Jeevan Prabandhan

शांति का अच्छा साधन है मौन

मौन के वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं। परिवार में मौन शांति के साथ ही स्नेह व सम्मान की भावना भी पैदा करता है। गुरु-शिष्य की ही बात की जाए तो आज भी कई गुरु दीक्षा देते समय अपने शिष्यों से कहते हैं हमारे और तुम्हारे बीच मौन घटना चाहिए। इसका सीधा सा अर्थ है कि आप अपने गुरु से कम से कम बात करें। गुरु से जितना मौन होगा, शिष्य को शांति की उपलब्धि उतनी अधिक होगी।

गौतम बुद्ध मौन पर बहुत जोर देते थे। एक दिन अपने शिष्यों के बीच एक फूल लेकर बैठ गए और एक शब्द नहीं बोले। सारे शिष्य बैचेन हो गए। शिष्यों की मांग रहती है कि गुरु बोलें फिर हम बोलें। कई बार तो शिष्य लोग गुरु के नहीं बोलने को उनका अहंकार बता देते हैं। यह मान लेते हैं कि हमारे गुरु हमसे दूर हो गए। दरअसल, गुरु बोलकर शब्द खर्च नहीं करते बल्कि मौन रहकर अपने शिष्य का मन पढ़ते हैं।

बुद्ध का एक शिष्य महाकश्यप जब हंसने लगा तो बुद्ध ने वह फूल उसको दे दिया और अन्य शिष्यों से कहने लगे, “मुझे जो कहना था मैंने इसे कह दिया, अब आप लोग इसी से पूछ लो। ” सब महाकश्यप की ओर मुड़े तो उनका जवाब था, “जब उन्होंने कुछ कहा ही नहीं तो में कैसे बोलूं।” सारी बात आपसी समझ की है।

मौन की वाणी इसी को कहते हैं। इसे मौन का हस्तांतरण भी माना गया है। इसका यह मतलब नहीं है कि गुरु से जो ज्ञान प्राप्त हो वह मौन के बाद नाम पर पचा लिया जाए। गुरु के मौन से शिष्य का जो बोध होता है उसे समय आने पर वाणी दी जा सकती है। पर वह वाणी तभी प्रभावशाली होगी जब गुरु और शिष्य के बीच गहरा मौन घटा हो।

यह बात परिवार पर भी लागू होती है। मौन का हस्तांतरण पति-पत्नी के बीच, बाप-बेटे के बीच भी बिलकुल ऐसे ही हो सकता है। इससे परिवार में शांति के साथ परस्पर संबंधों में सम्मान, गरिमा व प्रेम प्रकट होगा। मौन कि भाषा बोलना चाहें तो एक काम करें – जरा मुस्कुराइए।

पं विजयशंकर मेहता
(जीवन प्रबंधन गुरु)


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