Jeevan Prabandhan

जिसने मन को जीत लिया वही होगा विश्वजीत

‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। ‘ इस साधारण सी कहावत का जन्म कई महत्वपूर्ण श्लोकों से गुज़रकर हुआ है। सभी धर्मों ने अपने साधकों को घुमा-फिरकर मन पर ला टिकाया है। जो अपने मन से हारा वो चाहे बाहर दुनिया जीत ले फिर भी पराजित माना जाएगा और जिसने मन को जीत लिया वह विश्वजीत हो जाएगा।

हनुमान जी को जब लंका में पहली बार प्रवेश करना था तो वे जानते थे कि लंका भोग और विलास का केंद्र है। यहाँ सबसे अधिक मन को नियंत्रण में रखना होगा। हनुमानजी का सिद्धांत था मन को नियंत्रण में रखने के दो तरीके हैं-पहला अभ्यास और दूसरा है वैराग्य। महर्षि पतंजलि ने भी लिखा है- अभ्यासवैराग्याभ्यां तान्निरोधः। मन के लिए सबसे अच्छा अभ्यास है सतत नाम जप।


मन को जीत लिया

24 घंटे में कुछ समय निकाला जाए जब प्रत्येक सांस के साथ विचार न लेते हुए नाम जप किया जाए। यह नाम गुरुमंत्र हो सकता है, ईश्वर की स्मृति के लिए कई शब्द हो सकते हैं लेकिन उस समय मन को विचारों से मुक्त रखा जाए। धीरे-धीरे जीवन के सभी कार्य करते हुए यह जप भीतर-भीतर चलने लगता है।

इस अभ्यास से मन को नियंत्रित करने में सुविधा रहती है। दूसरा तरीक़ा है वैराग्य। वैराग्य का यह अर्थ नहीं है कि दुनिया छोड़कर साधू ही बन जाए। अध्यात्म ने तो कहा है हर साधक की छः सम्पत्तियाँ होती है- शम, दम, उपरति, तितिक्षा, समाधान और श्रद्धा। उपरति का अर्थ है वैराग्य। भोग और विलास के प्रति सजकता का दूसरा नाम वैराग्य है।


वैराग्य आते ही कामनाएं और तृष्णाएं वश में होने लगती है। यहीं से भ्रम और द्वंद समाप्त होते हैं। उलझनें मिटने लगती हैं। यह स्पष्ट होने लग जाता है कि जो सही है वही करना है, जो गलत है उसे करना तो दूर चिंतन में भी नहीं लाना है। वैराग्य ऐसी स्पष्टता भी देता है। हनुमानजी ने लंका प्रवेश के पहले इन दोनों बातों को साध लिया था।

मन से मिली हार सबसे बड़ी हार होती है। मन से हारा आदमी बाहर दुनिया से जीत ले फिर भी पराजित ही माना जाएगा। मन को जीतने के लिए उस पर पूरा नियंत्रण रखना होता है और इसको नियंत्रण में रखने के दो तरीके हैं- अभ्यास और वैराग्य।

पं विजयशंकर मेहता
(जीवन प्रबंधन गुरु)



Via
Sri Maheshwari Times

Related Articles

Back to top button