मानवता की सेवा में समर्पित- डॉ. ब्रजमोहन ईनानी
भारतीय संस्कृति में चिकित्सक को ईश्वर का रूप माना जाता है। इसमें जब निःस्वार्थ भाव भी शामिल हो जाएं तो यह सेवा मानवता की सच्ची सेवा ही कही जाएगी। ऐसे ही मानवता के सेवक हैं बागली जिला देवास निवासी वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ब्रजमोहन ईनानी जो 80 वर्ष की अवस्था में भी न सिर्फ स्वयं पीड़ित मानवता की सेवा में जुटे हुए हैं, बल्कि उनका संपूर्ण परिवार भी उनके ही पद्चिह्नों पर चलते हुए मानवता की सेवा कर रहा है।
बागली जिला देवास के डॉ. ब्रजमोहन ईनानी परिवार का जिक्र आते ही क्षेत्र में हर कोई यही कहता है, ‘अच्छा, वह डॉक्टर परिवार’। कारण यही है कि इस परिवार में न सिर्फ डॉ. ईनानी स्वयं ही चिकित्सक हैं, बल्कि उनके परिवार ने तो अपनी 2 और पीढ़ियों को भी मानवता की सेवा के मार्ग चिकित्सा क्षेत्र को समर्पित कर दिया है।
आपके पुत्र डॉ. राम व डॉ. श्याम दोनों तो चिकित्सक हैं ही, साथ ही दोनों पुत्रवधू डॉ. अरुणा व डॉ. अनिता भी स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में सेवा दे रही हैं। डॉ. राम ईनानी एमडी फिजिशियन होकर प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। वहीं डॉ. श्याम ईनानी एमएस की उपाधि प्राप्त एक अत्यंत सफल सर्जन हैं।
दोनों की ही इंदौर क्षेत्र के ख्यात चिकित्सकों में गणना होती है। डॉ. राम के पुत्र राघव तथा डॉ. श्याम के पुत्र ईशान भी एमबीबीएस में अध्ययनरत हैं और चिकित्सक परिवार की परंपराओं का निर्वहन करने की तैयारी कर रहे हैं। आपकी एक पौत्री गौरी 10वीं में अध्ययनरत है।
एडवोकेट परिवार में लिया जन्म:
बागली के डॉक्टर परिवार के पुरोधा डॉ. ब्रजमोहन ईनानी का जन्म 2 मई 1940 को बागली जिला देवास में ख्यात एडवोकेट स्व. श्री रामगोपाल व श्रीमती रतनबाई ईनानी के यहाँ हुआ था। मूलरूप से यह पूरा परिवार एडवोकेट परिवार ही कहलाता है। कारण है, डॉ. ईनानी के लगभग सभी भाइयों का एडवोकेट होना।
डॉ. ईनानी का 6 भाइयों एवं 6 बहनों का भरा पूरा परिवार रहा है। एडवोकेट स्व. श्री सतीश ईनानी आपके बड़े भाई थे। छोटे भाई स्व. श्री ओमप्रकाश ईनानी भी एडवोकेट थे, लेकिन फिर वैष्णव स्कूल इंदौर में व्याख्याता के रूप में सेवा देने लग गए थे।
छोटे भाई एडवोकेट राजेंद्र ईनानी मप्र पश्चिमांचल प्रादेशिक सभा के प्रदेशाध्यक्ष रहे तथा अभा माहेश्वरी महासभा के कार्यकारी मंडल सदस्य के रूप में भी सतत सेवा दे रहे हैं। छोटे भाई बसंतकुमार व दिलीप ईनानी भी एडवोकेट हैं। इतना ही नहीं भाइयों के अधिकांश पुत्र भी एडवोकेट के रूप में ही सेवा दे रहे हैं।
ऐसे बढ़ा चिकित्सा क्षेत्र की ओर रुझान:
प्रख्यात एडवोकेट के परिवार में जन्म लेने के बाद चिकित्सा क्षेत्र की ओर रुझान होना वास्तव में कुछ हद तक असामान्य ही कहा जा सकता है। वास्तव में इस असामान्य स्थिति का कारण उनके बचपन की वह घटना रही जिसने उनका रुझान चिकित्सा क्षेत्र की ओर बढ़ा दिया।
