भौरे से सीखे कैसे जिया जाए जीवन
देश हो, समाज हो या फिर परिवार की ही बात क्यों न हो, असली त्याग तब होता है, जब आप यह जान लेते है की हमारा कुछ भी नहीं है। मनुष्य जब इस भाव से जुड़ता है, तब त्याग घटता है। लोग संसार छोड़ने की बात करते हैं,
लेकिन गहराई में देखा जाए तो संसार हमारा है ही कहाँ, जिसे हम छोड़ेंगे?भौरे से सीखे कैसे जिया जाए जीवन, यदि इसे समझ लेंगे तो संसार में रहने का मज़ा ही बदल जाएगा।
गौतम बुद्ध ने एक बड़ी सुन्दर बात कही है- जिस प्रकार भंवरा फूल और उसकी गंध को नुकसान पहुंचाए बिना उसका रस ले लेता है वैसे ही हमारे मुनिगण गाँव में भिक्षाटन करें। बात बहुत बढ़िया है। वास्तव में जैसे भंवरा बिना कोई नुकसान किए रस लेकर चल देता है, वैसे ही हम ज़िन्दगी को बिना कोई हानि पहुंचाए जीवन को जी लें। यह अहिंसा का उदाहरण है।
हम रस तो ले सकते हैं पर किसी को नुकसान पहुंचाने के अधिकार नहीं है। अहिंसा का ऐसा भाव जीवन में आते ही अशांति चली जाएगी। बुद्ध समझा रहें हैं, जीवन हमे जो भी रस दे उसको ले लिया जाए और धन्यवाद दे दिया जाए। कहीं ऐसे भँवरे न बन जाएं जो रस चूसने में इतने मशगूल हो जाते हैं की उड़ना ही भूल जाते हैं और शाम को जब कमल के फूलों की पंखुरियाँ बंद हो जाती है, तो उसी में कैद हो जाते हैं।
बस दुनिया में यही हमारी ज़िन्दगी का उसूल हो जाए। यह दुनिया हमारे लिए कारागृह नहीं बन जाए। रस लें और आभार दें, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मुक्त हो जाए। मामला राष्ट्र का हो, समाज का या परिवार का, हम भँवरे की तरह फूल को बिना नुकसान पहुंचाए इनसे मिलने वाले आनंद की रसानुभूमि कर सकते हैं।
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