क्यों महत्वपूर्ण है तुलसीपत्र
तुलसीपत्र कहने को तो मात्र एक वनस्पति है, लेकिन हमारी सनातन संस्कृति ने हर घर में इसे अनिवार्य किया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जहाँ तुलसी का वास होता है, वहां सभी सुख-समृद्धि का वास होता है। माहेश्वरी संस्कृति में तो तुलसी विवाह के आयोजन द्वारा इसे महिमा मंडित भी किया गया है। आईये देखें इसका क्या है, वैज्ञानिक महत्त्व?
तुलसीपत्र का अत्यधिक औषधीय महत्व है। इसकी तीव्र सुगंध तथा तीक्ष्ण स्वाद इसे जीवनदायी संजीवनी बना देते हैं। इस पौधे का ‘सत’ कई प्रकार की व्याधियों जैसे खांसी, सर्दी, पेट की बीमारियां, ह्रदय रोग, ज्वर आदि के निवारण के काम आता है।
कपूर, तुलसीपत्र का सत अधिकतर औषधीय प्रयोग में आता है जबकि आज इससे प्रसाधन सामग्री बनाई जा रही है। तुलसी का पौधा पर्यावरण को प्रदुषण से बचाता है तथा मच्छरों व अन्य हानिकारक कीटों से बचाव भी करता है।
मलेरिया के ज्वर में तुलसो एक प्राण रक्षक औषधि का कार्य करती है। हिन्दुओं में क्रियाकर्म से पूर्व शरीर को तुलसीजल में स्नान कराया जाता है व मरने वाले की जिव्हा व छाती पर तुलसी पत्र रखा जाता है।
किचन में जायके का राजा
टमाटर के साथ तुलसीपत्र का स्वाद अद्वितीय है। यह प्याज, लहसुन के साथ भी भरपूर स्वाद देती है। यह भूख को बढ़ाती है। तुलसी की चाय अत्यंत स्वादिष्ट होती है व कई व्याधियों का निदान करती है। पौधे का प्रमुख भाग उसकी पत्तियां हैं।
छोटे तने तो ठीक है पर मोटे और पुराने तने कड़वे होने के कारण खाए नहीं जा सकते। इसके पीले-सफ़ेद रंग के पुष्प खाने के योग्य होते हैं। खाना पकाने के अंत में तुलसी पत्र मिलाने से खाने का स्वाद दोगुना हो जाता है जबकि इसे पकने से इसके तेल नष्ट हो जाते हैं।
लहसुन व जैतून के तेल के साथ पीसने पर तुलसी पिस्टन बनाने की एक महत्वपूर्ण सामग्री बन जाती है। पेस्तो और पिस्तों नामक इटली के पकवान तुलसी के बिना अधूरे हैं।
कई रोगों में रामबाण
औपचारिक गुण-तुलसी के कई औषधीय उपयोग हैं। इसकी पत्तियां याददाश्त को तीव्र बनातीं हैं।
ज्वर एवं सर्दी:
कई प्रकार के ज्वारों के लिए तुलसी की पत्तियां रामबाण औषधि का काम करती हैं। वर्षा ऋतु में जब मलेरिया और डेंगू ज्वर का खतरा बढ़ जाता है, तुलसी की दो पत्तियों को पीसी इलाइची तथा शक्कर एवं दूध के साथ आधा लीटर पानी उबालकर बना हुआ काढ़ा एक त्वरित उपचार है। तुलसी का सत ज्वर का निदान करता है। ज्वर उतरने के लिए तुलसी पत्र का ताजे पानी में बना सत हर 2-3 घंटे में देना चाहिए तथा बीच-बीच में ठंडा पानी देते रहना चाहिए।
खांसी:
कई प्रमुख खांसी की दवाओं की मुख्य उत्पाद तुलसी ही होती है। ब्रॉन्काइटिस और अस्थमा में ये कफ को ढीला करती है। तुलसी पत्र चबाने में खांसी-सर्दी में आराम मिलता है।
गले में खराश:
इससे आराम पाने के लिए तुलसी पत्र को पानी में उबालकर पीना चाहिए तथा इससे गरारे करना चाहिए।
श्वास संबंधी बीमारियां:
शहद और अदरक के साथ तुलसी का काढ़ा ब्रॉन्काइटिस, अस्थमा, फ्लू, सर्दी व खांसी के लिए एक रामबाण औषधि है। इन्फ्लूएन्ज़ा से बचाव के लिए तुलसी, लौंग और नमक का काढ़ा पीना चाहिए। काढ़ा बनाने के लिए पानी को उबालकर आधा करना चाहिए।
किडनी की पथरी:
छह महीने तक लगातार शहद के साथ तुलसी पत्र लेने पर पथरी की शिकायत जड़ से निकल जाती है।
ह्रदय रोग:
रक्त में कोलेस्ट्रॉल का दबाव काम कर तुलसी ह्रदय रोग तथा कमजोरी से राहत देती है।
बच्चों की व्याधियों:
तुलसी सत से बच्चों की सामान्य बीमारियों जैसे खांसी, सर्दी, दस्त-उल्टी, ज्वर से राहत मिलती है।
तनाव:
तनाव से बचाव के लिए एक स्वस्थ आदमी को भी 10-12 तुलसी पत्र दिन में दो बार खाने चाहिए।
मुँह की बीमारियां:
तुलसी पत्र को चबाने से मुँह की बीमारियां भी दूर होती है और अल्सर भी।
कीड़ों का दंश:
कीट दंश के लिए भी तुलसी लाभकारी है। जोंक व अन्य कीटों के दंश के बचाव के लिए तुलसी पत्र के ताज़े रस को शरीर के प्रभावित अंग पर मलना चाहिए और इसका सेवन भी करना चाहिए।
त्वचा रोग:
त्वचा रोग जैसे दाद, खाज, खुजली आदि से उपचार के लिए भी तुलसी उपयोगी है।
दांत की बीमारी:
इसकी सूखी पत्तियों से दांत मांजना चाहिए। दांतों की सुरक्षा के लिए तुलसी व हल्दी का मलहम उपयोगी है।
सिरदर्द:
तुलसी तीव्र सिरदर्द में भी दवा का काम करती है। यह सिर व शरीर को ठंडक प्रदान करती है।
नेत्र रोग:
रतौंधी व आँखों में जलन का उपचार तुलसी के सतकारा से हो सकता है। रात में सोने के पहले श्याम तुलसी के रस की दो बूँद आँखों में डालनी चाहिए।