नव विक्रम संवत 2081 का शुभारम्भ- Gudi Padwa
विक्रम संवत् हमारी सनातन संस्कृति की कालगणना का एक उत्कृष्ट गौरवशाली आधार है। इसकी आगामी 09 अप्रैल को गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa)पर हो रही है, सनातन नववर्ष विक्रम संवत 2081 की शुरुआत। तो आईये करें पूरे उत्साह व अपनी परम्परा के अनुसार इसका शुभारम्भ, पर्व गुड़ी पड़वा मनाकर।
कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरू होता है। विक्रम संवत की शुरूआत 57 ईसवी पूर्व से हुई थी। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में इस दिन आनंदोत्सव मनाया गया था।
सम्राट विक्रमादित्य ने इस संवत्सर की शुरुआत की थी, इसीलिए उनके नाम से ही इस संवत का नामकरण हुआ है। इस नववर्ष के स्वागत उत्सव को भारत के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है – जैसे कि महाराष्ट्र में ‘गुड़ी-पड़वा, जम्मू कश्मीर में ‘नवरेह’, सिंधियों में ‘चेटीचंद’, केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’, आंध्र, तेलंगाना तथा कर्नाटक में ‘उगादी’ और मणिपुर में ‘साजिबू नोंग्मा पन्बा चैराओबा’। वर्तमान में उत्तर भारत में भी गुड़ी पड़वा पर्व मनाया जा रहा है।
सर्वाधिक वैज्ञानिक है विक्रम संवत
हमारा विक्रम संवत् दुनियाभर की कालगणसना में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। यही कारण है कि सूर्य व चंद्र ग्रहण आदि भी भारतीय कालगणना अनुसार होते हैं, न कि पाश्चात्य अथवा अन्य के अनुसार। इसका कारण इसका पूर्ण वैज्ञानिक आधार होना है। नव विक्रम संवत की शुरूआत गुड़ी पड़वा से होती है।
खगोल विज्ञान के अनुसार सूर्य अपना भ्रमण या कहें पृथ्वी सूर्य के आसपास अपना पूर्ण भ्रमण इस दिन पूर्ण कर नवीन भ्रमण प्रारंभ कर देती है। अत: इसके अनुसार हर विक्रम संवत वास्तव में इनका पूर्ण भ्रमण ही है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य एक वर्ष में 30-30 अंश की कुल बारह राशियों का परिभ्रमण कर इस दिन पुन: अपनी प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है।
ऐसे करें नववर्ष का स्वागत
नया संवत्सर प्रारंभ होने पर भगवान की पूजा करके प्रार्थना करनी चाहिए- ‘‘हे भगवान! आपकी कृपा से मेरा वर्ष कल्याणमय हो, सभी विध्न बाधाएं नष्ट हो’’। दुर्गाजी की पूजा के साथ नूतन संवत की पूजा करें। घर को बंदनवार से सजाकर पूजा का मंगल कार्य करें। कलश स्थापना और नए मिट्टी के बरतन में जौ बोएं और अपने घर में पूजा स्थल में रखें। सामान्य तौर पर इस दिन हिंदू परिवारों में गुड़ी का पूजन कर इसे घर के द्वार पर लगाया जाता है और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख-समृद्धि और खुशियां लाता है। ग़ुडी पड़वा के दिन खास तौर से हिंदू परिवारों में पूरनपोली नामक मीठा व्यंजन बनाने की परंपरा है, जिसे घी और शक्कर के साथ खाया जाता है। मराठी परिवारों में इस दिन खास तौर से श्रीखंड बनाया जाता है और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ परोसा जाता है। आंध्र में इस दिन प्रत्येक घर में पच्चड़ी प्रसाद बनाकर बांटा जाता है। गुड़ी-पड़वा के दिन नीम की पत्तियां खाने का भी विधान है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नीम की कोपलें खाकर गुड़ खाया जाता है। इसे कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है।
स्वस्थ जीवन का भी आधार
इस समय जलवायु और सौर प्रभावों का एक महत्वपूर्ण संगम होता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान उपवास करने से शरीर में नए रक्त का निर्माण और संचार होता है। नवसंवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और ऋतु काल के पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार, चर्मरोग आदि शारीरिक व्याधियां होने की आशंका नहीं रहती है तथा वर्ष भर हम स्वस्थ और रोग मुक्त रह सकते हैं।
चैत्र ही एक ऐसा महिना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन की मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। अत: इसे औषधियों व वनस्पतियों का राजा भी कहा गया है और इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
इतिहास के झरोखे में विक्रम संवत्
- हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है। कहा जाता है कि महान गणितज्ञ-भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी। गुड़ी पड़वा शब्द में गुड़ी का अर्थ होता है, विजय पताका और पड़वा प्रतिपदा को कहा जाता है। गुड़ी पड़वा को लेकर यह मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने दक्षिण के लोगों को बालि के अत्याचार और शासन से मुक्त किया था, जिसकी खुशी के रूप में हर घर में गुड़ी अर्थात विजय पताका फहराई गई। आज भी यह परम्परा महाराष्ट्र और कुछ अन्य स्थानों पर प्रचलित हैं, जहां हर घर में गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी फहराई जाती है।
- मान्यता है कि इस दिन दुर्गाजी के आदेश पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गाजी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।
- कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। सूर्य में अग्नि और तेज हैं और चंद्रमा में शीतलता, शांति और समृद्धि के प्रतीक सूर्य और चंद्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है।
- स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए नीम की कोपलों के साथ मिश्री खाने का भी विधान है। इससे रक्त से संबंधित बीमारी से मुक्ति मिलती है।
- एक प्राचीन मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान श्रीराम जानकी माता को लेकर अयोध्या लौटे थे। इस दिन पूरी अयोध्या में भगवान के स्वागत में विजय पताका के रूप में ध्वज लगाए गए थे। इसे ब्रह्म ध्वज भी कहा गया।
- एक अन्य मान्यता है, श्री विष्णु ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।
- यह भी मान्यता है कि शालीवाहन ने शकों पर विजय आज के ही दिन प्राप्त की थी इसलिए शक संवत्सर भी प्रारंभ हुआ।
- मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हिंदू पदशाही का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिंदवी साम्राज्य की नींव रखी।