‘सादगी के संत’, एशिया के शीर्ष उद्योगपति- Jyoti Maheshwari
यूं तो बगड़ जिला झुंझून निवासी ज्योति माहेश्वरी (Jyoti Maheshwari) एशिया के सबसे बड़े उद्योगपति रहे हैं, लेकिन उनसे मिलने वालों में उनकी पहचान किसी मनस्वी या संत से कम नहीं है। कारण यही है कि उन्होंने अपना जीवन सादगीपूर्ण ढंग से तो जिया ही हैं, साथ ही तन-मन-धन सभी से मानवता की सेवा में अपना योगदान देने में भी पीछे नहीं रहे।
‘दुनिया में सिर्फ धन कमाना ही सफलता नहीं कहलाती, बल्कि उस धन को किस तरह उपयोग में लाना है, उसका सदुपयोग कैसे करना है, सफलता इस पर भी निर्भर करती है।’ यह कहना है माहेश्वरी समाज के प्रसिद्ध उद्योगपति, समाज सेवी और कवि ज्योति माहेश्वरी का। ज्योति माहेश्वरी, माहेश्वरी समाज के ऐसे अनमोल रत्न हैं, जिन पर समाज और देश को गर्व है। वे अपने सिद्धांतों के पक्के हैं।
उन्होंने व्यवसाय क्षेत्र में शून्य से प्रारम्भ अपने व्हाइटनिंग एजेंट (टीनोपाल) के व्यवसाय को एशिया में प्रथम स्थान पर पहुँचा दिया। समाजसेवा के क्षेत्र में श्री माहेश्वरी का वंचित एवं निर्बल वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाना ही मुख्य ध्येय रहा। उन्होंने अपने कृतित्व से छोटे से कस्बे बगड़ को प्रदेश के मानचित्र पर प्रतिष्ठित कर दिया। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे समाज सेवा व धर्मार्थ कामों में सदा आगे ही रहे हैं। आजकल ज्योति माहेश्वरी विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े हुए हैं और सिर्फ हिंदुत्व के लिए ही कार्यरत हैं।
व्यवसाय मेंं शून्य से शिखर की यात्रा
ज्योति माहेश्वरी का जन्म 22 जुलाई 1945 को सेठ श्री शिव औंकार व श्रीमती कृष्णा देवी सोमानी (माहेश्वरी) के यहाँ हुआ था। पिताजी का शेयर व ट्रेडिंग व्यवसाय था लेकिन कुछ नया करने की चाह में श्री माहेश्वरी ने इस व्यवसाय की शुरूआत की। श्री माहेश्वरी बताते हैं कि व्यवसाय की सफलता के लिए वह करीब 40 देशों में घूमे। इसमें करीब 30 साल लग गए। व्यवसाय में सफलता मिलना आसान नहीं होता, जब वह छोटे स्तर पर शुरू किया जाए, तो यह और मुश्किल हो जाता है।

ज्योति जी बताते हैं कि उनका काम करने का तरीका बिल्कुल अलग था। निर्यात प्रारंभ करने से पूर्व उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सैंपल इकट्ठे किए तत्पश्चात अंकलेश्वर में रिसर्च एंड डवलपमेंट लैब की स्थापना की। जिसमें 2 वर्ष के अथक प्रयासों के बाद दो प्रोडक्ट तैयार हुए। फिर वे यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनी के पास गए और उनसे कहा कि वह उसकी लागत से भी कम पर प्रोडक्ट उपलब्ध करवा देंगे। कुछ दिन बाद कंपनी के प्रतिनिधि मुंबई आए। हमने उन्हें अंकलेश्वर स्थित अपना प्लांट दिखाया। कंपनी के अधिकारी संतुष्ट हो गए और उनकी डील पक्की हो गई।
ईमानदारी को बनाया आधार
एक आमधारणा है कि व्यवसायी व्यवसाय में अक्सर पूरी ईमानदारी से काम नहीं करते, पर ज्योति माहेश्वरी इसके अपवाद हैं। उन्होंने व्यवसाय में हमेशा ईमानदारी बरती। वह बताते हैं कि कंपनी से डील के बाद स्विट्जरलैंड की प्रख्यात कंपनी सीबा से भी उनका करार हुआ। व्यवसाय अब अच्छा चलने लगा। लेकिन उन्होंने कभी भी इन्कम टैक्स बचाने की कोशिश नहीं की। वह पूरा इन्कम टैक्स भरते थे। सीए को खास हिदायत थी कि किसी भी तरह का वित्तीय हेर-फेर न किया जाए।

