एक प्रतिशत लोग भी नहीं होते हैं मंगली
कहते हैं कि आस्था के आँखें नहीं होती। किसी व्यक्ति, शास्त्र एवं पथ के प्रति श्रद्धा होना अच्छी बात है लेकिन इन्हीं बातों के प्रति अंधश्रद्धा एवं अतिविश्वास विनाशकारी है, विशेषकर जब उस शास्त्र को जानने वालों का ज्ञान अपूर्ण हो। यही स्थिति बन रही है, विवाह के लिये कुंडली मिलान में मंगल दोष में जिसके कारण कई अच्छे भले रिश्ते इसके भय से टूट जाते हैं, जबकि मात्र एक प्रतिशत लोग भी सही ढंग से मंगली नहीं होते।
हमारे देश में विवाह मात्र एक पवित्र बंधन ही नहीं धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष का हेतु भी है। सदियों से हमारे यहाँ जन्मपत्री मिलाकर विवाह करने की प्रथा चली आ रही है। जन्मपत्री मिलान की प्रक्रिया में जब तक अष्टकूट अर्थात् गुण नहीं मिल जाते संबंधित व्यक्ति के साथ विवाह का प्रस्ताव अन्य सभी बातों को गौण कर ठुकरा दिया जाता है।
गुण मिलान के साथ मंगल मिलान भी उतना ही महत्व रखता है क्योंकि ज्योतिषियों ने हौवा खड़ा कर दिया है कि मंगल के न मिलने पर लड़का अथवा लड़की विधुर अथवा विधवा हो जाऐंगे या फिर उनमें तलाक हो जाएगा। स्ट्रीट एस्ट्रोलोजर्स ने इस बात का आतंक जन-जन तक फैला दिया है। आतंकित माता-पिता विशेषतः आजकल जब एक-दो संताने ही होती हैं, इन पोंगा-पंडितोें की बातों को मानने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
यह कैसी विडम्बना है कि हम ज्ञात तथ्यों जैसे शिक्षा, व्यक्तित्व एवं मेडिकल बातों को नजरअंदाज कर उस बात को सर्वाधिक महत्व देते हैं जो अज्ञात है एवं जिसके जानने वाले भी अपूर्ण एवं आंशिक ज्ञान से भरे हैं। एक आकलन के अनुसार 40 प्रतिशत कुण्डलियाँ गुण आधार पर आपस में नहीं मिलती और इसके साथ जब मंगल मिलान किया जाता है तो दस में से 8 कुण्डलियाँ आपस में नहीं मिलती।
लड़के-लड़की के माता-पिता इन्हें मिलाते-मिलाते हताश हो जाते हैं। अंततः जहाँ भी मिलती है वहाँ बाकी सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को दर किनार कर यह कह कर विवाह कर देते हैं कि ‘बेटी का भाग्य बेटी के साथ’ और ऐसा करते ही विवाह प्रणय का कारक न होकर विघटन का पर्याय बन जाता है।
प्रकृति मिलान है कुंडली मिलान
वस्तुतः गुण मिलान की प्रथा का इजाद दंपतियों के प्रकृति मिलान हेतु हुआ था। संसार में प्रकृति वैविध्य का मूल कारण है जातकों में सत्व, रज एवं तम में से किसी एक गुण की प्रधानता होना और यही कारण मनुष्यों के स्वभावों को भिन्न बनाते हैं।
सत्व तम का विरोधी है एवं रज जातक को व्यावहारिक बनाकर दोनों के बीच की खाई को पाटता है। यूरोपियन मनोविदें ने इसे पेरेन्ट, एडल्ट एवं चाइल्ड कहकर विश्लेषित किया है। ज्योतिष ने इसे देवगण, मनुष्यगण एवं राक्षसगण का नाम दिया है। इसी तरह वर्ण, वश्य, राशी, भकूट आदि भी स्वभावगत वैविध्य को ही इंगित करते हैं।
इनके मिलान के पश्चात् यह मान लिया जाता है कि दंपतियों में स्वभावगत समानता होगी एवं वे सुखी जीवन व्यतीत कर सकेंगे। यहाँ तक तो ज्योतिष मार्गदर्शक का कार्य करता है लेकिन गुण मिलान के बाद मंगल मिलान पर ज्योतिषियों में भारी मत-मतांतर है एवं सभी अपनी-अपनी ढपली पीट रहे हैं।
