देश के शीर्ष क्राफ्ट पेपर व बोर्ड सप्लायर- Ramesh Gandhi
माहेश्वरी समाजजन किस तरह ईमानदारी, दृढ़ संकल्प व सजगता से व्यवसाय करके सफलता का शिखर छूते हैं, इसी की मिसाल हैं, आर.ए. क्राफ्ट पेपर्स प्रा.लि. के संचालक रमेश गाँधी (Ramesh Gandhi), जो वर्तमान में देश भर में क्राफ्ट पेपर तथा बोर्ड सप्लाय में शीर्ष स्थान पर हैं। गत दिनों सिंगापुर में आयोजित ‘‘लोकमत ग्लोबल इकोनॉमिक कन्वेंशन’’ में श्री गाँधी को उनके इस योगदान के लिये ‘‘लोकमत मरूधर पुरस्कार’’ से सम्मानित किया गया।
आर्थिक क्षेत्र में हो रहे विकास की समीक्षा कर देश के विकास की दिशा तय करने के उद्देश्य से सिंगापुर के पांच सितारा विश्व प्रसिद्ध होटल शांगरी-ला में ‘लोकमत ग्लोबल इकानोमिकल कंवेंशन’ का भव्य आयोजन किया गया। इस समारोह में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने-अपने क्षेत्र में नाम रोशन करने वालों को सम्मानित किया गया। इंट्रिया ज्वेल्स, न्याति ग्रुप और जी 2 स्नैक्स के सहयोग से संपन्न हुए इस समारोह में अपने कर्तृत्व से अपनी विशिष्टता साबित करने वाले विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था।
इस अवसर पर राजस्थान के रेगिस्तान से निकलकर राज्य और देश के बाहर महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तियों को ‘लोकमत मरुधर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी के अंतर्गत आर.ए. क्राफ्ट पेपर्स प्रा.लि. के संचालक रमेश गाँधी व रोहित गाँधी को लोकमत मरूधर पुरस्कार की श्रृंखला में ‘‘एक्सीलेंस इन कंट्रीवाइड क्राफ्ट पेपर एवं बोर्ड सप्लायर’’ के सम्मान से सम्मानित किया गया।
रमेश गांधी कहते हैं, सिंगापुर में हुए लोकमत ग्लोबल इकोनॉमिक कन्वेंशन’ के मंच पर सच्ची प्रतिभाओं से मिलने का मौका मिला। उन्हें वैसे तो कई बार अवार्ड मिले हैं, लेकिन सिंगापुर में ऐसे लोगों से मिलकर उन्हें नई ऊर्जा प्राप्त हुई है। लोकमत की टीम द्वारा सवा सौ लोगों का सर्वे कर उनमें से उनका चयन किया जाना उनके लिए बहुत बड़ा सम्मान है।
संघर्ष से व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
श्री गाँधी का जन्म सन् 1951 में एक छोटे से कस्बे मलकापुर (अकोला) में हुआ। वहीं रहते हुए एम.कॉम तक शिक्षा ग्रहण की, जिसमें एक एवरेज विद्यार्थी ही रहे। वे सात भाई व तीन बहन थे, ऐसे में परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी। परिवार का कोई सशक्त व्यावसायिक बेकग्राउंड नहीं था, इसलिये शुरुआत में किराना की दुकान लगाई. गोली, बिस्कुट, सब्जी भी बेची। उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी के लिये आवेदन किया तथा साक्षात्कार के लिये मुम्बई गये लेकिन फेल हो गये। फिर वहाँ जाकर एक प्रायवेट फर्म में नौकरी प्रारम्भ कर दी और मुम्बई शिफ्ट हो गये।