उनका मानना है कि जब व्यवसाय से कमाई हो रही है, तो इन्कम टैक्स देने में क्या हर्ज है? आखिर वह पैसा भी तो देश के विकास में लगता है। श्री माहेश्वरी का कहना है कि जितनी ऊर्जा, जितना श्रम और जितना समय हम इन्कम टैक्स बचाने में लगाते हैं, उतनी ऊर्जा व्यवसाय को बढ़ाने में लगाना चाहिए।
इन्कम टैक्स की चोरी करने वाले हमेशा तनाव में रहते हैं, जिसका असर उनकी कार्यक्षमता व व्यवसाय पर पड़ता है। व्यवसाय में उन्होंने एक और सिद्धांत का पालन किया, वह यह कि बड़ी कंपनी होते हुए भी उन्होंने कभी शेयर मार्केट में लिस्टिंग नहीं करवाई, क्योंकि शेयर मार्केट के तौर-तरीके, उखाड़-पछाड़ उन्हें पसंद नहीं थी।
सादा जीवन व उच्च विचार
मुंबई जैसे महानगर में पलने-बढ़ने और शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद वह तड़क-भड़क से दूर रहे। उनकी स्कूलिंग मारवाड़ी लोगों के चंदे से बने स्कूल से हुई। इससे आगे की पढ़ाई उन्होंने जयहिंद कॉलेज से की, जो सिंधी समाज के चंदे से बना था। सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई उन्होंने पुणे के सरकारी कॉलेज से की। बचपन संपन्नता से गुजरा किंतु इंजीनियरिंग के दौरान पिता का व्यवसाय अर्श से फर्श पर आ गया और उन्हें शून्य से शुरुआत करनी पड़ी।

उनके व्यवसाय ने भले ही कितनी तरक्की कर ली हो, पर वे हमेशा 2 बीएचके के फ्लैट में ही रहते रहे। कभी भी उन्होंने बड़ी गाड़ी नहीं खरीदी। वे कहते हैं कि इस तरह के दिखावे में उन्हें विश्वास नहीं रहा। अपनी सफलता में पत्नी इंदु माहेश्वरी के योगदान की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि बिना उनके सहयोग के व्यवसाय में सफलता मुश्किल थी। हर परिस्थिति में वह साथ खड़ी रहीं। आपके परिवार में तीन विवाहित पुत्रियां अर्चना, शिल्पा व कविता हैं, जो उनके ही आदर्शों पर अग्रसर हैं।
आत्मप्रचार से रहे दूर
ज्योति माहेश्वरी निर्बल वर्ग की सहायता, दान, स्कूलों का जीर्णोद्वार, गौशालाओं, शिक्षण संस्थान, अस्पतालों आदि की सहायता और उन्हें अनुदान देने में आगे रहते हैं। ये दर्जनों संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, व्यक्तिगत रूप से भी और ज्योति माहेश्वरी फाउंडेशन के रूप में भी। वह कब किसकी और कितनी मदद कर देते हैं, पता ही नहीं चलता।
आत्मप्रचार से दूर वह अपने काम में व्यस्त रहते हैं। वे जयपुर की इस्कॉन की परिचालन समिति के चेयरमैन हैं। इस्कॉन के गिरधारी दाऊजी मंदिर के निर्माण में उन्होंने तन-मन-धन से सहयोग किया। इरकॉन द्वारा रैवारा धाम (सीकर) में निर्माणाधीन जगन्नाथ वैदिक ग्राम से भी वह जुड़े हुए हैं। वे वन बंधु परिषद जयपुर के भी 7 वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके हैं। माहेश्वरी समाज जयपुर के भी आप संरक्षक हैं।
साहित्य सृजन में भी समर्पित
एक बेहद व्यस्त उद्योगपति यदि लेखन के लिए समय निकाल ले, तो इससे बड़ी बात कोई और नहीं हो सकती। पर ज्योति माहेश्वरी बाकी लोगों से हटकर हैं। उन्होंने अपने व्यवसाय के साथ-साथ अपनी इन रुचियों के लिए समय निकाला। उन्होंने लेखन को हल्के में नहीं लिया, यानी सिर्फ रस्म अदायगी नहीं की। सत्तर के दशक में उनकी कविताएं धूम मचा रही थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में तो वह प्रकाशित हो ही रही थीं, साथ ही कवि सम्मेलनों की भी शोभा बढ़ा रही थीं।
प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी से उनके काफी प्रगाढ़ संबंध थे। अक्सर दोनों में साहित्यिक चर्चा होती रहती थी। माहेश्वरी जी को शरद जोशी जी से काफी प्रेरणा मिलती थी। श्री माहेश्वरी बताते हैं कि कविताओं की लोकप्रियता के बाद उन्होंने व्यंग्य लेख लिखना शुरू कर दिया। ये भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे।
वह बताते हैं कि उन दिनों वह डायरी भी लिखते थे। डायरी के संस्मरण ‘पड़ाव-दर-पड़ाव’ पुस्तक के रूप में सामने आए। इसके प्रकाशन में प्रख्यात पत्रकार नवभारत टाइम्स, मुंबई के संपादक विश्वनाथ सचदेवा ने काफी सहयोग किया। व्यंग्य लेख ‘जोग लिखीं’ भी पुस्तक के रूप में सामने आए। श्री माहेश्वरी का कहना है कि इन पुस्तकों के प्रकाशन को वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। पुस्तक को जिन्होंने भी पढ़ा, प्रशंसा की।
व्यवसाय व शौक के बीच संतुलन
वह बताते हैं कि रंगमंच से भी उन्हें काफी लगाव रहा है। उन्हें नाटक देखने का शौक भी था। व्यवसाय के साथ-साथ लेखन जैसे शौक के बीच संतुलन कैसे रखते थे? इस पर उनका कहना है कि जीवन में हर क्षेत्र में संतुलन बनाना पड़ता है। वह समय का बहुत आदर करते हैं।
व्यवसाय के समय में से ही वह कुछ समय निकालकर अपने इन शौकों के बीच संतुलन बनाते रहे हैं। उनका कहना है कि किसी व्यस्त व्यक्ति को इस तरह के शौक हैं, तो उसे इसी तरह समय निकालकर अपने शौक पूरे करना चाहिए। शौकों और रुचियों को दबाने से जीवन में तनाव और नीरसता आती है। जीवन को खुशहाल बनाना है, तो शौक पूरे करने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
पैतृक नगर को दिया महत्व
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में ‘बगड़’ झुंझुनू जिले का ऐतिहासिक शहर है। कहने को तो यह छोटा शहर है, लेकिन इस छोटे शहर से कई ऐसी शख्सियतें निकली हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। वीआईपी सूटकेस के संस्थापक-मालिक पीरामल बगड़ के ही हैं। और भी अनेक औद्योगिक घराने बगड़ से निकले हैं।

