कला साहित्य की ‘सुहासिनी’ स्वाति मानधना
लोग कला व साहित्य को अलग-अलग नजरिये से देखते हैं, लेकिन हकीकत देखे तो दोनों एक ही सृजन के पथ है। ऐसे ही दोनों क्षेत्रों में एक साथ अपने सफलता के पथ पर अग्रसर हो रही है, पाक कला विशेषज्ञ व साहित्यकार स्वाति रामचंद्र मानधना। आईये जानें स्वाति मानधना की कहानी उन्हीं की जुबानी।
मेरा जन्म समाज सेवी परिवार में हुआ। शुरुआत से ही मैंने अपने दादाजी सांवलराम सोमानी को समाज के लिए तत्पर देखा। वे माहेश्वरी समाज, ब्यावर के अध्यक्ष पद पर भी रहे। हरिद्वार, पुष्कर, ब्यावर आदि जगह उन्होंने माहेश्वरी भवन निर्माण में यथासंभव सहयोग दिया। मेरे पिताजी श्याम सुंदर सोमानी समाज के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं।
माँ सुशीला देवी एक आदर्श महिला थीं। वह हस्तकला जैसे सिलाई, बुनाई-कशीदाकारी, पेंटिंग आदि में निपुण थीं। यह सारे हुनर मैंने अपनी माँ से सीखे। मेरी बड़ी बहन रश्मि साबू ने मेरे लिए हमेशा एक सुरक्षा कवच की तरह काम किया और मुझे भरपूर दुलार दिया। बचपन मेरा दिल्ली में बीता। प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में हुई। उसके बाद की शिक्षा ब्यावर से ग्रहण की। बीकॉम में मैंने पूरे ब्यावर में तीसरा स्थान प्राप्त किया। पढ़ाई के दौरान काफी सहेलियां बनी जिनसे आज भी जुड़ाव है।
बचपन से ही कला साहित्य की शुरुआत:
कुकिंग का शौक मुझे बचपन से ही था। रोज नित नई चीजें बनाती थी। मेरी बनाई हुई रेसिपी अनगिनत बार अखबारों में छपी व गिफ्ट हैंपर जीते। विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे गायन,पाककला, सलाद सज्जा, क्राफ्ट संबंधित, पैकिंग, पूजा थाली सजावट, निबन्ध, नृत्य, प्रांतीय वेशभूषा, राखी मेकिंग, मंनोरंजक गेम आदि में अनेकों इनाम प्राप्त किए।
पिताजी ने अपनी लिखी हुई एक कविता मुझे दिखाई। उस दिन से ही मुझे लिखने का शौक चढ़ गया। उस समय दो चार कविताएं व लेख लिखे। वे अखबार में भी छपे। लेकिन उसके बाद जिंदगी का दूसरा पड़ाव शुरू हो गया। ससुराल भी मुझे खानदानी मिला। समय बीता और ईश्वर ने दो फूलों से मेरी झोली को भरा। मैंने जीवन का व्यवहारिक ज्ञान मेरी सासू माँ से सीखा। कुछ साल ऐसे ही निकल गए मन मचल रहा था कुछ करके दिखाने को।
सेवा के साथ व्यवसायिक पथ पर भी कदम:
मन में कुछ नया करने की चाह ‘‘टप्परवेयर’’ की ओर ले आयी। एक दिन ऐसा आया कि मैंने मैनेजर व ग्रुप मैनेजर का पद पाया। 7 वर्षों तक ट्यूशन ली। कुकिंग क्लासेस ली। समर कैंप लगाए। समाज के कार्यक्रमों में मेरी शुरू से ही रुचि थी और मैं सक्रिय थी। 27 अप्रैल 2014 को मुझे माहेश्वरी महिला मंडल का अध्यक्ष घोषित किया गया।
इतनी कम उम्र में अध्यक्ष पद पाने वाली मै प्रथम महिला थी। सामाजिक स्तर पर वे सभी कार्य किए जो पहले कभी नहीं हुए। 5 वर्षों तक चले कार्यकाल में बालोतरा माहेश्वरी समाज को एक नई पहचान दिलवाई। वर्ष 2014, 2015 व 2017 में महिलाओं के लिए महेश मेले का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य महिलाओं को स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बनाना था।
इसमें सभी जाति व समुदाय की महिलाओं को शामिल किया। तीन बार ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन शिविर का आयोजन महिलाओं व बालिकाओं के लिए किया गया ताकि वे अपनी कला को निखार सकें और उनके लिए रोजगार का मार्ग प्रशस्त हो। इस प्रयास को भी बालोतरा स्तर पर सभी के लिए किया गया। इसके अलावा त्योहारों को परम्परा के साथ मनाते हुए उसमें आधुनिकता का समावेश किया गया ताकि नई पीढ़ी भी उससे जुड़ाव महसूस कर सकें।
सफलता का सफर जारी:
त्योंहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, इसे ध्यान में रखते हुए ‘त्योंहार कहानी संग्रह’ पुस्तक का समाज स्तर पर वितरण किया गया। अन्न की बर्बादी को लेकर उठाए गए कदम आज एक प्रभावी रूप ले चुके हैं। इधर अंतर्मन में कला व पाककला का प्रेम हिलोरे ले रहा था।
डिजाइनर केक को मैंने अपना प्रोफेशन बना लिया। कब, कहां, कैसे शुरुआत हुई, मुझे खुद भी नहीं मालूम चला। आज इस हुनर के दम पर मैंने अलग ही स्थान बनाया है। पहचान को बांधा नहीं जा सकता। हमारा कार्य बोले तो हमें बोलने की जरूरत नहीं पड़ती।
मुझे बाड़मेर जिला उपाध्यक्ष का पद मिला। पश्चिमी राजस्थान प्रदेश में सदस्य रहते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 15 अगस्त 2019 को उप जिला कलेक्टर द्वारा मुझे राजकीय सम्मान दिया गया। फिर मैंने पुन: लेखन चालू किया। पत्रिकाओं व लोगों ने मेरे लेखन को खूब सराहा। अब ये सिलसिला कहाँ तक ले कर जाएगा यह तो नहीं मालूम लेकिन मुझे सम्मान बहुत मिला।
शीर्षक साहित्य परिषद द्वारा ‘शब्द श्री’ का सम्मान दिया गया। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘सुहासिनी’ उपनाम से अलंकृत किया गया। वर्तमान में मैं बालोतरा माहेश्वरी महिला मंडल संरक्षक, बाड़मेर जिला माहेश्वरी महिला मंडल उपाध्यक्ष, पश्चिमी राजस्थान प्रदेश संयुक्त मंत्री, अखिल भारतीय महिला मंडल की सदस्य, आईएमसीसी की बाड़मेर जिलाध्यक्ष,अखिल भारतीय वैश्य महा संगठन बालोतरा जिला महिला विंग अध्यक्ष के पद पर हूँ।
-स्वाति मानधना