Jeevan Prabandhan

खुदा से प्रेम तो उसकी बनाई दुनिया से नफरत कैसे?

संसार में कुछ शब्द बहुत गलत तरीके से समझे गए और उन्हीं में से एक है प्रेम। इस शब्द के साथ न सिर्फ नादानी हुई बल्कि खूब अत्याचार भी हुआ। कभी इस पर वासना का आवरण लपेटा गया तो कभी मोह की चादर बांध दी गई।

इमाम शाफी नाम के मुस्लिम संत इस कदर प्रेम में डूबे हुए थे कि उनसे छोटे, उनके हम उम्र तो उनके मुरीद थे ही लेकिन उनसे बड़ी उम्र के लोग भी उनके पीछे भागते फिरते थे।

अध्यात्म में परमात्मा के प्रति प्रेम और भय दोनों एक साथ चलते हैं। यह अजीब से मेलजोल है। वैसे जहां प्रेम है वहां भय नहीं होता और जहां भय है, वहां प्रेम नहीं होगा, लेकिन ऊपर वाले के रिश्ते में ये दोनों एक साथ चलते हैं।

एक बार एक खलीफा ने खयाल किया कि इमाम शाफी से एक फैसला करवाया जाए। उनकी परीक्षा भी हो जाएगी और मेरा भ्रम भी दूर होगा। खलीफा ने सवाल किया कि इमाम यह बताएं कि मैं जन्नती हूं या दोजखी? यानी मैं स्वर्गवासी हूं या नर्कवासी।

फैकिर इमाम ने खलीफा से एक सवाल पूछा,‘‘क्या जिंदगी में ऐसा हुआ है कि कोई गुनाह करने के पहले अल्लाह के खौफ के कारण आपने वह गुनाह नहीं किया?’’खलीफा ने कहा कि हाँ ऐसा मौका आया है। इमाम शाफी बोले तो आप जन्नती हैं, स्वर्ग के हकदार हैं, आप स्वर्ग में ही जाएंगे।

लोगों ने सवाल किया- आपके फैसले का आधार क्या है? तो फकीर ने कहा कि कुरआन में आयत आई है जिसका मतलब है कि जिस शख्स ने गुनाह का कस्द (विचार) किया और फिर खौफे-इलाही (प्रभु-भय) की वजह से गुनाह करने से दूर रहा तो उसका घर जन्नत है।

इसलिए उस परमपिता के प्रति हमारे भीतर ऐसा प्रेम होना चाहिए जो विस्तारित होकर सारी दुनिया के लिए फैल जाए। जो खुदा से प्रेम करे वह उसकी बनाई हुई दुनिया से नफरत कैसे कर सकता है।

पं विजयशंकर मेहता
(जीवन प्रबंधन गुरु)


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Sri Maheshwari Times

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