खुशियों की राह दिखती ज्योतिर्विद- अनुसूया मालू
वर्तमान दौर में जब पाश्चात्यकरण का प्रभाव तथा ज्योतिष – वास्तु के क्षेत्र में ठगों का बढ़ता प्रभाव इस पुरातन विज्ञान को अंधविश्वास नाम दिलवाने में लगा है, ऐसे में जयसिंगपुर जिला – कोल्हापूर (महाराष्ट्र) निवासी अनुसूया मालू गहन अध्ययन के बाद इस गूढ़ ज्ञान से शास्त्र सम्मत परामर्श देकर इस भारतीय गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करने में लगी हैं। 45 वर्ष की अवस्था में प्रारम्भ उनकी यह यात्रा आज पौत्र-पौत्रियों के साथ भी सतत जारी है।
जयसिंगपुर जिला – कोल्हापूर (महाराष्ट्र) निवासी संजय मालू की धर्मपत्नी ज्योतिर्विद, वास्तुविद् व हस्तरेखा विशेषज्ञ अनुसूया मालू की पहचान सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण महाराष्ट्र में एक ऐसी ज्योतिष व वास्तुविद् के रूप में है, जो इस क्षेत्र में अपने गहन अध्ययन से विश्वास का दूसरा नाम बन गई हैं।
उनके प्रति विश्वास का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि उनका प्रधान कार्यालय तो जयसिंगपुर जिला – कोल्हापूर में कार्यरत है ही, इसके साथ इचलकरंजी, सांगली, कोल्हापुर व पुणे में भी उनके परामर्श कार्यालय ‘महालक्ष्मी ज्योतिष’ सफलतापूर्वक कार्यरत हैं।
अपने इन सभी कार्यालयों द्वारा उन्होंने अपने इस परामर्श को ‘कार्पोरेट लूक’ तो दिया है, लेकिन अपनी इस सेवा को विशुद्ध व्यवसाय कभी नहीं बनने दिया। यही कारण है कि उनके प्रयासों से इस व्यवसाय की गरिमा बढ़ी ही है।
45 वर्ष की अवस्था में शुरूआत
ज्योतिष में भास्कराचार्य जैसी उच्च उपाधि प्राप्त स्व.श्री मिठुलालजी दाड के यहाँ जालना में जन्मीं श्रीमती मालू की इस गूढ़ ज्ञान की ओर बढ़ने की यात्रा अत्यंत रोचक है। श्रीमती मालू को बचपन से पढ़ाई का शौक था लेकिन जल्दी विवाह होने के कारण पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी। फिर पारिवारिक जिम्मेदारियों में ऐसी व्यस्त हुई कि कुछ करने का अवसर ही नहीं मिला। लेकिन उनके अन्तर्मन में उच्च शिक्षा ग्रहण करने की कसक बराबर बनी हुई थी।
इसी के चलते आखिरकार 45 साल की उम्र मे पढ़ाई पुनः पढ़ाई शुरू की और अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया। इसके बाद जीवन ने नया मोड़ लिया।
उनकी रूचि ज्योतिष – वास्तु आदि के क्षेत्र में थी। अतः ज्योतिष शास्त्र में आचार्य तक अध्ययन किया। भास्करचार्य की पढ़ाई कोल्हापुर जिला नृसिंहवाडी क्षेत्र अंतर्गत में रहने वाले श्री अवधूतजी जेरे गुरु जी ने करवाई।
गुरू ने भी हौंसले को सराहा
श्रीमती मालू बताती हैं कि गुरुजी को शंका थी, मैं एक माहेश्वरी नारी भास्कराचार्य नहीं बन पाऊंगी। पर मेरी कठोर मेहनत और समर्पित लगन को देखकर वे भी हतप्रद रह गये। मैं अव्वल नंबर सें पास होकर अपनी लगन से पढ़ाई पूरी करती हुई आगे बढ़ती ही रही।
8 साल की पूरी पढ़ाई की और आचार्य तथा भास्करचार्य पद लेने के बाद ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ बैंगलोर आश्रम में मंत्र शास्त्र दीक्षा लेते हुए, ध्यान, प्राणायाम एवं ब्लेसिंग कोर्स को पूरा किया। वर्तमान में वैदिक धर्म संस्था से जुड़कर कार्यरत हूँ। सामाजिक कार्य में महाराष्ट्र प्रदेश की अध्यक्ष हूं।
मैंने वास्तुविशारद की उपाधि भी प्राप्त की और हस्तरेखा में भी विशेषज्ञता प्राप्त की। वर्तमान में उनका परिवार पुत्री निकिता, पुत्र निकेत, सहित दोहित्र तथा पोत्र-पोत्री आदि से भरापूरा है लेकिन फिर भी इनकी यह सेवायात्रा सतत जारी है।
आंखें हैं ज्योतिष वास्तु शास्त्र
श्रीमती मालू ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र को कतिपय प्रबुद्धों द्वारा अंधविश्वास कहे जाने पर नाराज हो जाती हैं। उनका कहना है कि मत्यपुराण में ब्रम्हदेव ने ज्योतिष और वास्तु का ज्ञान दिया है, तो वहीं विश्वकर्मा प्रकाश में वास्तु का ज्ञान स्वयं भगवान शिव ने दिया है।
ज्योतिष व वास्तु दोनोें ही आंखों की तरह है। दोनों ही महत्वपूर्ण व दिशादर्शक हैं तथा शुभ और अशुभ संकेत देते हैं। जैसे ज्योतिष में शुभ ग्रह और पाप ग्रह होते हैं वैसे वास्तु में भी शुभ ग्रह का स्थान और पाप ग्रहों का स्थान होता है। जैसे वायव्य से लेकर अग्नि में कोण शुभ ग्रह वास करते हैं और अग्निकोण से लेकर दक्षिण नैऋत्य कोण पश्चिम तक सारे पाप ग्रह वास करते हैं ।
दिशा के अधिपति के कारण कभी सत बढ़ता है तो कभी रज बढ़ता है। एक और चंद्रमा, बुध, गुरु, सूर्य, शुक्र हैे तो दूसरी और मंगल, राहु, शनि जैसे पाप ग्रह देव और दानव के बीच जैसी भावना बुद्धि व अहंकार को जागृत कर देते हें।
कुशल बुद्धिमान वास्तु शास्त्रज्ञ को तुरंत पता चल जाता है कि भवन में किस की उर्जा कार्यरत है। जिस तरह डॉक्टर रिपोर्ट देखकर जान लेता है कि यह क्या बीमारी है? उसी तरह भवन को देखकर वास्तु शास्त्र भी समझ जाता है।