जब डॉ. ईनानी मात्र 7-8 वर्ष के ही रहे होंगे तभी उनकी दोनों बहनों को बुखार आ गया। गांव में जो डॉक्टर आते थे, उनसे ही ईलाज करवाया। उन्होंने कम से कम दवा में मौसम्बी का रस व पानी पिलाकर उन्हें ठीक कर दिया। डॉक्टर साहब जब आते तो परिवार उनकी सेवा में हमेशा तैयार रहता।
डॉक्टर के प्रति यह विशिष्ट सम्मान देख उस अबोध उम्र में ही श्री ईनानी के मन में डॉक्टर बनने का सपना अंगड़ाई लेने लगा। 12 वर्ष की उम्र में उन्हें हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए शहर आ जाना पड़ा। पहले तो पढ़ाई में कुछ कमजोर थे लेकिन जब लक्ष्य डॉक्टर बनना बन गया तो उनकी पढ़ाई समर्पित भाव से चलने लगी।
वैष्णव विद्यालय से दसवीं उत्तीर्ण कर होल्कर कॉलेज से अच्छे अंकों से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया और फिर एमजीएम मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के लिए प्रवेश ले लिया। वर्ष 1964 में आपने अपनी एमबीबीएस की उपाधि पूर्ण की। इसी वर्ष आपका विवाह स्व. श्री छतरलाल फोफलिया इंदौर की पुत्री सुमित्रा देवी से हो गया।
आमतौर पर लोग एमबीबीएस जैसी उपाधि लेने के बाद प्राइवेट प्रैक्टिस कर पैसा कमाने में जुट जाते हैं, लेकिन डॉ. ईनानी ने ऐसा न करते हुए मानवता की सेवा के लिए सरकारी नौकरी करना ज्यादा उचित समझा।
ऐसे चली सेवा यात्रा:
डॉ. ईनानी की प्रथम पदस्थापना चिकित्सा अधिकारी के रूप में माहेश्वरी जिला खरगोन में हुई। मन में आगे और पढ़ने की इच्छा थी। वर्ष 1966 में शासकीय रूप से एक वर्ष के लिए बच्चों की चिकित्सा में विशेष प्रशिक्षण के लिए जेजे हॉस्पिटल मुंबई पहुंचाया गया। उनके मन में बाल रोग में एमडी करने की इच्छा अभी भी बाकी थी।
वर्ष 1969 में उनके यहाँ जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ और इसके कुछ समय बाद ही एमडी करने के लिए अपने सपने को साकार करने का अवसर भी मिला। वर्ष 1973 में डॉ. ईनानी ने शिशु रोग में एमडी की उपाधि प्राप्त की।
इसके पश्चात आगर जिला शाजापुर में पदस्थ हुए। इसके पश्चात थांदला जिला झाबुआ, उज्जैन, श्योपुरकलां, देवास, भोपाल (गैसराहत चिकित्सालय) आदि कई स्थानों पर सेवा देते हुए वर्ष 1996 में बैतूल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी नियुक्त हुए।
लगातार 36 वर्ष तक शासकीय चिकित्सालयों में सेवा देते हुए वर्ष 2000 में मुख्य चिकित्सा अधिकारी खरगोन के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
मानवता की सेवा को बनाया लक्ष्य:
वैसे तो डॉ. ईनानी अपनी सेवा भावना के कारण शासकीय सेवा में संलग्न हुए थे, लेकिन उनके साथ घटे एक वाकिये ने उनकी सेवा भावना को और भी अधिक मानवता के प्रति समर्पित कर दिया। शासकीय सेवा को प्रारंभ ही किया था कि प्रारंभिक वर्षों में ही आपके यहाँ बहुत कम वजन के जुड़वा बच्चों राम व श्याम का जन्म हुआ था।