इसी श्रृंखला में ज्योति माहेश्वरी ने यहां शिक्षण संस्थाएं खोलकर विकास को गति दी। ज्योति माहेश्वरी का परिवार बगड़ के प्रतिष्ठित परिवारों में है। हालांकि श्री माहेश्वरी के जन्म के दो माह बाद ही उनके माता-पिता बगड़ से मुंबई चले गए थे। इस तरह ज्योति जी का लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा मुंबई में हुई। यहीं उन्होंने अपने व्यवसाय में सफलता प्राप्त की। फिर सन् 2003 में उन्होंने व्यवसाय से संन्यास ले लिया। वे परिवार सहित जयपुर आ गए और अपनी जन्म स्थली बगड़ में विभिन्न संस्थान खोलने शुरू कर दिए।
कई शिक्षण संस्थान की सौगात
ज्योति माहेश्वरी ने व्यवसाय से सेवानिवृत्ति से पहले से ही सोच लिया था कि वह बगड़ के विकास में पीछे नहीं रहेंगे। ज्योति माहेश्वरी फाउंडेशन के जरिए उन्होंने 2004 में एक तकनीकी संस्थान शिवओंकार माहेश्वरी टेक्निकल इंस्टीट्यूट प्राइवेट आईटीआई की शुरुआत की। इस संस्थान में राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीटी) के निर्धारित पाठ्यक्रमों के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता है। यह संस्थान दस एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।

इसकी सफलता के बाद ज्योति माहेश्वरी फाउंडेशन ने 2007 में कृष्णा देवी माहेश्वरी फार्मेसी कॉलेज की शुरुआत की। ज्योति माहेश्वरी का कहना है कि उन्होंने युवाओं में बेरोजगारी की समस्या को खत्म करने के उद्देश्य से इन तकनीकी संस्थानों की शुरुआत की थी, क्योंकि इन संस्थानों से प्रशिक्षण के बाद युवाओं को कहीं न कहीं रोजगार अवश्य मिल जाता है।
फार्मेसी में भी रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। इसके बाद फाउंडेशन ने 2014 में बगड़ इंस्टीट्यूट फॉर ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स की शुरुआत की। इसमें आईटीआई के इंस्ट्रक्टर्स को ट्रेनिंग दी जाती है। यह राजस्थान का प्रथम ऐसा संस्थान है, जहां इंस्ट्रक्टर्स को ट्रेनिंग दी जाती है। इन तीनों संस्थानों का संचालन तो ज्योति माहेश्वरी फाउंडेशन करता ही है, साथ ही स्कूल, गौशालाओं, धर्म स्थलों को भी अनुदान दिया जाता है।
सेवा ने दिलाया सम्मान
वर्ष 2000-2001 के लिए रासायनिक निर्यात संवर्धन परिषद के डाईज पैनल द्वारा निर्यात के लिए ‘फर्स्ट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 से 2002 तक डाइस्टफ मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आप अध्यक्ष रहे। वर्ष 2010-11 के लिए रोटरी क्लब ऑफ जयपुर मिड टाउन के अध्यक्ष रहे व 2010-11 के लिए जिला 3050 के सर्वश्रेष्ठ क्लब से सम्मानित हुए। वर्ष 2016 से 2023 तक फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल्स सोसायटी, जयपुर के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2024 में जयपुर माहेश्वरी समाज द्वारा समाज रत्न के रूप में आपको सम्मानित किया गया। इनके साथ ही ऐसी कई संस्थाऐं हैं, जिन्होंने आपकी सेवाओं को सराहा और सम्मानित किया।