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स्वर्ण सिंदूर- एक प्राकृतिक उपहार

सिंदूर अर्थात कुमकुम का भारतीय सभ्यता में कितना महत्त्व है, इससे कोई अनजान नहीं है। सुहागिन की मांग भी इसी से सजती है, तो पूजा भी इसके बिना पूरी नहीं होती है, लेकिन दुःखद स्थिति यह है कि वास्तविक प्राकृतिक सिंदूर उपलब्ध होता ही नहीं। जो सिंदूर बाजार में मिलता है, वह अपने साथ कई साईड इफ़ेक्ट भी लेकर आता है। वर्तमान दौर में भी इस समस्या का समाधान है, तो वह है ‘स्वर्ण सिंदूर’

सिंदूर(कुमकुम) मानव सभ्यता की शुरुआत से ही विभिन्न अवसरों पर शुभता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल होता आ रहा है। पूजा, अभिषेक, हवन, त्यौहार या मंगल कार्यों का प्रारम्भ, भगवान को सिंदूर(कुमकुम) अर्पण कर तथा कार्यक्रम में शामिल लोगों के माथे पर तिलक लगाकर किया जाता है।

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं को पूजा, हवन, त्यौहार के समय, सिंदूर(कुमकुम) अर्पण करने से उनकी सकारात्मक ऊर्जा उपासक को मिलती है। सिंदूर(कुमकुम) देवताओं को अर्पण करके, आने माथे पर तिलक लगाने से माँ हमें बल, तेज व दीर्घायु प्रदान करती है।


क्या है वास्तविक सिंदूर

पौराणिक शास्त्रों में सिंदूर(कुमकुम) का सन्दर्भ प्राकृतिक सिंदूरी पौधे से प्राप्त सिंदूर(कुमकुम)से ही है। हमने सिन्दूरी के पौधों को लगाया तथा इसके बीज से बने सिंदूर(कुमकुम) का उपयोग कर, इसकी सकारात्मकता का आनंद लिया।

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सिंदूर(कुमकुम) का तिलक हमारे शरीर में बुद्धि, बल तथा सत्व बल(सात्विक ऊर्जा) को बढ़ाता है। हमारे तीसरे नेत्र(आज्ञा चक्र) से ब्रह्मांडीय ऊर्जा बहती है। यह चक्र सिंदूर(कुमकुम) लगाने से सक्रीय होता है, जिससे मानसिक एकाग्रता एवं विवेक में वृद्धि होती है।

इसी कारण किसी भी महत्वपूर्ण कार्य या अनुष्ठान के प्रारम्भ से पहले, माथे पर सिंदूर(कुमकुम) लगाया जाता है।


वर्तमान में सिंदूर की जगह केमिकल

वर्तमान समय में व्यावसायिक लाभ के लिए प्राकृतिक सिंदूर(कुमकुम) का स्थान रासायनिक तथा कृत्रिम विकल्पों ने ले लिया है, जो बनाने में सरल एवं कम मूल्य के होते हैं। सिंदूर में अत्यंत हानिकारक रसायनिक पदार्थ पारा, लाल सीसा, चूने का पानी आदि होते हैं।

इनका यंत्रों एवं प्रतिमाओं पर इस्तेमाल करने से धातु की सतह का क्षरण होता है। इस सिंदूर का मानव द्वारा उपयोग किए जाने पर बालों का झड़ना व सफ़ेद होना तथा त्वचा में खुरदरापन व जलन जैसे दुष्परिणाम होते हैं।

ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ इस तरह के सिंदूर(कुमकुम) का गलती से आँखों में चले जाने पर दृष्टि में प्रतिकूल प्रभाव व इसे खा लेने पर शरीर में विषाक्त प्रभाव होता है। इसका पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


क्या है स्वर्ण सिंदूर

स्वर्ण सिंदूर कुमकुम प्राकृतिक सिन्दूरी पौधे के बीज से विशिष्ट विधि द्वारा बनाया गया है। यह 100 प्रतिशत प्राकृतिक उत्पाद है। इसमें सिन्दूरी बीज रंग रहता है। प्राकृतिक उत्पाद होने के कारण स्वर्ण सिंदूर(कुमकुम) पूजा के लिए आदर्श एवं मानव उपयोग के लिए पूर्णतः उपयुक्त है।

इसका उपयोग सकारात्मकता के साथ-साथ पूजा, अभिषेक, होम/हवन, त्यौहार या अनुष्ठानों में सम्मिलित लोगों के लिये करने पर क्कोई भी दुष्परिणाम नहीं है। स्वर्ण सिंदूर(कुमकुम) का इस्तेमाल पर्यावरण की भी रक्षा करता है।


बिना भय के कर सकते हैं उपयोग

प्राकृतिक स्वर्ण सिंदूर(कुमकुम) का यंत्रों, मूर्तियों, प्रतिमाओं, चित्रों, मानव शरीर तथा कहीं भी बिना प्रतिकूल प्रभाव के उपयोग किया जा सकता है।

होम, हवन, पूजा, अभिषेक में पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के माथे पर तिलक या बिंदी, विवाहिता महिलाओं के मांग भरने आदि उपयोग के लिये प्राकृतिक स्वर्ण सिंदूर सर्वोत्तम है।

होली के त्यौहार में स्वर्ण सिंदूर(कुमकुम) को प्राकृतिक गुलाल के रूप में तथा पानी में मिलाकर प्रककृतिक रंग के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।


Via
Sri Maheshwari Times

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