त्रिदिवसीय दीपावली पर्व पर शास्त्रोक्त पूजन
वैसे तो दीपावली पर्व 5 दिवसों का माना जाता है, लेकिन आमतौर पर प्रारम्भ के तीन दिवस धनतेरस, नरक चतुर्दशी व दीपावली का विशेष महत्व है। तीनों ही दिन विशिष्ट पूजन होती है। तो आईये जानें कैसे करें इस त्रिदिवसीय पर्व पर शास्त्रोक्त पूजन जिससे हमें मिले पूर्ण फल।
प्रथम पर्व – धनतेरस
कब करें पूजन- आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वंतरी जी का प्राकट्य दिवस (धन त्रयोदशी) यम निमित्त दीपदान दिनांक 23 अक्टूबर 2022 रविवार को प्रदोषकाल में प्रशस्त है।
पूजन विधि- भगवान धन्वन्तरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। भगवान धनवन्तरि कर आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरत रोग विधूतं
अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य ।
गूढ़निगूढ़औषध्यरूपम्,धन्वन्तरि च सततं प्रणमामि नित्यं।
इसके पश्चात् पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़ें। भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल, अक्षत, पुष्प आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवैद्य लगाएं। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को अर्पित रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें।
‘‘ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्य फट्।।’’
इसके बाद भगवान धनवन्तरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाए। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
यह भी करें- घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त दीपदान करना चाहिए। रात्रि को एक दीपक में तेल, एक कौड़ी, काजल, रौली, चाँवल, गुड़, फल, फूल व मीठे सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करना चाहिए। दीप प्रज्जवलित करते समय निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए।
‘‘मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्याय सह।
त्योदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामित।।
द्वितीय पर्व- नरक चतुर्दशी
कब करें स्नान- कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी ब्रह्म मुहूर्त काल में रूप चौदस का स्नान होता है। 24 अक्टूबर 2022 सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में अभ्यङ्ग तैल उबटन लगाकर स्नान कर अपने ईष्टदेव तथा ग्राम देव का दर्शन कर दीपावली पर्व प्रारंभ करना शुभकारी होता है। इस प्रकार कर्म करने पर नर्कवास का योग समाप्त हो जाता है।
पूजन विधि- इस दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करके सूर्योदय के पूर्व स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए-
सितालोष्ठसमायुक्त सकण्टकदलान्वितम।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ।।
स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यम से परिवार के सुख की कामना करें। इसके साथ ही प्रदोषकाल में चार बत्तियों वाला दीपक जलाकर दक्षिण दिशा में रखें और उसका निम्न मंत्र से पूजन करें-
‘‘दीपश्चतुर्दश्यां नरक प्रीतये मया।
चतुर्वर्ति समायुक्त र्वपानतये। (लिंग पुराण)
तृतीय महापर्व-दीपावली
कब करें पूजन- कृष्ण पक्ष अमावस्या काल दिनांक 24 अक्टूबर 2022 सोमवार को उज्जैन के समय अनुसार सायं 5/27 को प्रारंभ हो जायेगा जो कि 25 अक्टूबर 2022 मंगलवार को सायं 4/18 तक रहेगा। दीपावली का पूजन प्रदोष काल में तथा महालक्ष्मी का पूजन रात्रि में प्रशस्त माना गया है। अतः पर्व 24 अक्टूबर 2022 को प्रशस्त है। 24 अक्टूबर 2022 को उज्जैन में सूर्यास्त का समय सायं 5/53 पर है। प्रदोष काल सायं काल 5/53 से रात्रि 8/28 तक रहेगा। इस काल में दीपोत्सव तथा महालक्ष्मीपूजन मुख्य रूप से प्रशस्त है।
पूजन विधि- पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा भक्ति पूर्वक सायंकाल महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। श्री महालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही पवित्र पात्र में केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य लक्ष्मी (रूपयों) को भी स्थापित करें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें। सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन, प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़के-
ॐ अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्मभ्यन्तरः शुचिः।।’’
उसके बाद जल अक्षत लेकर पूजन का निम्न मंत्र से संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिक मासे कृष्णपक्षे पुण्याममावस्यायां तिथौवार वार का नाम वासरे… गौत्र का उच्चारण करें गोत्रोत्पन्नः /गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्त-फलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकल-पापानिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्री महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौश्रीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दे।
प्रतिष्ठा- पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण प्रतिष्ठा करें। बाएं हाथ मे चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाए-
ॐ मना जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पितिर्यज्ञमिमं
तनात्वरिष्टं समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्पतिष्ठ।
ॐ अस्ये प्राणाः प्रतिष्ठन्तु
अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्ये देवत्वपमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
पूजन- सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करें इसके बाद कलश तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का) पूजन करें। तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें-
‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्री महालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
युक्तं सदा यक्तव पादवपंकजम् ।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्तयाखिलकामसिद्धये ।।
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्ननां सा में भूयात् त्वदर्चनात् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
प्रार्थनापूर्वक समस्कारान् समर्पयामि।
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
समर्पण- पूजन के अंत में-
‘कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम् न मम।’
यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल गिराएं।