पर्यावरण के सच्चे मित्र पक्षी
इधर-उधर चहकते तथा कतारबद्ध उड़ान भरते पक्षी शायद प्रकृति की सबसे सुन्दर कृति हैं, लेकिन ये न सिर्फ सुंदरता के लिए ही हैं, बल्कि पर्यावरण को संरक्षित रखने में भी एक सच्चे मित्र की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यदि यह कहें कि हम पर्यावरण बिगाड़ने की कोशिश करते हैं और ये सुधारने की तो अधिक उचित होगा। लेकिन ये सब कब तक?
अगर हम ध्यान से देखें तो पर्यावरण को संतुलित करने में पक्षियों का बहुत बड़ा योगदान है। सच कहें तो पयावरण और पक्षी एक-दूसरे के पूरक हैं। आप यह सोचें कि पृथ्वी पर हम जो कचरा पैदा कर रहे हैं, उसका पक्षी अलग-अलग तरीके से निराकरण कैसे कर रहे हैं तो आप स्वयं हैरान हो जाएंगे। वे अपना भरण-पोषण भी तरह तरह से करते आ रहे हैं।
वे पौधारोपण में मददगार हैं। यह सोच का विषय है कि नीम, बड़, पीपल, फर्न, खजूर, टेमरू के पौधे नदी, तालाब, बावड़ी, कुँए के किनारे कहाँ से आए? ये पक्षी ही अपनी बीट करके बारिश में पौधों को जन्म देते हैं। पहाड़ी पर कई पौधे इसी विधि से उत्पन्न होते हैं जो आगे चलकर जंगल का रूप ले लेते हैं।
पर्यावरण श्रृंखला की अहम कड़ी
विचार करें पर्यावरण एक लम्बी शृंखला में जुड़ा हुआ है, कुछ के बारे में हम अवश्य ध्यान दे सकते हैं, जैसे गिद्ध, मैना, ग्रीन बी ईटर, स्पेरो, एगरेटस, कौआ, चील आदि। इनका ध्यान से अध्ययन करें तो हैरत में पड़ जाएंगे। वे कैसे पेड़-पौधों के प्रसार में सहायक होते हैं।
जिनसे हमें अनाज, फल, फूल तो मिलते ही हैं, साथ ही शुद्ध हवा से जीवन बना रहता है। यहाँ यह उक्ति लागू होती है “जीवन जीवस्य भोजनम”।
बहुत से बड़े पेड़-पौधे जैसे बड़, पीपल के बीज पक्षियों के द्वारा ही पहाड़ों पर पहुँचते हैं तथा ताल, तलैया, नदी, बावड़ी पर ये पैदा होते हैं। यह उनकी बीट का प्रतिफल है।
अवशिष्ट का निराकरण
कीड़े-मकोड़े का भक्षण कर पक्षी पेट भरते हैं। ये कचरे एवं हमारे द्वारा जो भोजन के कण झूठन में छोड़ जाते हैं, उसे समेट लेते हैं। साथ ही मरे हुए जानवरों के मांस को भी अपना खाना बनाते हैं। पक्षी भी शाकाहार, मांसाहार तथा फूलों के रस पर जीवन पूरा करते हैं। कैसे मक्खी-मच्छर उनको भोजन बनाते हैं?
अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे की यह बड़ी श्रृंखला के रूप में संचालित होता रहता है। गिद्ध व चील समुदाय मानव की बड़ी सेवा करते हैं। चील बड़ी ऊँचाई ऊँचाई से मरे पशुओं की सूचना गिद्ध तक पहुँचाते हैं, और मरे हुए पशुओं को गिद्ध थोड़े ही समय में चट कर जाते हैं।
इस कार्य में मरे पशुओं की गंध से हम निजात पाते हैं। पर्यावरण स्वच्छ हो जाता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि दर्दनाशक दवाओं से पशु बड़ी संख्या में शहर व गाँवों में मरते हैं।
हम लोग उन मृत पशुओं को बस्ती के बाहर सड़क के किनारे डाल देते हैं और इससे पूरा वातावरण दूषित हो जाता है। इनसे मुक्ति देने में पक्षी ही अहम हैं।
कीट-पतंगों का एक मात्र समाधान
वातावरण में कीट-पतंगों की लगभग 30 हज़ार प्रजातियां आंकी गई है जो थोड़े से समय में दोगुनी हो जाती है। ये पेड़ों के पत्ते कुछ ही समय में दोगुनी हो जाती है। ये पेड़ों के पत्ते कुछ ही समय में सूखाने के लिए पर्याप्त है। ये सिर्फ पक्षियों के भोजन बनकर नष्ट हो कर ही नियंत्रित होते हैं।
वातावरण को स्वच्छ एवं प्राणदायी बनाए रखना है तो पक्षियों का होना हमारे लिए ईश्वरी देन है। आज हम पक्षियों के खत्म होने की समस्या से जूझ रहे हैं। लोग पानी के बर्तन संस्थागत बाँट रहे हैं, लेकिन यह प्रयास व्यापक स्तर पर करने की जरुरत है।
वे पेड़-पौधे देकर स्वच्छ वातावरण व प्राण वायु दे रहे हैं। निश्चित ही पक्षी पर्यावरण संतुलन में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
हर मोड़ पर पक्षी परम मित्र
मैना के बारे में आपने देखा होगा कि जब भंडारा होता है या विवाह की झूठन पड़ी है, वे वहां पहुँच जाती है। रेलवे प्लेटफार्म के ऊपर मैना के समूह को बसेरा करते देखा होगा जो यात्रियों द्वारा फेंकी हुई झूठन से पेट भर्ती हैं तथा वातावरण साफ करती है।
घरों में अनाज में दाल, रवा, चावल में धुन हो जाए या इल्ली का प्रकोप को जाए तो वे उन्हें मौका पाते ही साफ कर देती हैं। वैसे ही बगुलों को गाय या चरते हुए जानवर की पीठ पर बैठे हुए देखा होगा जमीन पर जानवर के चलते कीड़े-मकोड़े जमीन पर आ जाते हैं। बगुला उसे अपना भोजन बना लेते हैं।
वैसे ही ग्रीन बीईटर अपने मौसम में बिजली के तारों से उड़कर हवा में कीट पतंगे पकड़ लेता है। बारिश के दिनों में बिजली के खम्भों के नीचे पतंगों की शाम को भीड़ लग जाती है। सुबह देखेंगे सिर्फ वहां परों के डेर दिखेंगे, पक्षी उनकी देह से पेट भरते हैं।
अगर कठफोड़ा की ओर देखें तो वह अपनी पेनी चोंच से वृक्ष के बाहरी आवरण पर सुराख बना नीचे बैठ कीड़े-मकोड़ों को चट कर जाता है व पेड़ सूखने से बच जाता है।