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अंतर्जातीय समाज में पुत्र-पुत्रियों का विवाह उचित अथवा अनुचित?

पढ़ाई और कैरियर की बढ़ती प्राथमिकता के कारण हमें अपने समाज में विवाह योग्य लड़के और लड़कियों का अभाव नजर आ रहा है और दूसरे समाज के लड़के और लड़कियाँ सहज ही बेझिझक पसन्द आ रहे हैं। हमारे माहेश्वरी समाज में शिक्षित और सुयोग्य लड़के और लड़कियों की कोई कमी नहीं है, पर दूसरों की थाली खुद की थाली से अधिक भरी नजर आ रही है। एक ओर माहेश्वरी बेटियों का दूसरे समाज में विवाह होने से माहेश्वरियों की संख्या पर असर पड़ने लगा है, जो एक चिंताजनक विषय है। दूसरी ओर माता-पिता भी बच्चों की बढ़ती उम्र को देखते हुए न चाहते हुए भी दूसरे समाज में बच्चों का विवाह कर रहे हैं।

ऐसे में यह विचारणीय हो गया है कि अपने बच्चों के विवाह दूसरे समाज में करना उचित है अथवा अनुचित? उक्त विषय वर्तमान में समाज का एक ज्वलंत विषय है। इससे समाज का भविष्य जुड़ा है तो समाज की युवा पीढ़ी का जीवन भी।आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


अपने समाज के लड़के-लड़कियों को अपनाएं
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हमारे बच्चों का विवाह हमारे अपने समाज में ही हो। ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में पढ़े-लिखे लड़के-लड़कियों की कमी है, आवश्यकता है तो धीरज के साथ खोजबीन करने की। बच्चे जब शिक्षा और करियर के अंतिम पड़ाव पर हों तभी उनकी पसंद-नापसंद के अनुरूप उनके लिए योग्य जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दें तो हमें इस कार्य के लिए पर्याप्त समय मिलेगा, क्योंकि अगर बच्चों के करियर बनाने और दो-चार साल अनुभव हासिल करने के बाद उनके लिए जीवनसाथी की तलाश शुरू करते हैं तो उनकी उम्र युवावस्था से आगे बढ़ चुकी होती है और ऐसे में न चाहते हुए भी जो सजातीय या विजातीय रिश्ता पसंद आता है वही तय करना पड़ता है।

आजकल तो बच्चों के युवावस्था में कदम रखने के साथ ही कुछ खुले विचारधारा वाले माता-पिता तो बड़े स्पष्ट शब्दों में बच्चों से कह देते हैं कि अगर कोई जीवनसाथी के रूप में पसन्द हो तो निसंकोच बता देना हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। इतना ही नहीं बच्चों के बॉयोडाटा में भी एक पंक्ति विशेष जोड़ने लगे हैं ‘सभी समाज स्वीकार्य’। क्या यह सब समाज के हित में उचित है अथवा अनुचित?

बच्चों की खुशी के लिए प्रेमविवाह को सहमति देकर रिश्ते को स्वीकार कर लेना अब साधारण बात लगती है, चाहे वह प्रेमविवाह सजातीय हो या विजातीय। लेकिन माता-पिता या परिवार द्वारा विजातीय समाज में संबंध ढूंढने की पहल करना उचित नहीं है। माहेश्वरी जनसंख्या साल दर साल घटती जा रही है ऐसे में अच्छे लड़के और लड़की पाने के चक्कर में बेहिचक अंतर्जातीय वैवाहिक रिश्ते जोड़ने में सहयोगी ना बनें, वरन अपने ही समाज के लड़के और लड़कियों को अपनाएं। माहेश्वरी समाज की संस्कृति और संस्कार को अक्षुण्ण रखने के लिए भी यह अतिआवश्यक है।


