पर्यावरण प्रेमी बाहेती दंपती
व्यवसाय से सीए, इंदौर निवासी जगदीशप्रसाद बाहेती व उनकी धर्मपत्नी सुनीता बाहेती ने ‘हरियाली की खुशहाली’ बिखेरने का ऐसा संकल्प लिया कि स्वयं का जीवन ही हराभरा कर लिया। वे इतने पर ही नहीं थमे, बल्कि जैसे भी हो सके निःस्वार्थ भाव से हरियाली अभियान को आमजन में भी जुनून की तरह पहुंचाने के लिए तन-मन से जुटे हुए हैं।
बाहेती दंपती
सीए जगदीश बाहेती व उनकी धर्मपत्नी सुनीता बाहेती (बाहेती दंपती) ने इंदौर स्थित अपने निवास को पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से हरियाली से सजाने का एक छोटा सा प्रयास वर्ष 2002 में प्रारंभ किया था। आज उनके बच्चे भी इस अभियान का हिस्सा बन चुके हैं।
परिणाम ये है कि वे अपने निवास स्थान को हरियाली से पूरी तरह आच्छादित कर चुके हैं। उनके निवास पर करीब 150 वैरायटी के गुलाब तथा साथ ही करीब 2 हजार पौधे उन्होंने लगाए हैं।
‘सर्वश्रेष्ठ उद्यान’ से ‘भगीरथ’ का सफर:
बाहेती दंपती ने उद्यानिकी विभाग मप्र शासन एवं मालवा रोज़ सोसायटी, इंदौर द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली उद्यान स्पर्धा एवं गुलाब प्रदर्शनी मे पिछले 14 वर्षों से लगातार ‘सर्वश्रेष्ठ गुलाब उद्यान’ का प्रथम पुरस्कार जीता है जो कि एक रिकॉर्ड है।
इनके साथ ही कट फ्लावर प्रतियोगिता में भी उनके उद्यान के गुलाबों को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इसमें गुलाबों की गुणवत्ता को देखते हुए उनके गुलाब को ‘क्वीन ऑफ रोज’ का महत्वपूर्ण पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है।
उनके प्रकृति प्रेम को देखते हुए समाचार पत्र नईदुनिया द्वारा उन्हें ‘हरियाली के भागीरथ अवॉर्ड’ से भी नवाजा गया है और इस बात का प्रकाशन उनके द्वारा पेपर के प्रथम पेज पर किया गया था।
उनके दोनों बच्चों पूर्वा बाहेती एवं अक्षत बाहेती ने प्रकृति की गोद में ही पढ़-लिखकर चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा अखिल भारतीय स्तर पर रैंक प्राप्त कर उत्तीर्ण की है।
पर्यावरण की ज्योति जलाते:
पर्यावरण संरक्षण हेतु उन्होंने कई स्थानों पर पौधारोपण करवाया। उन्हें जो भी इच्छुक लोग मिल जाते हैं, उनको वे मार्गदर्शन करने के साथ-साथ निःशुल्क पौधे भी उपलब्ध करवाते हैं। साथ ही पौधों के रखरखाव एवं देखभाल हेतु उचित जानकारी भी देने की कोशिश करते हैं।
इस हेतु मालवा रोज़ सोसायटी एवं कृषि विभाग के विशेषज्ञों के साथ कार्यशाला भी आयोजित करवाते हैं। इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं लिया जाता है।
श्री बाहेती को तो इतना जुनून है कि अगर रास्ते में वो कोई बनता हुआ मकान देखते हैं तो उसके मालिक को ढूंढकर इतना जरूर कहते हैं कि भाई साहब थोड़ी जगह छोड़ना ताकि आप कुछ पेड़ या पौधे लगा सको, उसमें कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं आता है।