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भोजन करते समय टीवी क्यों न देखें?

भोजन करते समय टीवी क्यों न देखें ?टीवी वर्तमान में हमारी रोज़मर्रा की आवश्यकता बन चुका है। अपनी व्यस्तता के कारण हम भोजन करते समय इसे देखकर उस समय का भी सदुपयोग कर लेना चाहते हैं। लेकिन वास्तव में यह सदुपयोग नहीं बल्कि दुरूपयोग है। आखिर ऐसा क्यों? आइये देखें

आज के इस ज़माने में टीवी क्या अभिशाप तो नहीं बन गया है? इस बात का चिंतन करना आवश्यक हो गया है। हमारा रोज़ का अनुभव है कि टीवी की वजह से हमारा आपसे संवाद समाप्त हो गया है। परिवार का सोचें तो बच्चों को कार्टून फिल्म चाहिये, युवाओं को या तो पिक्चर अथवा क्रिकेट मैचेस चाहिये, स्त्रियों को पारिवारिक सीरियल्स चाहिए, बड़े-बुज़ुर्गों को समाचार चाहिए।

घर आते ही बस अपने-अपने पसंद के चैनल्स शुरू हो जाते हैं। आपस में बात ही नहीं। यहाँ तक की यदि कोई मित्र या सम्बन्धी भी मिलने आये तो भी टीवी देखने में लगे रहते हैं। आपस में सम्भाषण ही नहीं होता।

मेहमानों के चाय पीकर जाते समय “फिर से ज़रूर आना” कहकर उन्हें विदा कर दिया जाता है। यह अत्यंत सोचनीय अवस्था परिवारों की होने लगी है। इस पर गंभीरता से चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है। यह घटती सामाजिकता की स्थिति है।


शरीर पर भी दुष्परिणाम

शरीर पर भोजन के समय टीवी देखना कितना हानिकारक है, यह समझने के लिये कुछ मेडिकल तथ्यों को समझना जरुरी है। मनुष्य के शरीर में कई ग्रंथियां (Glands) होती हैं। जिसमे मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं।

एक एक्सोक्राइन (Exocrine Glands) और दूसरी एंडोक्राइन ग्रंथी (Endocrine Glands)। जिसमें Exocrine Glands उदाहरणार्थ सलाईवरी ग्लैंड (Salivary Glands), स्पर्म्स (Sperms) आदि ये रक्तवाहिनी द्वारा एन्ज़ाइम्स (Enzymes)शरीर में एक विशिष्ट जगह स्त्रावित (Secrete) करती हैं और शरीर पर अपना असर दिखाते हैं।

एंडोक्राइन ग्रंथियां बिना रक्तवाहिनी (Ductless Glands) के सीधे रक्त प्रवाह में स्त्रावित होती हैं। इनके स्त्राव को हॉर्मोन्स (Hormones) कहते हैं। ये हॉर्मोन्स दूर तक जाकर अपना असर दिखाते हैं। उदहारण पिनीअल (Pineal Gland), पिच्युटरी (Pituitary Glands), थाइरॉइड (Thyroid Gland), टेस्टिस (Testes), ओवरी (Ovary), अड्रेनल (Adrenal Glands) आदि।

जिसमें से कई एंडोक्राइन ग्रंथियों का सीधा संबंध मानवीय भावनाओं (Emotions) से भी होता है। मेडिकल के अभ्यास और रिसर्च में यह देखा गया है कि हम जब कभी भी टेंशन में आते हैं या डर जाते हैं, तब साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगती हैं तथा अपने ह्रदय की गति तेज़ होकर अपनी धड़कने हमें खुद को सुनाई देती हैं।

इसका कारण है, उस मनःस्थिति में अपने शरीर की एंडोक्राइन ग्रंथी। इससे जो हॉर्मोन निकलता है, उसे एड्रीनलीन (Adrenaline) कहते हैं और इसके स्त्राव की वजह से साँसे तेज चलने लगती हैं और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। ये तो दिखने वाली या महसूस करने वाली बातें हैं, लेकिन न दिखने वाले कई बुरे शारीरिक असर अपने शरीर के अंदर होते हैं, जैसे कि हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। निष्कर्ष यह है कि अपनी मानसिक भावनाओं या मनःस्थिति का (Effect of emotions) असर अपने शरीर पर होता ही है।


कैसे करता है टीवी प्रभावित

आज के इस दौर में इंटरनेट की वजह से सैकड़ों चैनल्स चलते हैं। हम कभी सिनेमा तो कभी कभी सीरियल देखते रहते हैं। सिनेमा या सीरियल देखते समय हम उस घटना के बहाव में इतना बह जाते हैं कि यदि कोई दुःख का “सीन” हो तो हमारी आँखों में पानी तक आ जाता है, करुणा का दृश्य हो तो मन में करुणा जाग जाती है, अन्याय होता देख हमें संताप होकर क्रोध आ जाता है

अर्थात हमारे इमोशंस चलचित्र की घटना के अनुसार बदलने लगते हैं। भोजन करते समय मारधाड़ के सीन देखकर या दुःख उभरे सीन देखकर हमारी भावनाएं बदलती रहती है। साइंस कहता है कि भावनाओं का असर हमारी एंडोक्राइन ग्लैंड्स के हॉर्मोन्स पर होता है और इसका दूरगामी परिणाम, भले ही तुरंत ना दिखे, लेकिन अपने शरीर पर होता ही है।

इसलिए भोजन शांतचित से, प्रसन्न वातावरण में आनंद के साथ करें। ऐसा भोजन हमारी पाचन क्रिया में भी मदद करता है और शरीर स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।



Via
Sri Maheshwari Times

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