दिखावे री होड़
खम्मा घणी सा, हुक्म एक जमानो हो जण बातों सुं फुर्सत नही मिलती थी , अब तो हुक्म बच्चा मां-बाप संग बात करण वास्ते तैयार नहीं और बुढ़ा माता-पिता आपरी औलाद रा दो बोल सुनण रे वास्ते तरस जावें। घर में घोड़ा-गाड़ी सब है हुक्म पर बूढ़ा औलादों री राह देखता थक जावे।
अबे टाबरों ने कुण केवे कि वाणे बंगला, दवाईयां नहीं बच्चा रो संग चइजे।
हुक्म किन्हैही कनै समय नही है आश्चर्य तो जणे हुवे जण नया-नया ब्याहवता पति-पत्नी एक फ्लेट में रेहते हुवे भी व्हाटस पर चैट करता नजर आवे । वाह रे जमाना ! सच कहूँ हुक्म आपाणै समाज में भले ही बहुत सम्पन्ता आयगी पर बातो रे रस री दरिद्रता जरूर आयगी।
अगर दो वकील मिल जाई तो सिर्फ कोर्ट किस्सा री बाता, विश्वविद्यालय रा मास्टर मिल जाई तो कोरी परीक्षा और यूजीसी सुं मिलण वाला पारिश्रमिक रे अलावा कोई दुजी बात नहीं करे।
कसम सुं हुक्म कई बार कला, सिनेमा, कविता और खेल पर बांता करण के लिये तरस जांवा।
अगर कोई बचपन रो दोस्त टकरा जावे तो मित्र आपरी सम्पन्ता और बेटे-बेटियां रे ऊंचे पेकेज री गुणगाण करता नही थाके। मन तो करे हुक्म दो लापा गाल पर धर ने केव्हा कि दिखावे रे सिवाय थारे कन्हे और कुछ भी नहीं है न ही पुरानी स्मृतियां न ही बचपन रा किस्सा।
हुक्म आश्चर्य में पड जावा जण आजकल रा छोरा-छोरियां केव्है कि बोर हो रिया हां… अगर मां रा प्यार भरा शब्द सुणे, नानी-दादी री कहांनियां श्रवण करे, भाई-बहनों रे साथे बेठ ने लुढ़ो-चेस, कैरम-बोट खेलने नौक-झौंक करे ।
दोस्तो रे साथे गिल्ली-डंडा ,खो-खो ,कब्बडी खेले और म्हारी मारवाड़ी भाषा मे यो लेख आपणी बोली पढ़े तो राम-कसम कदेही बोर नहीं हुव्हे। बस जीवन में पढ़ण को, बांता को रस लेवण आवणो चईजे । सही है नी सां….
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