चूंकि अधिकतर ज्योतिषी अब व्यवसायी हो गये हैं, वे इस हौवे को बनाये रखना चाहते हैं ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे। अगर पैसा मिले तो उनके पास मंगल का काट है एवं न मिले तो जातक का भाग्य जातक जाने।
कल्याणकारी भी है मंगली होना
अगर ज्योतिषियों की बात मानें तो 33 प्रतिशत लोग मांगलिक होते हैं। मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं अष्टम घर में होने पर जातक मांगलिक कहलाता है। दक्षिण भारत के ज्योतिषी मंगल के दूसरे घर में होने पर भी कुण्डली को मांगलिक कहते हैं। अतः दक्षिण में 45 प्रतिशत जातक मंगली होते हैं।
अब अगर 45 प्रतिशत जातक मंगली हों एवं 40 प्रतिशत लोगों की गुण मिलान के आधार पर कुण्डली नहीं मिलती तो कुण्डली मिलान कितना दुष्कर होगा? इन्हीं समीकरणों के बीच ज्योतिषियों की बन आती है एवं उनका व्यवसाय एवं आतंक दिन-दिन अपना प्रसार बढ़ाता जाता है। वस्तुतः मंगली होना मेरी राय में श्राप नहीं वरदान है। अग्नि तत्व प्रधान ग्रह होने के कारण मंगल जातक में दो गुणों की प्रचुरता देता है, पुरुषार्थ एवं उत्तेजना।
जीवन की सफलता के लिए यह दो गुण अपरिहार्य हैं इसीलिए मंगली लोगों को जीवन में अधिक सफल होते देखा गया है। मंगल का एक और विशेष गुण है कि मंगल विच्छेदात्मक शक्ति भी रखता है, लेकिन यह विच्छेदात्मक शक्ति मात्र मंगल ही नहीं रखता, शनि, सूर्य, राहू, केतु और अन्य पापी ग्रह भी रखते हैं।
वस्तुतः इनकी मारक क्षमता मंगल से भी आगे हैं। अगर पापी चन्द्र एवं अयोगकारक वृहस्पति (धनु एवं मीन राशी में) सप्तम घर में उपस्थित हो जाए तो जातक के वैवाहिक जीवन का समूल नाश कर देते हैं। मिथुन एवं कन्या लग्नों में बृहस्पति पापी होते हैं एवं सप्तम स्वयं के घर में बैठकर भी जातक के वैवाहिक जीवन को छिन्न-भिन्न कर देते हैं। यह योग मंगली योग से भी अधिक दुर्दांत है।
हमेशा नहीं होता मंगल विघटनकारी
अगर मंगल की विच्छेदात्मक शक्ति को मंगल अथवा इन्हीं ग्रहों की विच्छेदात्मक शक्तियों से तटस्थ कर दिया जाय तो वैवाहिक विच्छेद की स्थितियाँ क्षीण हो जाती हैं। इस सिद्धांत के आधार पर 99 प्रतिशत कुण्डलियाँ स्वतः मिल जाती है। इतना ही नहीं मंगल अगर योगकारक हो जैसे कर्क और सिंह लग्न में अथवा स्वगृही हो अथवा उच्च का हो तो भी विध्वंसकारी नहीं होता।
सप्तम घर पर वृहस्पति की दृष्टि एवं योगकारक वृहस्पति की उपस्थिति भी विच्छेदात्मक प्रभावों का नाश करती है। यही कारण है कि विश्व के उन देशों में भी जहाँ जन्मपत्रियाँ नहीं मिलाई जाती, 99 प्रतिशत दम्पति स्वतः समायोजन कर लेते हैं।
संसार में सबसे अधिक तलाक लेने वाले देश अमेरिका में भी मात्र 5 प्रतिशत तलाक होते हैं। अगर पण्डितों की बात मानी जाय एवं मंगल को आधार बनाया जाय तो आधे दंपतियों में विच्छेद बन जाना चाहिए, लेकिन वस्तुतः ऐसा नहीं होता।
99 प्रतिशत समायोजन तो स्वयं विधाता ने कर दिया है। विडंबना है कि मात्र 1 प्रतिशत के हौवे को 99 प्रतिशत लोगों में फैला दिया गया है।