Articles

दाम्पत्य के सुख का आधार- नवांश कुंडली

दाम्पत्य जीवन में कदम रखते समय हर किसी की आशा सुखी दाम्पत्य की ही होती है, लेकिन सही कुण्डली मिलान के बावजूद कई बार दाम्पत्य सुख की हानि हो जाती है। वास्तव में देखा जाऐ तो वैवाहिक सुख-दु:ख का अंतिम निर्णय नवांश कुंडली करती है। आइये जानें कैसा रहेगा भावी दाम्पत्य जीवन?

वर्ग कुंडलियों के अध्ययन एवं लग्न कुंडली विवेचन की सफलता का सिंहद्वार नवांश कुंडली है। यदि व्यक्ति का भाग्य ग्रहों से निर्धारित होता है जो स्वयं ग्रहों का भाग्य नवांश कुंडली द्वारा निर्धारित होता है। नवांश कुंडली को शाश्वत कुंडली भी कहा जाता है।

फल-कथन में नवांश की महत्त्वता को अनुभव करते हुए यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि नवांश देख और समझे बिना फलकथन करना पाप है। किसी भी वर्ग कुंडली में ग्रह के फल देने की क्षमता क्या रहेगी इसका निर्णय अन्ततः नवांश कुंडली ही करेगी।

परम्परागत रूप से नवांश कुंडली का प्रयोग भावी दम्पत्ति के दाम्पत्य सुख-दुख का आकलन करने के लिये किया जाता है। वर-वधू के जन्म नक्षत्र से मिलान द्वारा सतही ज्ञान प्राप्त हो जाता है कि विवाह करने योग्य है या नहीं किंतु विवाह के पश्चात दाम्पत्य सुख, एक-दूसरे के प्रति आकर्षण-विकर्षण, विवाह की उम्र इत्यादि नवांश के बिना जानना सम्भव नहीं है।


ऐसे जानें कई महत्वपूर्ण तथ्य

  • विवाह का न होना- जन्म कुंडली और साथ ही नवांश कुंडली का सातवाँ भाव पाप प्रभाव में है एवं किसी भी प्रकार से शुभ ग्रहों से युति या दृष्टि नहीं हों।
  • तलाक- नवांश का लग्न या लग्नेश पाप पीढ़ित है एवं सातवें एवं आठवें भाव का सम्बन्ध स्थापित हो रहा है। ऐसी स्थिति प्रायः तलाक की ओर अग्रसर करती है।
  • दाम्पत्य सुख- किसी व्यक्ति के जीवन में दाम्पत्य सुख का स्तर क्या है, इसके लिये नवांश के चतुर्थ भाव एवं भावेश का अध्ययन करेंगे। यदि चतुर्थ भाव या भावेश केवल शुभ ग्रहों के प्रभाव में है तो दाम्पत्य सुख आदर्श माना जावेगा। यदि शुभ एवं पाप प्रभाव दोनों हैं तो काम चलाऊ जैसे-तैसे गृहस्थी की गाड़ी को आगे सरकाने वाला माना जाऐगा। यदि केवल पाप संबंध है तो दाम्पत्य सुख का पूर्णतः अभाव माना जावेगा। लग्नेश कोई भी हो सदैव शुभ है, यदि लग्नेश का सबंध चतुर्थ भाव-भावेश से बनता है, तो वह बुरी स्थितियों से उबारने में सक्षम है।
  • विवाह का समय- जातक के महादशानाथ के नवांश कुंडली के सप्तमेश से संबंध के आधार पर विवाह का समय निर्धारण सटिकता से होता है। इसके अतिरिक्त स्त्री जातिका का गुरु से एवं पुरुष जातक का सूर्य से संबंध भी विचारणीय है। स्त्री एवं पुरुष दोनों के नवांश में सप्तमेश एवं सप्तम भाव से शुक्र का संबंध भी विवाह के समय को इंगित करता है।
  • प्रेम विवाह- नवांश कुंडली का पाँचवाँ और सातवाँ भाव यदि एक सुदृढ़ संबंध बना रहा हो तो व्यक्ति अपने निर्णयानुसार प्रेम-विवाह करता है। यदि यह संबंध शुभ ग्रहों के प्रभाव में बन रहा हो तो विवाह सफल रहता है अन्यथा नहीं।
  • विवाह का प्रस्ताव कैसा है?- हमारे देश में जहाँ पर कि परिवार द्वारा चयनित जीवन साथी से विवाह किया जाता है। ऐसे में इंसान, अपरिचित व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में जानने के अनेक इशारे नवाँश कुंडली करती है।

जीवन साथी का व्यक्तित्व भी जानें

  • संगीत प्रेमी- यदि जातक के त्रिकोण (1,5,9) में सूर्य है तो वह संगीत का, वाद्य यंत्रों का प्रेमी रहेगा।
  • सुरीली आवाज- यदि जातक के त्रिकोण में चंद्र है तो उसकी आवाज सुरीली रहेगी।
  • क्रोधी/योद्धा- यदि मंगल त्रिकोण गत है तो व्यक्ति आसानी से क्रोध में आ जाने वाला रहेगा एवं दूसरों को बंदी बनाने के व्यवसाय का शौकिन रहेगा।
  • प्रज्ञावान- यदि गुरु त्रिकोण में है तो व्यक्ति प्रज्ञावान, श्रेष्ठ सलाहकार, धर्म संगत जीवन यापन करने वाला और ज्ञानी रहेगा।
  • सेवा भावी- शनि यदि नवांश में त्रिकोणगत है तो व्यक्ति परसेवा, परहितार्थ तत्पर रहेगा।
  • अन्वेषक- राहु यदि नवांश में त्रिकोणगत है तो व्यक्ति खोजी, अन्वेषक, रहस्यमय विषयों के अध्ययन में उत्सुक रहेगा।
  • आध्यात्मिक- केतु यदि त्रिकोणगत है तो व्यक्ति का झुकाव निःसंदेह अध्यात्म और निज कल्याण पर रहेगा।
  • कला एवं साहित्य प्रेमी यदि नवांश में शुक्र त्रिकोणगत है तो व्यक्ति विभिन्न कलाओं में उत्सुक, काव्य प्रेमी, कवि, गीतकार, नर्तक एवं सुरीला रहेगा।

वर्गोत्तम ग्रह से भी जानें यह

इसके अतिरिक्त वर्गोत्तम ग्रह की अवधारणा से भी आप अपने भावी जीवन साथी के व्यक्तित्व में आसानी से झाँक सकते हैं। नवांश कुंडली में कोई ग्रह किस प्रकार की राशि में वर्गोत्तम है, इसे जानकर उस व्यक्ति को त्रिदेव में से किसका आशीर्वाद प्राप्त है यह आसानी से जाना जा सकता है।

यदि ग्रह चर राशि में वर्गोत्तम है, तो उस पर श्री ब्रह्मा जी का आशीर्वाद है। स्थिर राशि में वर्गोत्तम है तो उस पर श्री हरि भगवान विष्णु का आशीर्वाद है। द्विस्वभाव राशि में वर्गोत्तम है, तो श्री शिवजी का आशीर्वाद है। आशीर्वाददाता के स्वभावानुसार ही जातक का व्यक्तित्व एवं कार्यशैली का अधिकांश भाग निर्धारित हो जाता है।


Via
Sri Maheshwari Times

Related Articles

Back to top button