अन्तर्जातीय विवाह मजबूरी
बद्रीलाल आगार, मनासा

रिश्तेदारों व समाज बंधुओं में इन वर्षों में समन्वय की कमी (अनेक कारणों से) व वास्तविकता से परे अरमान, बड़ी डिग्री व बड़ा पैकेज भी अंतरजातीय विवाह के कारण बन रहे हैं। शिक्षा वैसे समस्या नहीं होती लेकिन हमारे समाज पर इसका विपरीत प्रभाव हुआ है। अब लड़का आईआईटी से, बड़ा पैकेज, लड़की डॉक्टर है तो ऐसी परिस्थितियों में मां बाप भी लाचार हो जाते हैं।

ऐसे मामलों में तो विवाह की उम्र कब पीछे छूट जाती है और कब समझौते की स्थिति बन जाती है, पता ही नहीं चलता। मेरी नजर में जितने भी देश में बड़े शिक्षा के केंद्र हैं वहां समाज द्वारा संचालित होस्टल बने, जिसमें लड़के-लड़कियों के लिये एक ही कैंपस में अलग-अलग न्यूनतम दरों पर रहने की व्यवस्था हो। वहां निरंतर सामाजिक गतिविधियां होती रहें तो काफी हद तक अंतरजातीय विवाह को कम किया जा सकता है।


समाज में ही करें शादी
जय बजाज, इंदौर

एक जमाना था, जब हमारे बुजुर्ग अपने बच्चों के विवाह संबंधी चर्चा में एक, दो नहीं, बल्कि पूरे चार गौत्रों स्वयं, मामा, मां के मामा और पिता के मामा से लेकर जन्म पत्रिका तक का मिलान करते थे। धीरे धीरे समय बदला और फिर केवल दो गौत्र (स्वयं और मामा) से संबंध तय होने लगे। यहां तक तो फिर भी ठीक था लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब बच्चे अपने समाज को छोड़कर, दूसरे समाजों में विवाह कर रहे हैं।

परिणामस्वरूप समाज की जनसंख्या घट रही है। ऐसे अंतर्जातीय विवाह पर अभिभावकों को बच्चों की खुशी के लिए ‘हां’ करना पड़ती है। मुझे याद आ रहा है, एक बार किसी संत-महात्मा ने माहेश्वरी समाज की घटती हुई जनसंख्या के संदर्भ में आगाह किया था। शायद उनका इशारा समाज के बच्चों का विवाह समाज में ही करने की ओर रहा होगा। लेकिन आज समाज की इस ज्वलंत समस्या को विवाह योग्य बच्चे बड़ी आसानी से ‘नौ दो ग्यारह’ कर सकते हैं।


अंतर्जातीय विवाह गैर जिम्मेदाराना निर्णय
कृष्ण गोपाल ईनाणी, भीलवाड़ा

अंतर्जातीय समाज में पुत्र-पुत्री का विवाह करना घोर निराशाजनक एवं गैर जिम्मेदाराना रवैया हैं। कुछ समाजजन का विचार है कि समाज में योग्य युवक-युवतियों की कमी है, यह भ्रामक है। अंतर्जातीय विवाह के लिये सबसे जिम्मेदार पक्ष युवक-युवती है। माता-पिता की इच्छा व पसन्द के विपरीत अन्य जाति के लड़के व लड़कियों को पसन्द करना व उनसे शादी का प्रोमिस कर लेना स्वयं, परिवार व समाज के प्रति विश्वासघात एवं अन्याय है।

माहेश्वरी समाज सबसे धनी व बुद्धिमान की श्रेणी में आता है, जिस पर भगवान महेश व पार्वती का पूर्ण आशीर्वाद है। माहेश्वरी कोई जाति नहीं यह तो एक उच्च विचार व सोच का समूह हैं, जो न केवल स्वयं के व समाज के प्रति बल्कि अन्य जगह भी अपनी जिम्मेदारी समझता है। माहेश्वरी समाज ने अपनी पहचान व ख्याति अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाये रखी है।

हमें अपनी संस्कृति, समाज की घटती जनसंख्या को बचाना है, तो अंतर्जातीय विवाह का विचार छोड़ देना स्वयं, परिवार, समाज के हित में है। माता-पिता को भी चाहिये यदि पुत्र-पुत्री को कॅरियर बनाना है तो उच्च शिक्षा भी जरूरी है परन्तु शिक्षा समाप्त होते ही व जॉब लगते ही शादी कर देना चाहिये। माता पिता को अन्य समाज में शादी वाले युवक-युवती के दोषों पर चर्चा करनी चाहिये।