सन् 1975 से 78 तक मुम्बई में रहे। इस दौरान मुम्बई की लाईफ स्टाईल व वहाँ के लोगों का संघर्ष देखा जो प्रेरक था। मुंबई ने उन्हें खूब सिखाया और परिपक्व बनाया। मुंबई अपने आप में सबसे बड़ा टीचर है, जिसने संघर्ष सिखाया। इसी दौरान 17 जून 1978 को उनका विवाह हो गया। बॉस की समझाइश के बावजूद मुम्बई छोड़ना पड़ा क्योंकि मात्र 700 रुपये की सैलरी में मुम्बई में परिवार सहित रहना सम्भव नहीं था।
ससुरजी नागपुर के अत्यंत सम्पन्न व्यक्तियों में से एक थे। अत: ऐसी स्थिति में उनसे चर्चा की। उनके परामर्श के अनुसार जनवरी 1979 में नागपुर में आर.एस. इन्टरप्राइजेस के नाम से दुकान प्रारम्भ की और फिर परिवार सहित नागपुर आ गये।
अत्यंत चुनौती भरा दौर
जो सफलता प्राप्त करने की जिद्द रखते है, वे चुनौतियों की परवाह नही करते। यह वाक्य श्री गांधी पर खरा उतरता है। श्री गांधी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए. कुछ हादसों ने तो उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया, लेकिन विकट हालात भी उनके संघर्ष और मेहनत के जज्बे को कम नहीं कर सके। भगवान श्री गणेश पर सदा से रहे अटूट विश्वास ने उन्हें और ताकत दी। श्री गांधी ने संघर्ष को सफलता का मूलमंत्र बनाया। आज वे सैकड़ों युवाओं के लिए प्रेरणादायी हैं।
श्री गाँधी बताते हैं मैंने एक-एक प्रेस जाकर कागज की रिम बेचना प्रारम्भ कर दिया। अलग-अलग शहरों में कॉपियाँ भी बनाई और टीएलओ भी बेचा। इस दौरान मुम्बई आने-जाने का मौका भी मिलता था। अब हमने आर.ए. इन्टरप्राइजेस नाम से नागपुर में भी फर्म प्रारम्भ कर दी, जिसके लिये नागपुर पेपर मिल की एजेंसी ले ली। फिर मैंने अपने परिवार को भी नागपुर से मुम्बई स्थानांतरित कर लिया।
दुर्भाग्य से 14 सितम्बर 1986 में मेरा बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया और मुझे डेढ़ माह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। इसमें मेरी समस्त जमा पूंजी समाप्त हो गई। उस कठिन दौर में मेरा कोई सहयोगी नहीं बचा। मेरी पार्टनरशिप टूट गई और मेरी एजेंसी भी जाने के कगार पर थी। बिक्री भी लगभग खत्म ही हो गई थी। मेरा मुम्बई ऑफिस पूरा बर्बाद हो गया था। यहा तक कि फिर नौकरी करने की नौबत तक आ गई।
परिवार बना संबल
श्री गाँधी इस स्थिति में परिवार के सहयोग का जिक्र करते हुए कहते हैं, इस कठिन दौर में धर्मपत्नी व ससुरजी का ही नैतिक सहयोग था। इन स्थितियों में ससुरजी ने मुझे पुन: नागपुर लौट जाने की सलाह दी। छोटा भाई राजेश जो अभी मुम्बई आफिस देख रहा है, वह इस दौर में मेरे साथ आ गया। भाई प्रशांत भी सहयोगी बना और हमने पुन: नागपुर से व्यवसाय की शुरुआत कर दी। धीरे-धीरे व्यवसाय फिर चलने लगा। हमने औरंगाबाद में भी अपना ऑफिस प्रारम्भ कर दिया। वहाँ का कार्यालय चचेरे भाई को सौंपा और आसपास का मार्किट भी कवर कर लिया।
उनका कहना है कि हमने हमेशा से अपने परिवार को ही प्राथमिकता दी है। आज भी 125 से 130 सदस्यों वाले परिवार पर उनका गजब का नियंत्रण है। यह नियंत्रण परिवार में एक-दूसरे के लिए न केवल सम्मानभाव का प्रतीक है बल्कि इस परिवार की सफलता की सुंदर तस्वीर भी है। श्री गाँधी कहते हैं, उनकी सफलता में उनकी पत्नी शोभा, भाई, भतीजे, पुत्र, जवाई की भूमिका सबसे अहम रही है। जिन्होंने न केवल परिवार को संभाला बल्कि उनके कठिन हालात में भी उनके साथ खड़े रहे।
