क्या समाजसेवा के लिए जरुरी है पद?
अक्सर समाज में देखा जाता है कि जब समाजजन संगठन के किसी पद पर आसीन होते हैं, तब सक्रियता से कार्य करते हैं और पद से हटते ही निष्क्रिय हो जाते हैं। ऐसे में यह विचारणीय हो गया है कि क्या समाजसेवा के लिए जरुरी है पद?
आखिर वे पद पर रहते हुए तो काम कर सकते हैं, लेकिन पद के बिना नहीं, ऐसा क्यों? क्या बिना पद के सेवा करने में बाधा उत्पन्न होती है? क्या बिना पद के समाजसेवा नहीं हो सकती अथवा नहीं की जा सकती? आखिर ऐसा होता है तो क्यों?
क्या हम पद पर न रहते हैं तो अपने सामाजिक कर्तव्य भूल जाते हैं? अथवा हम बिना पद प्रतिष्ठा के समाजसेवा करना ही नहीं चाहते? आइये जानें समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।
सेवा के उच्च मापदंड हेतु पद जरूरी
श्यामसुन्दर जेठा, जबलपुर
यदि समाजसेवा के उच्च मापदंड स्थापित करना हों तो निःसंकोच समाजसेवा के लिये पद जरूरी है। बिना पद सेवा सीमित ही हो सकती है। बिना पद और पद के साथ समाज सेवा में वही अंतर है जो सड़क पर चलते हुये बांसुरी बजाने और मंच पर बांसुरी बजाने वाले में होता है।
पद पर रहते हुये सैकड़ों आँखे, सैकड़ों कान आपके कार्य को देखते और सुनते हैं, इसलिये समाजसेवा का कार्य समयबद्ध और व्यवस्थित होता है। एक बार पद पर आने के बाद जो सक्रियता आती है वह हमेशा किसी ना किसी रूप में बरकरार रहती है।
समाजसेवा निरन्तर एवं सुचारू रूप से जारी रहे उसके लिए आवश्यक है, हमारा व्यक्तित्व नेतृत्व अहंकारविहीन, सहनशील, निष्पक्ष एवं सामंजस्य के साथ काम करने वाला हो। दो अक्षर और दो मात्रा से बने सेवा शब्द के समुन्दर में हर कोई गोता लगाकर भवसागर को पार करने की जुगत में लगा हुआ है। पद पर रहते ठीक से सेवा नहीं की तो सागर में डूबने यानि छवि खराब होने के पूरे चांस होते है।
सेवा में पद-प्रतिष्ठा की लालसा नहीं
भरत काबरा, छिंदवाड़ा
दिल में लगन, मन में भाव, दिमाग में एहसास और संतुष्टि पाने की चाहत हो तो कदम अपने आप आगे बढ़ते जाते हैं। सार्थक भी तभी होते हैं जब न कोई तमन्ना हो प्रशंसा पाने की न कोई स्वप्रचार या स्वार्थ हो ना ही कोई वाहवाही या दूसरों को दिखाने की लालसा हो। पुण्याई या परोपकार की लालसा मन में हो न कि पद की जरूरत है, न ही किसी मान-सम्मान की।
यदि सिर्फ समाज सेवा की खातिर पद की लालसा है तो आप कार्य कर ही नहीं सकते वरन् समाज को गलत दिशा भी दे सकते हैं। जब समाज को पद के माध्यम से सीमित समय के लिए ही समाज सेवा करना हो तो आप कुछ न करें वही ठीक है। पद पर रहकर बहुत से बंधन ‘लेकिन’ ‘किंतु’ ‘परंतु’ के भी होते हैं जहां वह बंधनों में बंधकर खुले दिल से यह कार्य निस्वार्थ भाव से कर सकने में अपने आप को असहज महसूस करते हैं।
अतः ध्येय यही होना चाहिए कि औरों को आगे बढ़ाने में पर्दे के पीछे भी रहकर बिना पद के भी आप समाज सेवा का कार्य बखूबी कर सकते हैं।
पद नहीं इच्छाशक्ति जरूरी
