ही आपको शांतिपूर्ण जीवन का अनुभव करा सकता है इसलिए ये होना ज़रूरी हो जाता है।

सकारात्मक होना कहाँ ज़रूरी:

ये हर जगह काम आता है घर हो या ऑफिस, खुद के लिए हो या बाहरी दुनिया के लिए सब दूर हमें दूसरों को भी दिखाता है। चाहे आप अपनी जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी का सामना कर रहे हों या सबसे बड़ा दुःख देख रहे हों, ये दोनों जगह आपको अपना वर्चस्व दिखा ही देगा। आखिरी और महत्वपूर्ण बात, आप जब अपने जीवन के उद्देश्य को पाने निकलते हो तो निश्चित ही आप कड़ी मेहनत करते हो।

पर फिर भी हार जाओ, तो ऐसा कितनी बार होगा कि आप दोबारा उस हार को अपनाकर फिर मेहनत करोगे। एक बार दो बार, ज्यादा से ज्यादा तीन बार परन्तु यदि आप हार कि अवस्था में भी सकारात्मक रहते हो तो। ये ज़रूर देखना कि चाहे जितना समय आपको लगने वाला हो, फिर भी आप लक्ष्य पर केंद्रित रहोगे। ये इसकी ताकत है। सकारात्मक रहिए, स्वस्थ रहिए, शारीरिक और मानसिक रूप से।


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