Personality of the month

आईएएस में चयनित दीपक करवा

राजस्थान के छोटे से कस्बे खींवसर ने समाज को ऐसी कई विभूतियां दी हैं, जिन्होंने इस कस्बे को देशभर में विशिष्ट पहचान दी है। वर्तमान में समाज में युवा वर्ग को प्रशासनिक सेवा की ओर प्रेरित करना समय की प्रमुख अवश्यकता बन चुकी है। ऐसे में खींवसर व मुंबई माहेश्वरी समाज से प्रथम आईएएस बनने का सम्मान भी इसी मिट्टी के लाल दीपक करवा दिलवाने वाले हैं।

खींवसर जिला नागौर (राजस्थान) के मूल निवासी व वर्तमान में मुंबई निवासी समाज सदस्य बाबूलाल करवा के सुपुत्र दीपक करवा ने वर्ष 2019 की संघ लोकसेवा आयोग की प्रशासनिक सेवा परीक्षा में आईएएस के लिए चयनित होने में सफलता प्राप्त की है। दीपक आगामी सितंबर 2020 से प्रारंभ होने वाली आईएएस की बैच में शामिल होंगे।

दीपक करवा
दीपक करवा

कोरोना महामारी के कारण इस परीक्षा के परिणाम के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा लेकिन आखिरकार रक्षाबंधन का पर्व 4 अगस्त उनके और समाज के लिए एक नई खुशखबरी लेकर आ ही गया।

इस परीक्षा में उन्हें 48वीं रैंक राष्ट्रीय स्तरीय पर प्राप्त हुई। यह उनका जुनून ही है कि वर्ष 2018 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर जगह चयनित हेकर भी उन्होंने ज्वाइन नहीं किया था। बस लक्ष्य था आईएएएस और आखिरकार बनकर ही दम लिया।

महासभा बनी करवा परिवार की प्रेरणा:

दीपक का जन्म 21 मई 1992 को खींवसर जिला नागौर (राजस्थान) के मूल निवासी व मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में सेवारत समाज सदस्य बाबूलाल व वीणादेवी करवा के यहां हुआ था। दीपक बचपन से ही पढ़ाई में तीक्ष्ण बुद्धि ही थे। अतः उन्होंने जेईई जैसी कठिन परीक्षा उत्तीर्णकर आईआईटी चैन्नई से बीटैक किया।

दीपक करवा

लेकिन महासभा द्वारा भीलवाड़ा में आयोजित सम्मेलन ने प्रशासनिक सेवा के लिए प्रेरित कर दिया। बस यह प्रेरणा दीपक के पिता श्री बाबूलाल करवा के मन में घर कर गई और इसने पारिवारिक प्रेरणा का रूप भी ले लिया।

श्री करवा अपने पुत्र की इस सफलता का श्रेय समाजसेवी पद्मश्री बंशीलाल राठी के आशीर्वाद व नवल राठी और प्रशांत बांगड़ के प्रोत्साहन को भी देते हैं।


बहन बनी दीपक की प्रेरणा:

करवा परिवार में उत्पन्न हुए प्रशासनिक सेवा के प्रति रुझान का सर्वप्रथम प्रभाव दीपक की बड़ी बहन सोनू माहेश्वरी में दिखाई दिया। समाज व पिता की प्रेरणा ने सोनू को संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा की ओर प्रेरित तो कर दिया लेकिन इस बीच उनका विवाह हो गया और पारिवारिक व्यस्ततता की विवशता में आखिरकार उन्हें सफलता की यात्रा को मझधार में ही इसे विराम देना पड़ा।

बस उनके मन में दबी इस इच्छा ने छोटे भाई दीपक को राह दिखाई। वैसे दीपक ने बीटेक के अंतिम वर्ष २०१५ में प्रथम बार अपने सहपाठियों को देखकर यह परीक्षा दे दी थी लेकिन गंभीरता से न लेने के कारण इसमें पूरी तरह असफलता ही हाथ लगी थी।


असफलता में भी खोजी सफलता की राह:

उन्हें जो सफलता मिली वह सहज ही नहीं मिल गई बल्कि अंतिम छठे प्रयास में मिली। प्रथम प्रयास उन्होंने एक एजुकेशनल स्टार्ट अप अवंति में नौकरी करते हुए दिया था। दूसरी बार यह परीक्षा दी और उसमें भी परीक्षा पैटर्न में बदलाव के कारण असफल हो दूसरा अवसर भी गंवा दिया।

उल्लेखनीय है कि इस परीक्षा में सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को कुल 6 अवसर ही मिलते हैं। अतः उनके पास अब मात्र 4 अवसर शेष और वे अभी तक प्रारंभिक परीक्षा की उत्तीर्ण नहीं कर पाए थे।

वर्ष 2016 में भी 8 अंकों से प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण नहीं हो पाई। वर्ष 2017 के चौथे प्रयास में प्रथम बार प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण हुई लेकिन मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण नहीं हो सकी। उन्हें इससे बहुत हताशा हुई और उन्होंने महाराष्ट्र ट्राइबल डिवलपमेंट विभाग में नौकरी कर ली।

इस दौरान कई आईएएस अधिकरियों के संपर्क में आए तो फिर उत्साह जागा। वर्ष 2018 में फिर परीक्षा दी लेकिन इस बार भी प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण नहीं हो पाई। कुछ सलाहकारों ने उन्हें पूर्णकालिक तैयारी की सलाह दी।

बस दीपक अपने मित्र सुमित गुप्ता व टोकॉस के साथ फिर जुट गए और इस बार प्रारंभिक परीक्षा ही नहीं बल्कि संपूर्ण चयन प्रक्रिया देशभर में 48वीं रैंक के साथ उत्तीर्ण कर के ही दम लिया।


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Sri Maheshwari Times

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