परिस्थितियाँ करवाती हैं अंतर्जातीय विवाह
गोविन्द सोमाणी, हैदराबाद

किसी भी परिवार में कोई स्वयं होकर अंतरजातीय विवाह को राज़ी नही होता, परिस्थितियां उसे राज़ी करवा लेती हैं। आज के समय में यह उचित है। मध्यमवर्गीय परिवार में कोई लड़की ब्याहने को तैयार नही है। सभी को महानगर-एकल परिवार-उच्च वेतन वाला ही सुंदर लड़का चाहिए। हमारे परिवार का भी ऐसी परिस्थितियों से सामना हुआ है। वर्ष 2006 में मेरे छोटे जुड़वा भाइयों के लिए परिवार के सभी रिश्तेदारों की चोखट पर जाकर आए, कुबेर की थोड़ी कृपा कम थी, हमें सभी जगह से निराशा ही मिली।

भाइयों की बढ़ती उम्र देख कर अंतर्जातीय विवाह का निर्णय लिया। प्रभु कृपा से दो महाराष्ट्रीयन बहनें मिली। ज़ोरदार विवाह के पश्चात हैदराबाद में स्वागत समारोह किया। समाज से कोई बात नही छिपाई। दोनों आज 17 वर्ष से 20 सदस्यो के संयुक्त परिवार में साथ रहती हैं। दोनों बेटों के भी अंतर्जातीय विवाह हुए। दोनो विवाह बहुत बढ़िया से सम्पन्न कराए। हमने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक मान्यता दी।

उन्होंने मेरे परिवार को प्रेम पूर्वक अपनाया। अपने सभी त्योहार-रीति रिवाज उनको संयम से सिखाये। आज सभी बहुओं का वेष भूषा व मारवाड़ी भाषा पर प्रभुत्व है। बड़ी बहू अमेरिका में बैंक में तो छोटी बहू पुणे में आइटी कम्पनी में कार्यरत है। घर में अपनी संतानो के साथ सभी मारवाड़ी में बातचीत करते हैं। सभी के कार्यरत रहने से परिवार का आर्थिक ग्राफ़ भी काफ़ी सुधरा है।


समाज में विवाह ही सर्वोत्तम
श्रीकांत बागड़ी, मुम्बई

सबसे पहले ये समझना होगा कि विभिन्न समाजों के निर्माण का इतिहास क्या है? माहेश्वरी समाज का इतिहास व परंपरा क्या है? एक समान विचारधारा, एक समान रीति रिवाज, एक जैसा खान-पान, एक जैसा परिवेश, पहनावा व परम्परा, एक जैसे गीत, एक जैसी संस्कृति, एक जैसी भाषा…. इत्यादि ये होती है, सामाजिक व्यवस्था। एक शांतिपूर्ण, एक परम्परा युक्त जीवन जीने के लिए, एक जैसी विचारधारा आवश्यक है।

अतः विवाह, यानी दो परिवारों का मिलन, एक ही समाज मे हो, तो अति उत्तम होता है। वैसे आध्यात्मिक दृष्टि से, मानव मात्र एक है, लेकिन विभिन्न जातियां, अनेकता में एकता दर्शाती हैं। मनुष्य कितनी भी तरक्की कर ले, जातियों का बन्धन ही उसे विकसित मानव बनाता है। वैवाहिक युगल की विचारधारा अलग हो सकती है, ये स्वाभाविक है, लेकिन सामाजिक संस्कृति उन्हें एक रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जीवन मे किसी तरह की ऊंच-नीच में सामाजिक सहयोग परिस्थिति से उबरने में सहायता प्रदान करता है। एक समाज के युगल होने से उत्सवों में आनंद द्विगुणित हो जाता है। ऐसे अनेक कारण हैं, इसलिए माहेश्वरी समाज में ही, बच्चों का वैवाहिक संबंध उचित है, एवम सर्वोत्तम भी है।



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