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जीवन का प्रमुख पुरुषार्थ है धन अर्जन

धन अर्जन कितना करें? यह प्रश्न अक्सर चर्चा में रहता है। इस बारे में सभी के अपने-अपने मत हैं। कुछ लोग तो आवश्यकता से अधिक पैसा कमाने को अपराध तक सिद्ध करने में जुटे हैं। जबकि वास्तव में देखा जाए तो यह पुरुषार्थ है, जो निरंतर चलना चाहिए। आईये देखें धर्मशास्त्रों की नजर में धन अर्जन।
– प्रो. शिवरतन भूतड़ा, जोधपुर

प्राचीन भारतीय साहित्य में धन के महत्त्व का मार्मिक वर्णन हुआ है। निम्न श्लोक में वर्णित है कि धन के अभाव में सर्वगुण संपन्न व्यक्ति भी यश व सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता है:

‘‘शूरः सुरूपः सुभगश्च वाग्मी, शस्त्राणि शास्त्राणि विदांकरोतु।
अर्थं विना नैव यशश्च मानं, प्राप्नोति मत्र्योऽत्र, मनुष्यलोके।।’’

अर्थात चाहे मनुष्य वीर हो, सुंदर हो, वाकपुट हो और शस्त्र विद्या तथा शास्त्र विद्या दोनों में निपुण हो, तो भी इस मानव जगत् में वह धन के बिना न यश प्राप्त कर सकता है और न मान ही।

चार पुरुषार्थों में शामिल:

भारतीय धर्म शास्त्रों में मनुष्य जीवन के चार लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उल्लेख हुआ है। इन्हें पुरुषार्थ की संज्ञा दी गई है। इनकी साधना से मनुष्य इस संसार और पर लोक में तर जाता है। इनमें अर्थ और काम को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। नैतिक तरीके से धन अर्जन और उसका वद्र्धन सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। इस कर्म को निष्ठा और समर्पण से करने वाला निश्चय ही कर्म योगी होता है।

महान् संत राजर्षि भर्तृहरि द्वारा रचित नीतिशतक ग्रंथ में धन के महत्त्व को भली भांति समझाया गया है। श्लोक सं. ४१ में दर्शाया गया है, ‘‘जिसके पास धन है, वही पुरुष कुलीन है। वही पंडित है, वही विद्वान और गुणज्ञ है, वही वक्ता और वही दर्शनीय है।’’ अभिप्राय यह है कि सभी गुण स्वर्णरूपी धन के आश्रित हैं। 

अधिक धन अर्जन के सतत हों प्रयास:

विष्णु शर्मा रचित ग्रंथ पंचतंत्र में भी धन के महत्त्व और उसके वर्धन का बहुत अच्छा वर्णन हुआ है। पहली कहानी के प्रारंभ में वर्णित है, ‘‘यदि किसी व्यक्ति के पास अत्यधिक धन हो, तब भी उसे और अधिक धन अर्जित करने के सुनियोजित प्रयास करने चाहिए, क्योंकि यह ठीक ही कहा गया है कि संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे धन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सके। ‘‘अतः हर बुद्धिमान् व्यक्ति को सदैव अपने धन को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।

यदि किसी के पास धन है, तो उसके मित्र भी बहुत होंगे। उसका अपने रिश्तेदारों के प्रयास करने चाहिए। यदि किसी के पास धन है, तो उसके मित्र भी बहुत होंगे। उसके अपने रिश्तेदारों में भी सम्मान बढ़ेगा। इस बेरहम संसार में धनी व्यक्तियों के अजनबी भी रिश्तेदार बन जाते हैं, जबकि गरीब को अपने परिवार में ही तिरस्कृत होना पड़ता है।

धनी व्यक्ति को लोग बहुत गुणवान, ज्ञानी और विद्वान की संज्ञा देने से भी नहीं चूकते। धन के कारण बूढ़ा धनी भी युवा नजर आता है और धन के अभाव में नवयुवक भी असमय बूढ़ा नजर आने लगता है।

जनहित में धन का सदुपयोग जरूरी:

संपदा सृजन का कर्म तब ही श्रेयस्कर है, जब धन के कुछ हिस्से का उपयोग जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए किया जाए। विश्व के महानतम धनी बिल गेट्स और वारेन बफेट बड़ी उदारता से अपने धन के अधिकांश भाग का उपयोग चैरिटी फंड्स के माध्यम से असहायों को साधन सुलभ करवाने में कर रहे हैं। इंफोसिस के चेयरमैन नंदन नीलेकणी व उनकी धर्मपत्नी रोहिणी ने अपनी ११,०६२ करोड़ रुपए की संपत्ति के आधे भाग को दान में देने का निश्चय किया है।

भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल ने अपने परिवार की संपत्ति का १० प्रतिशत हिस्सा यानी ७ हजार करोड़ रुपए विश्वविद्यालय स्थापित करने और सत्य भारती स्कूल के लिए दान में देने की घोषणा की है। अब्दुर रहीम खान ए खाना, जो रहीम के नाम से विख्यात हुए, सम्राट अकबर के अत्यधिक विश्वास पात्र और सर्वोच्च मनसबदार थे। उन्होंने अपनी संपत्ति का उपयोग दीन-दुखियों की सहायता के लिए जीवन पर्यंत किया। उनका निम्न दोहा धन के सदुपयोग की बहुत अच्छी शिक्षा देता है:

‘‘तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पीयही न पान।
कह रहीम परकाज हित संपत्ति संचयी सुजान।।’’


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Sri Maheshwari Times

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