समय की मांग-डिजिटल डिटॉक्स
एक दौर था जब डिजिटल उपकरणों के उपयोग पर जोर दिया जाता था। अब धीरे-धीरे डिजिटल डिटॉक्स की मांग भी उठने लगी है। इसका अर्थ है डिजिटल उपकरणों से कुछ समय की दूरी। आईये जानें क्यों समय की मांग बन रहा है, डिजिटल डिटॉक्स?
एक ज़माना था, जब हम न्यूज़ चैनल, अख़बार, किताबों और मैगज़ीन को ही हमारे नॉलेज का स्रोत मानते थे। जब से इंटरनेट हमारे जीवन में आया है, हमने बहुत तेज़ी से तरक़्क़ी की और देश दुनिया की हर ख़बर, चुटकी में हमारी उँगलियों पर आ गई। जहाँ हमने इसके इतने लाभ देखे, वहीं एक पक्ष को अनदेखा करते चले गए, और आज भी कर रहे हैं।
हमारी निज़ी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा दख़ल इस इंटरनेट और सोशल मीडिया ने कर दिया। जहाँ एक परिवार में चार लोग भी साथ में बैठे हैं ना, निश्चित उनमें से दो लोग मोबाइल में इंटरनेट का उपयोग करते हुए मिल जाएँगे। इसके दुरुपयोग ने हमारी पारिवारिक ज़िंदगी में बहुत दूरियाँ बना दी है।
बच्चे और माता पिता सब, स्वयं में, अपने काम में, और बचे समय में मोबाइल पर इतना व्यस्त हो जाते हैं कि आपस में वार्तालाप और हँसी ठिठोली के पलों को जी नहीं पाते। अधिकतर अभिभावक तो ये मान ही चुके होते हैं कि, इसके बिना बच्चों का और खुद का गुज़ारा नामुमकिन है, जो कि हमारी ग़ुलामी वाली मानसिकता को दर्शाता है।
जीवन का अर्थ ही बदला
व्यापार पहले भी होता था, अब भी होता है, हालाँकि व्यापार करने के तरीक़े में बहुत बदलाव आया है, और पर क्या सिर्फ़ व्यापार और पैसा ही जीवन का उद्देश्य है? क्या हमारा घर- परिवार हमारे लिये कोई मायने नहीं रखता? व्यापार के लिये यदि ये सही तरीक़े से उपयोग भी किया जाए तो कोई हानि नहीं, पर धीरे धीरे मनोरंजन और फिर जीवन का अटूट अंग बन जाता है।
ये समस्या आज पनपी है, किंतु कल इतना भयावह रूप ले लेगी, जिसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है। हमारी आगामी पीढ़ियाँ किन-किन बीमारियों से जूझ रही होंगी, ये सोच कर ही मन सिहर जाता है।
डिजिटल दुनिया में खोता बचपन
स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई टेबलेट और आईपैड के ज़रिये करवायी जाती है, ये कौन सी भयानक लत हम युवा पीढ़ी में लगवा रहे हैं? आँखें, दिमाग़, खुद के पूरे शरीर और अंततः जीवन को, एक शत प्रतिशत बीमारी में झोंक रहे हैं। हमारी रचनात्मकता, हमारी कला, सब कुछ नष्ट करने में ये बहुत बड़ा भागीदार है।
ये गैजेट्स हम पर आधिपत्य जमा रहे हैं। इस समस्या का निवारण बहुत आवश्यक हो गया है। बच्चों से पहले, हम बड़ों को अपनी आदतें बदलने का ईमानदार प्रयास करना पड़ेगा। इंटरनेट के उचित उपयोग और लत के बीच का फ़ासला ही हमें समझना पड़ेगा।
क्यों जरूरी है डिजिटल डिटॉक्स
डिजिटल डिटॉक्स मतलब, जितना ज़रूरी है, उतना ही फ़ोन इस्तेमाल करें। यदि ये नुस्ख़ा हमने सच में अपना लिया तो, यक़ीन मानिये, हमारा स्क्रीन टाइम 50 प्रतिशत से भी कम हो जाएगा। ह़फ्ते में एक दिन ऐसा निकालिए जब फ़ोन आप छूयें भी ना, देखिए आपका मन-मस्तिष्क कितनी शांति का अनुभव करता है।
आप अपने परिवार, अपने काम और स्वयं के लिये इतना समय बचा तो सकते हैं। यदि हम इस उम्र में मोबाइल की लत नहीं छोड़ पा रहे, तो फिर बच्चों का तो कोई दोष ही नहीं है, क्यूँकि वो तो डिजिटल जेनरेशन में ही पैदा हुए हैं।
ये हम सभी की, पूरे समाज की कोशिश होनी चाहिए कि पहले हम डिजिटल डिटॉक्स को अपने जीवन का एक अनिवार्य अंग बनाएँ, फिर बच्चों को इस कार्य के लिए प्रेरित करें। निश्चित ही, हम एक आशाजनक बदलाव स्वयं में महसूस करेंगे।