हर कोई उनके जिंदा रहने की संभावना भी कम ही बता रहा था लेकिन ईश्वर कृपा से दोनों स्वस्थ हुए और आज दोनों ही डॉक्टर हैं। इस घटना ने उनका आर्थिक लाभ के प्रति पूर्णतः मोह भंग कर दिया।
उन्होंने कभी किसी रोगी से फीस की भी अपेक्षा नहीं की। 1974 में जब आगर में पदस्थ थे तब उन्होंने अपने स्तर पर क्षेत्र में बच्चों को नाममात्र के 2 रुपए शुल्क में पोलियो की दवा पिलाने की व्यवस्था की थी, जिसका आगर के आसपास क्षेत्रों में व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। उस समय शासकीय स्तर पर निःशुल्क दवा नहीं पिलाई जाती थी।
घटना जो बनी यादगार:
इसी प्रकार स्वयं डॉ. ईनानी अपना एक संस्मरण सुनाते हैं कि एक एक्साइज इंस्पेक्टर की पत्नी अत्यंत गंभीर स्थिति में थी, तो उन्होंने पति से पूछे बिना उसे बोतल चढ़ा दी।
बस इतने पर ही नशे में धूत पति इतना नाराज हुआ कि बंदूक लेकर ही अस्पताल जा पहुंचा। लेकिन उसके भय से भी उन्होंने उसका इलाज बंद नहीं किया। फिर अगले दिन जब उसे होश आया तो उसने पैर पड़कर माफी मांगी।
इसी प्रकार बैतूल में 5 दृष्टिहीन बच्चों का एनजीओ के माध्यम से ऑपरेशन करवाया। दृष्टि प्राप्त होने के बाद उनके चेहरे पर जो प्रसन्नता के भाव नजर आए, वे आज भी श्री ईनानी के लिये अविस्मरणीय तथा अनमोल हैं। बस उनके लिए तो यही पारिश्रमिक था।
वर्तमान में आप सेवानिवृत्त हैं और 80 वर्ष की ऐसी उम्र के पड़ाव पर हैं, जिसमें व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है, लेकिन डॉ. ईनानी की मानवता की सेवा की यात्रा अभी-भी जारी है।
वे घर आए रोगी तो ठीक फोन पर परामर्श मांगने वालों को भी निराश नहीं करते और वह भी पूर्णतः निःस्वार्थ भाव से। उनकी इस सेवा का शुल्क यदि कोई होता है, तो वह है सिर्फ मुस्कराहट जो स्वस्थ होने के बाद रोगी के चेहरे पर दिखाई देती है।
काम से चिकित्सक मन से गांधी:
महात्मा गांधी ने अपना सर्वस्व मानवता को समर्पित कर स्वयं मानवता के पुजारी बन गए थे। डॉ. ईनानी ने कभी गांधीवादी होने का दावा तो नहीं किया लेकिन कर्म “चिकित्सक” का रहते हुए भी मन कब ‘गांधी’ बन गया यह उन्हें भी पता न चला।
यह उनके मन का गांधी होने का परिचायक ही तो कहा जाएगा कि गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने रे कहिए, जो पीर पराई जाने रे’ आपको भी अत्यंत प्रिय है। आप भी इसे अक्सर गुनगुनाते रहते हैं। इसी प्रकार मीराबाई का भजन ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो’ भी आपको अत्यंत प्रिय है।
इसका कारण भी सांसारिक धन की अपेक्षा ईश्वर को महत्व देना तो है ही। इसके साथ ही इसका दूसरा कारण इसका अपने पिता-माता का नाम क्रमशः रामरतन का राम तथा रतनी देवी का रतन शब्द का समाहित होना भी है।