35 वर्ष की अल्पावधि में बुलडाणा अर्बन का डिपाजिट 10000 करोड़ पार
बुलढाणा अर्बन कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी, वास्तव में सहकारिता के क्षेत्र में इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर ही अंकित रहेगी। कारण है इसकी विशिष्ट विकास यात्रा। 35 वर्ष पूर्व मात्र 12 हजार रूपये की अंशपूंजी से इसके संस्थापक राधेश्याम चांडक के प्रयासों से प्रारम्भ यह संस्था वर्तमान में 10 हजार करोड़ से ज्यादा की जमा राशि वाली एक अत्यंत वृहद सहकारी संस्था बन चुकी है। यह धरणा किसी चमत्कार से कम नहीं है।
जब भी देश के सहकारिता आंदोलन का इतिहास लिखा जाऐगा तो उसमें बुलढाणा निवासी भाई जी श्री राधेश्याम चांडक का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। कारण है उनके दिमाग व मन की कोमल भावनाओं की सोच की उपज ‘‘बुलढाणा अर्बन को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी’’। इसकी शुरुआत तो एक छोटे से पौधे के रूप में हुई थी लेकिन वर्तमान में यह संस्था न सिर्फ देश बल्कि सम्पूर्ण एशिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था बन चुकी है। यदि 35 वर्ष पूर्व के वर्ष 1986 के दृश्य को देखा जाऐ तो श्री चांडक ने जब लोगों को साहूकारों के चंगुल से निकालने के लिये सहकारी संस्था की स्थापना की कल्पना की तो अधिकांश परिचितों ने इसे घाटे का काम बताकर हतोत्साहित ही किया। फिर भी वे रूके नहीं। अपने मित्रों के सहयोग से मात्र 72 सदस्य तथा 12 हजार रुपये की अंशपूंजी से उन्होंने इसकी शुरूआत कर ही डाली।
ऐसे चली संस्था की विकास यात्रा
भाईजी के स्वयं के जीवन की शुरुआत आर्थिक परेशानियों से हुई थी। अतः उन्होंने आमव्यक्ति की तकलीफ को अत्यंत निकट से देखा। आम व्यक्ति के विकास के लिये सहकारिता के महत्व को समझ श्री चांडक ने इस आंदोलन का शेष महाराष्ट्र में नेतृत्व करने की ठान ली और जून 1986 में बुलढाणा अर्बन को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी की स्थापना बुलढाणा में की। वैसे तो उनसे पूर्व भी कई लोगों ने सहकारिता आंदोलन की बागडोर संभाली लेकिन सभी असफल हो गये। अतः उनके इस प्रयास को भी लोगों ने दुस्साहस नाम ही दिया। अपनी लोकप्रियता के कारण लोगों के बीच भाईजी के नाम से जाने-जाने वाले श्री चांडक ने लोगों के विश्वास को अपना आधार बनाया और कार्य के प्रति समर्पण, योग्यता व अनुशासन को शक्ति बनाकर अपने प्रयासों को प्रारंभ कर दिया। उनकी तीक्ष्ण बुद्धि, भावनात्मक जनसंपर्क व मेहनत पर विश्वास ने उन्हें सफलता के मार्ग पर ऐसा अग्रसर किया कि उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक बीज रूप में प्रारंभ ‘‘बुलढाणा अर्बन को-ऑपरेटिव सोसायटी’’ धीरे-धीरे एक वृहद वटवृक्ष बनती चली गई। संस्था की सेवा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने ऐसे लोगों की भी ऋण देकर आर्थिक मदद दी है, जिनका कोई मददगार नहीं होता। यही कारण है कि अपने इन योगदानों से श्री चांडक की स्थिति ठीक वैसी बन गई कि ‘‘जिसका कोई नहीं उसके भाईजी हैं।’’
वर्तमान में संस्था बनी सेवा का वटवृक्ष
35 वर्ष पूर्व मात्र 12 हजार रुपये से प्रारम्भ इस संस्था ने वर्तमान में अपनी ३५वीं वर्षगांठ मनाने के साथ ही 10 हजार करोड़ रुपये की जमा राशि का कीर्तिमान स्थापित किया है। इस बैंक ने सुलभ कर्ज योजना, आरटीजीएस सुविधा, एनईएफटी, तिरुपति बालाजी में भक्त निवास, शिर्डी में भक्त निवास, जैसी सुविधा की सौगात आदि अपने ग्राहकों को दी है। बैंक के संस्थापक अध्यक्ष राधेश्याम चांडक व संस्था के चीफ डायरेक्टर डॉ. सुकेश झंवर के साथ ही बैंक के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के अथक प्रयास से 465 शाखा, 676 गोदाम, 7 लाख 56 हजार सभासद, 7275 करोड़ का कर्ज तथा सोने के ऊपर 2100 करोड़ का कर्ज प्रदान किया है।
सेवा के वृहद आयाम
अपने देश में हर साल साधारणत: 38 हजार करोड़ रुपये मूल्य का धान और 26 हजार करोड़ रुपये मूल्य की सब्जियां-फल खराब हो जाते हैं। इसका एक कारण है कि ठीक तरह से भंडारण व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। इसके लिये भाईजी ने 1990 से प्रयत्नपूर्वक गोदामों को बनवाना प्रारंभ किया। आज बुलडाणा अर्बन गोदामों की संख्या 627 है, जिनके भंडारण की क्षमता 903785 मे. टन है। इन गोदामों का लाभ कृषक और व्यापारी सभी ले रहे हैं। किसान अपनी कृषि उपज गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं, इसके लिये कम कीमत पर माल विक्रय की जल्दी की भी उन्हें आवश्यकता नहीं रहती। आज राज्य निगम के पास में बुलडाना अर्बन के गोदाम हैं और यह संख्या बढ़ेगी। इस उपक्रम में भाईजी को लोग ‘वेयर हाउस मैन’ के नाम से जानने लगे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, हॉस्पिटल, एम्बुलेंस शववाहन, शुद्ध पीने का पानी, एटीएम जैसे उपक्रम बुलडाणा अर्बन के माध्यम से जनता तक पहुंचाए जा रहे हैं।