वर्तमान में पूरे देश में कार्यालय
फिर धीरे-धीरे एजेंसियों का विस्तार करते गये। धीरे-धीरे परिवार के सदस्यों को काम मिलता रहा और 7 में से 2 दिन नागपुर और 5 दिन अन्य शहरों में होते हुए पूणे व कोल्हापुर तक जाते थे। इस तरह परिवार के सदस्यों का सहयोग मिला और व्यवसाय का विस्तार करते चले गये। वर्तमान में नागपुर, औरंगाबाद, नासिक, कोल्हापुर, पुणे, हैदराबाद, इन्दौर व वापी आदि में कंपनी के कार्यालय हैं तथा 150 से अधिक कागज मिलों की एजेंसी उनकी कम्पनी के पास है।
उनका व्यवसाय ‘‘आर.ए. क्राफ्ट पेपर प्रा.लि.’’ के नाम से देश भर में अपनी सफलता की पताका फहरा रहा है। वर्तमान में देशभर में 10 से 12 ऑफिस का संचालन हो रहा है और इनके द्वारा 150 से अधिक कागज मिलों के प्रतिनिधि के रूप में सेवा दी जाती है। 10 लाख के टर्न ओवर से प्रारम्भ व्यवसाय वर्तमान में 1 हजार करोड़ रूपये पर जा पहुँच है। इस सफलता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी वे इसका श्रेय अपनों को देते हैं।
श्री गाँधी कहते हैं मेरे विकट दौर में मुझे धर्मपत्नी तथा ससुरजी का जो सहयोग मिला, उसके बिना यह सफलता सम्भव नहीं थी। ससुरजी ने तो सदैव ही एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। मैं मित्र श्री अगरवाल का भी आभारी हूँ। वर्तमान में श्री गाँधी व्यावसायिक कारणों से यूएसए, यूरोप, खाड़ी देश, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका आदि स्थानों का भ्रमण कर चुके हैं।
उन्हीं की राह पर परिवार
बेटे राहुल ने बी.कॉम कर फिर एफएमडी किया और स्वयं भी इस पारिवारिक व्यवसाय में उतर गये और बॉम्बे शिफ्ट हो गये। एक मित्र विशाल धवन कनाडा शिफ्ट हो गये थे। उन्होंने कनाडा से पेपर इम्पोर्ट करने का ऑफर दिया। उन्होंने इस व्यवसाय को भी प्रारंभ कर दिया। कनाडा और अमेरिका गये तो वहाँ का व्यवसाय देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। राहुल ने वहाँ बड़ी मेहनत व लगन से व्यवसाय का अच्छा विस्तार कर लिया था। वे जिस मिल का काम करते थे, उसी को इम्पोर्टेड पेपर भी देते हैं।
अब यूएसए, यूरोप तथा खाड़ी देशों में भी कागज इम्पोर्ट करते हैं। दूसरे पुत्र रोहित इंजीनियरिंग कर वर्तमान में पूर्ण मार्केट सम्भाल रहे हैं। श्री गाँधी की बहू व रोहित की धर्मपत्नी प्रियंका भी उनका कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग दे रही हैं।
श्री गांधी स्वयं 75 वर्ष की आयुसीमा छूने वाले हैं, लेकिन आज भी वे दो घंटे नियमित व्यायाम करते हैं। एक घंटा पठन (बुक रीडिंग) करते हैं। एक घंटा पूजा करते हैं। अपनी इस सफलता का आनंद पूरे परिवार के साथ मनाते हैं। आज उनकी तीन पीढ़ियां इसी व्यवसाय में जुड़ी हैं, और प्रगति की नई ऊंचाइयों को छू रही हैं।