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खाली बटुए को भारी करने के सात नियम

वर्तमान इराक में प्राचीन काल में बेबीलोनिया बहुत उन्नत और समृद्ध राज्य था और बेबीलोन उसकी राजधानी थी। उस राज्य में धन कुछ ही व्यक्तियों के पास केंद्रित हो गया था और शेष अधिकांश लोग गरीब थे। अरकाद बेबीलोन का सबसे धनी व्यक्ति था।

उसने अपनी जीवन यात्रा गरीबी से प्रारंभ की थी। उसकी धनी बनने की प्रबल इच्छी थी। उसने धनी व्यक्तियों के कृत्यों और जीवन शैली को भली-भांति समझा और उसने धनी बनने के नियमों का पता लगाया।

उसने दृढ़ता से उन नियमों का पालन करते हुए अनथक परिश्रम किया और धनी बनने में सफलता पाई। बेबीलोनिया के शासक ने अरकाद को 100 व्यक्तियों को धनी बनाने के लिए प्रशिक्षित करने का दायित्व सौंपा। अरकाद ने उनको खाली बटुए को भरकर धनी बनने के सात नियमों का ज्ञान करवाया। पाठकों के लिए ये प्रस्तुत हैं।

पहला नियम-‘दस में से नौ सिक्के ही बटुए के बाहर निकालें’:

अपने बटुए को मोटा और भारी करना शुरू करें। अपनी आय के बटुए में डाले गए दस सिक्कों में से नौ सिक्के ही खर्च के लिए बाहर निकालें। यदि दस प्रतिशत आय बटुए में संगृहीत होती रहेगी तो बटुआ भारी होने लगेगा। बटुए में से जो सिक्के बाहर निकाले जाते हैं, उनसे तात्कालिक इच्छाएं पूरी होती हैं और बटुए में बचाए गए सिक्कों से दूरगामी इच्छाएं पूरी होती हैं। 

दूसरा नियम-खर्च को नियंत्रित करें:

इच्छाएं अनंत होती हैं और उन सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आय सदैव ही कम मालूम पड़ती है। अतः सभी इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं है। समझदारी इसी में है कि इच्छाओं को प्राथमिकता के क्रमानुसार लिख लिया जाए। तत्पश्चात बटुए से बाहर निकाले गए सिक्कों से ही उन इच्छाओं को पूरा करें। अनावश्यक खर्च कदापि न करें, मितव्ययी बनें। बजट खर्च को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

तीसरा नियम-बचाए गए धन को चक्रवृद्धि दर से बढ़ाएं:

बचत का निवेश उत्तम विकल्पों में किया जाना चाहिए। उससे जो प्रतिफल प्राप्त हो, उसका उपयोग घर खर्च में नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उसका भी निवेश कर दिया जाना चाहिए। इस विधि से अल्प धन राशि चक्रवृद्धि दर से बढ़ती हुई लंबी अवधि में बटुए को भारी बना देती है। निवेश के प्रतिफल का प्रवाह निरंतर बढ़ना चाहिए, तभी बटुआ भारी बनेगा और व्यक्ति धन संपन्न बनने की संतुष्टि प्राप्त करेगा। 

चौथा नियम-निवेश का सर्वप्रथम सिद्धांत है-मूलधन की सुरक्षा:

निवेश करने के पूर्व सावधानी से जांच पड़ताल की जानी चाहिए। किसी व्यक्ति को कर्ज देने के पूर्व उसकी कर्ज चुकाने की सामथ्र्य का आकलन भली-भांति किया जाना चाहिए और उसकी विश्वसनीयता का भी पता लगाया जाना चाहिए। शीघ्र धनी बनने की इच्छा और लोभ के वशीभूत होकर अपने मूलधन को गंवाने की जोखिम कदापि नहीं ली जाना चाहिए।

अति आत्मविश्वास से प्रेरित होकर अपनी पूंजी को ऐसे विकल्प में निवेश करने से बचें, जहां उसके डूबने का खतरा हो। धन के प्रबंधन में कुशल, परिपक्व और अनुभवी व्यक्तियों की समय-समय पर सलाह ली जाना चाहिए। उन्हें अपना गुुरु और पथ प्रदर्शक बनावें।

पांचवां नियम-अपने घर को लाभकारी निवेश बनाएं:

अरकाद ने प्रशिशुओं को बताया कि बेबीलोन में बहुत से लोग किराए के मकानों में रहते हैं। वे बहुत ऊंचा किराया चुका कर भी वांछित सुविधाएं नहीं पाते हैं। स्वयं का मकान होने की दृढ़इच्छा होनी चाहिए और इस हेतु निष्ठायुक्त प्रयत्न भी किए जाने चाहिए।

बटुए में सुरक्षित पूंजी स्वयं का मकान बनाने या खरीदने में बहुत मददगार होती है। इस प्रयोजन हेतु यदि स्वयं की पूंजी कम हो तो कर्ज लेने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए। धनी व्यक्ति मकान बनाने या खरीदने के लिए कर्ज देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं क्योंकि उनका उक्त निवेश पूर्णतया सुरक्षित होता है।

अतः मकान के लिए कर्ज बहुत आसानी से सुलभ हो जाता है। आज के संदर्भ में देखा जाए तो बैंक और वित्तीय संस्थाएं उचित यानी वाजिब ब्याज दर पर मकान बनाने या खरीदने वालों को लंबी अवधि के लिए ‘गृह ऋण’ उपलब्ध कराती हैं।

स्वयं का आवास व्यक्ति को आत्म संतुष्टि प्रदान करता है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा को भी बढ़ाता है। इससे उसका किराये में होने वाला खर्च बच जाता है और इस बचे हुए धन से वह अपनी अन्य इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है।

छठवां नियम- अपनी भावी आय सुनिश्चित करें:

व्यक्ति को युवावस्था में अपनी वृद्धावस्था के लिए पर्याप्त आय के साधन सुनिश्चित कर लेने चाहिए। यदि उसकी अकाल या अकस्मात् मृत्यु हो जावे तो उसके परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो सके, इसकी व्यवस्था भी उसे कर लेना चाहिए।

व्यक्ति अपनी नियमित बचत का उपयोग जमीन-जायदाद खरीदने में कर सकता है। इससे उसको न केवल नियमित आय होगी, बल्कि भविष्य में उसके मूल्य में भी वृद्धि होगी। नियमित रूप से बचायी गई धन राशि का सावधानीपूर्वक किया गया निवेश लंबे समय में वटवृक्ष की तरह फ़ैल जाता है। उसकी बढ़ी हुई दौलत उसके बुढ़ापे का सहारा बन जाती है और विपदा में उसके परिवार को सुरक्षित बना देती है।

सातवां नियम-अपनी आय की क्षमता बढ़ाएं:

अधिक कमाने की प्रबल इच्छा आय को बढ़ाने का नितांत आवश्यक गुण है। एकाग्रता और लगन से सतत प्रयास करने से आय की क्षमता बढ़ती है। व्यवसायी को कर्ज तभी लेना चाहिए, जब उसमें अतिरिक्त धन कमाने की क्षमता हो, जिससे वह अपना कर्ज ब्याज सहित शीघ्रता से चुका सके और साथ ही अपनी पूंजी को बढ़ा सके।

-प्रो. शिवरतन भूतड़ा, जोधपुर


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