Aapni Boli

भाई जेडा सैन

भाई जेडा सैन – खम्मा घणी सा हुक्म ! मनुष्य चाहे कितनों भी बड़ा हूँ जावे, सेवाभाव रे बिना मनुष्य री मनुष्यता अपूर्ण है। निस्वार्थ भाव सूं कियोड़ी सेवा सूं बढ़ने संसार में कोई धर्म नहीं है। मनुष्य ने स्वार्थ री मित्रता रो त्याग करणो चहिजे और जो मित्र विपत्ति और दुख में साथ निभावे एड़ा मित्र रो परित्याग कदैई नहीं करणो चहिजे। याही सच्चे मित्र रा लक्षण हुवे।

मित्रता स्वार्थ परायणता रे लिए नहीं बल्कि समर्पण रे लिए हैं। आज हर व्यक्ति प्राय: अपणे स्वार्थ सिद्ध करणे रे वास्ते मित्र बणावे और काम निकळ जाणे रे पछे मित्रता समाप्त हूँ जावें… हुक्म आपरे विचार में या सही है..? स्वार्थ री मित्रता जीवन मे कई हासिल करें.. पल भर रो सकून या लंबे सफर में विनी भूमिका..?

“मित्रों इण बात ने भी नकारों नही जा सके कि हर मित्रता रे पीछे कोई ना कोई स्वार्थ हुवें। ऐड़ी कोई मित्रता नहीं जिणमें स्वार्थ नहीं हुवे यों भी एक कडवों सच है।”

आज रे वर्तमान युग में यों सब जगह देखण ने मिले की स्वार्थ रा साथी सभी जण हैं और जणे दु:ख रो समय आवे तो छोड़ने भाग जावे यदि आदमी रे कने धन, दौलत है, तो विने कनें रात दिन मित्रों रो तांतों लाग्योडो रेहवें और यदि उनके कने धन, दौलत नहीं है तो साथ छोड़ ने पतली गली सूं निकळ जावें। खाली अपणों उल्लू सीधो करें। इण संसार में 95% इन्हीं प्रकार रा लोग हैं।

हुक्म जो दुःख, तकलीफ रे समय साथ देवे, वे ही सच्ची मित्रता रा पात्र हुवे पर सच्चा मित्र बहुत कम मिलें। जीका भी मिलें केवल आपरो स्वार्थ सिद्ध करण में रेहवें। चाहे राजनीति हो या समाज सेवा हो। सबमें स्वार्थ रे बिना काम नहीं चले राजनेता लोग आवे बहुत लालच देने खुद रे स्वार्थ रे वास्ते दूसरों ने आकर्षित कर लेवे। और स्वार्थ पूरों हूँ जावें दोबारा कदैई भी नहीं पूछे..

समाज सेवा में जो नेताओं रे साथे स्वार्थ सूं जुड़ियोडा व्यक्ति हुवे वे भी उन्हीं री देखरेख करें इण प्रकार री दुनिया चल रही है। स्वार्थ है तो आपरे पास में…और स्वार्थ नहीं हैं तो कोई पूछण वाळा भी नहीं है।

हुक्म चार पंक्तिया याद आ रही है संकट में जो साथ निभावें,सच्चा मित्र कहलावें मित्र री पीड़ा ने समझे ,हर पल मित्र रे काम आवें। जो स्वार्थ रे लिये मित्रता बढ़ावें, सुख में खुब मौज उड़ावें,एड़ा मित्र ने पहचानो जो स्वार्थ रे लिये मित्रता बनावें। मित्रता कृष्ण सुदामा निभावे, निर्धन धनी री दीवार गिरावें। स्वार्थ री मित्रता पहचान स्वार्थी मित्र ने दूर भगावें।

“स्वाति ” दुनिया ने जान पावें कि, निस्वार्थी मित्र ही सदा काम आवें।

– स्वाति जैसलमेरिया


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Sri Maheshwari Times

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