संजीव सोमानी, भोपाल
सेवा शब्द ही अपने आप में यह दर्शाता है कि वह किसी का मोहताज नहीं है। अत: हमारे यहां कहा जाता है निस्वार्थ सेवा कीजिये । सेवा के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। यह अनुभव अभी अभी कोरोना काल में पिछले डेढ़ वर्ष में अनुभव किया है।
हमने देखा कि लोगों ने तन, मन, धन, लगन से नि:स्वार्थ सेवा की है। जिसके लिए उन्हें किसी पद की आवश्यकता नहीं पड़ी, जिससे जो भी बन पड़ा उसने वह नि:स्वार्थ सेवा की। इसी तरह हम सिख समाज को भी वर्षों से देखते आ रहे हैं कि वे गुरुद्वारे में किस तरह से अपनी सेवाएं देते हैं,वहाँ छोटा-बड़ा,गरीब-अमीर किसी तरह के भेद बिना कार सेवा द्वारा झूठे बर्तन धोने, जूते-चप्पल साफ करने तक कि सेवाएं देते हैं।
यह हमारे मन का भ्रम है कि सेवा के लिए पद की आवश्यकता होती है,मेरा मानना है कि सेवा के लिए किसी पद की आवश्यकता नहीं है। हमारे मन में सेवा भाव और दृढ़ इच्छाशक्ति होने से ही सेवा की जा सकती है। इसके लिए पद की कोई भी आवश्यकता नहीं है और समाज सेवा में तो बिल्कुल भी नहीं है।
नि:स्वार्थ सेवा ही सच्ची समाजसेवा
रमेशचंद्र माहेश्वरी, बिजनौर
मेरा उपर्युक्त विषय में बिल्कुल स्पष्ट अभिमत है कि समाजसेवा के लिए पद का होना आवश्यक नहीं। सच्ची समाज सेवा वही है कि जिस में प्रदर्शन न हो और दूर दूर तक कोई स्वार्थ न हो। यह बात दीगर है कि पद प्राप्त व्यक्ति को कुछ विशेष अधिकार अवश्य प्राप्त हो जाते हैं। किन्तु जिस व्यक्ति/ समूह में सच्ची समाज सेवा का जज्बा होता है वह कभी पद मिलने की महत्वाकांक्षा नहीं रखता।
पद मिलने के पीछे लोकेषणा का भाव व्यक्ति की मानसिकता में प्रछन्न रूप से अवश्य रहता है, ऐसा मेरा मानना है। किन्तु जिनकी मानसिकता में समाज सेवा का विशुद्ध भाव रहता है वह बिना पद,बिना प्रचार के भी समाज सेवा में रत रहता है।
ऐसे सैकड़ों सैकड़ों उदाहरण हैं जो बिना पद के गोपनीय रूप से समाज सेवा करते आये है और आज भी कर रहे हैं, समाज सेवा को भी प्रभु सेवा मान कर।
सेवा के लिये अंतर्मन से लगन जरूरी
रामगोपाल मूंदड़ा, सूरत
वास्तव में देखा जाऐ तो समाजसेवा के लिए पद की बजाए अंतर्मन से लगन होना जरूरी है। इसके लिये जरूरी है कि हम पद पर रहें या न रहें लेकिन समाजसेवा में प्रसन्नता जरूर हो और इसे समाज के प्रति कर्त्तव्य मानकर किया जाऐ।
समाज के लिये कुछ करने का जज्बा हो। जब समाजसेवा की सच्ची भावना होगी तो ही सच्ची समाजसेवा हो सकती है, चाहे हम पद पर रहें अथवा नहीं। समाज में वर्तमान में कभी कई ऐसे लोग हैं, जो बिना किसी पद के भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
यह उसी का प्रमाण है कि समाजसेवा के लिए पद नहीं बल्कि सेवा भावना जरूरी है। पद से तो जिम्मेदारी बढ़ती है और जिम्मेदारी बढ़ने से समाजसेवा के स्तर में अवश्य सुधार होता है लेकिन ऐसा नहीं कि उसके बिना यह सम्भव नहीं।