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सुखी रहने का राज़

सुखी रहने का राज़ – एक युवक सन्यासी के पास गया, उसके चेहरे पर निराशा झलक रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों वह जीवन से टूट चुका है। उसने अपनी समस्या सन्यासी को बताते हुए कहा कि “घर पर सुख-सुविधा के सभी साधन हैं फिर भी मेरा जीवन सहज, स्वस्थ व आनन्दमय नहीं है। मेरी समझ में कुछ नहीं आता है। कृपया मार्गदर्शन कीजिए।”

“सन्यासी ने उस युवक को प्यार से अपने पास बैठाया और कहा” तुम सहज होकर जीना सीखो।”

युवक ने कहा “मैं जितना सहज होकर जीने का प्रयास करता हूँ उतना ही असहज हो जाता हूँ।” सन्यासी ने कहा “सहज होने के लिए प्रयास करने की ज़रुरत नहीं है, हज़ारों-हज़ारों युवक ऐसी समस्या से आक्रांत हैं।”

प्रश्न सबका एक ही है, स्वप्न को सच करने के लिए किस मार्ग का सहारा लिया जाए? सहज और आनन्दमय जीवन बनाने की प्रक्रिया क्या है? व्यक्ति जितना असहज, अस्वाभाविक रहता है, उतना ही वह दुःखी होता है।

दुःख भोगने के लिए उसे बाहर से कुछ जुटाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसके भीतर जो कुछ है, वही पर्याप्त है।व्यक्ति चाहे तो अपनी अनुभूति को ऐसा मोड़ दे सकता है जिससे दुःख का लवलेश ही मिट जाए।

दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो या तो अतीत के साथ जुड़कर जीते हैं या भविष्य की कल्पनाओं में बंधे रहते हैं। ऐसे लोग सहज और आनन्दमय जीवन नहीं जी सकते क्योंकि इस प्रकार के जीवन क्रम से वे दुरुस्त और संदिग्ध कार्यों को शुरू कर देते हैं जिसकी सफलता उनके बुते की बात नहीं होती।

काम शुरू किया सफलता नहीं भी मिली तो निराश, परेशानी बढ़ी और काम बीच में ही छोड़ दिया। एक असफलता दूसरी दस असफलताओं की जननी बनती है। जो देखादेखी काम शुरू करते हैं, अपनी क्षमता, योग्यता को नहीं पहचानते हैं। वे लोग जीवन में सफल नहीं होते। इसलिए आनन्दमय जीवन नहीं जी सकते।

“वास्तविकता यह है कि कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता है अगर वह अपनी अपूर्णता को स्वीकार कर लेता है, उसे यथार्त मानकर अपने आपको संतुलित रखता है तो वह कभी असहज हो ही नहीं सकता।” 



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Sri Maheshwari Times

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