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क्या विवाह के लिए लड़की का अपना कैरियर बाधक होता है?

आजकल लड़कों से अधिक लड़कियां शिक्षित हैं। अपने कैरियर के प्रति सजग एवं गंभीर है। कड़ी मेहनत के बाद अपने लक्ष्य को हासिल करती है पर कभी-कभी योग्य घर-वर पाने के लिए लड़की को अपना कैरियर भी छोड़ना पड़ता है। अर्थात् अगर लड़की सैलरी और पद में लड़के से अधिक काबिल हो तो उसे अपने कैरियर से इतिश्री करनी पड़ती है। यह भी एक वजह है कि माहेश्वरी लड़कियां अंतरजातीय विवाह करने से परहेज नहीं करती क्यूंकि उसमें लड़की के बराबरी का लड़का आसानी से मिल जाता है और उसे अपने कैरियर के साथ भी समझौता नहीं करना पड़ता है। आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।

क्या लड़की के लड़के से अधिक काबिल होने से भावी दाम्पत्य जीवन में अड़चन पैदा हो सकती है? क्या विवाह के लिए लड़की का अपना कैरियर बाधक होता है? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


हाथी के दांत दिखाने के अलग और खाने के अलग
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

पढ़-लिखकर अपने कॅरियर के लिए सजग रहना भी लड़कियों के विवाह में अड़चने पैदा कर देता है। आजकल लड़कों के अनुपात में लड़कियां पढ़-लिखकर अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-जान से लगी रहती है और सफल भी होती है। यही कारण है कि विवाह के लिए लड़की को उसके बराबरी का अथवा उससे अधिक शिक्षित और पैकेज वाला लड़का मिलना मुश्किल हो जाता है।

लड़की भी खुद से कमतर लड़के से विवाह करने के लिए हामी नहीं भरती और धीरे-धीरे विवाह की उम्र निकलने लगती है। लड़के भी खुद से अधिक कमाऊ और काबिल लड़की के साथ रिश्ता नहीं जोड़ना चाहते हैं। ऐसे में बढ़ती उम्र के साथ अंतरजातीय विवाह की तरफ कदम बढ़ जाते हैं जहां उनको अपने कॅरियर से समझौता किये बिना विवाह के लिए बराबरी के लड़के मिल जाते हैं या फिर अपने ही समाज में विवाह करने के लिए उन्हें अपने कॅरियर से समझौता करना पड़ता है।

आखिर क्यूँ लड़कों को अपने जीवनसाथी का अधिक पढ़-लिखकर सफल होना अखरता है? क्यूँ लड़की भी खुद से कमतर लड़कों का जीवनसाथी के रूप में चयन नहीं कर पाती? आचार, विचार, संस्कार और व्यवहार के स्थान पर पैकेज और डिग्री विवाह में महत्वपूर्ण क्यूँ हो गई है?

दरअसल यह एक आधुनिक और शिक्षित लड़के/लड़की की सोच नहीं है; यह एक संकुचित सामाजिक सोच है जो समय के साथ परिवर्तित होती नजर आती है पर वास्तव में होती नहीं है। इससे हमारी पढ़ी-लिखी आधुनिक पीढ़ी भी अछूती नहीं रह पाती जैसे हाथी के दांत दिखाने और खाने के अलग-अलग होते हैं।


नारी का भी हो सही मूल्यांकन
डॉ कमल काबरा, मलकापुर

आज कल लडकियों की पढाई में रूचि बहुत बढ़ गई है। बहुत-सी लड़कियां उच्च शिक्षा लेने की इच्छा रखती है और जी जान से कोशिश भी करती हैं। माँ बाप के घर अनुकूल वातावरण तो मिल ही जाता है। ना मिला तो भी वे समस्याओं से लड़कर शिक्षा पा लेती हैं। ऐसे में उनका जॉब करना, अपने ज्ञान का समाज के लिये और संपत्ति अर्जन के लिए उपयोग की इच्छा रखना जायज है।

परिवार की मजबूरी हो जाती है कि लायक, उच्च शिक्षित, उससे ज़्यादा कमाने वाला, अमीर, छोटे परिवार वाला लड़का मिलना कठिन हो जाता है और उन्हें मजबूरी से अंतरजातीय विवाह को मान्यता देनी पड़ती है। ऐसे में हम लड़की को दोष क्यों दें? हमारे समाज की धारणा (माईंड सेट) इस प्रकार की क्यों है कि लड़का लड़की से ज़्यादा पढ़ा लिखा, ज्यादा कमाने वाला, गाडी बंगले वाला, छोटे परिवार वाला ही हमें क्यों चाहिये?

इससे हमारे मन में ये धारणा होती है कि लड़का लड़की से अर्थात पुरुष स्त्री से श्रेष्ठ हो, क्यों दोनों बराबरी के नहीं हो सकते? क्यों लड़की को श्रेष्ठ नहीं माना जाता? लड़का और लड़की के अभिभावकों को उन्हें खुद का और दूसरों का मूल्यांकन योग्य रीति से करना सीखाना चाहिये। अन्यथा उनका स्वाभिमान गर्व में बदलेगा और दूसरों को तुच्छ समझने लगेंगे फिर। किसी से भी ताल मेल नहीं रख पायेंगे। फिर किसी से भी वह विवाह कर ले, तलाक से उसकी नजदीकी ज़रूर रहेगी।


कॅरियर नहीं इगो बाधक
साधना राठी, गुवाहाटी

आजकल लड़का-लड़की दोनों की ही शिक्षा समान रूप से होती है पर लड़कियाँ अपने कैरियर पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देती हैं। इसलिए लड़के से ज्यादा काबिल बन जाती हैं। रही विवाह के बाद लड़कियों की कैरियर से समझौता करने या छोड़ने की बात तो दोनों परिपक्व होने के बाद सूझ-बूझ से सोच समझकर निर्णय लेकर विवाह बंधन में बँधते हैं, इसलिए उनका कैरियर बाधक नहीं बनता।

‘साथ भी न छूटे, रिश्ते भी न टूटें’, इसलिए कभी-कभी अंतरजातीय विवाह भी होते हैं। लड़की ज्यादा कमा भी रही है तो फर्क नहीं पड़ता। दोनों एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाते हुये आगे बढ़ते हैं। मेरे विचार में लड़की के ऊँचे पद पर आसीन होने या अधिक वेतन होने से दाम्पत्य जीवन में अड़चनें नहीं आतीं, संबंध तो तब टूटते हैं जब दोनों के बीच इगो आ जाता है।


विवाह नहीं बाधक
शिव नारायण आगाल, उदयपुर (राजस्थान)

प्रकृति की यह सृष्टि युगल सृष्टि कहलाती है और सृष्टि के सृजन के लिए स्त्री-पुरुष का एक होना आवश्यक है। यह भी सही है कि पुरुष की शक्ति के रूप में ही स्त्री कार्य करती है। सृष्टि के विकास में पुरुष प्रसवधर्मा है तो स्त्री ‘संस्थान धर्मा’ धारण-पोषण करने वाली। विवाह के लिए क्या लड़की का कैरियर बाधक होता है, विषय पर मेरी दृष्टि में अगर विवाह नहीं होगा तो इस विश्व का विकास कैसे सम्भव होगा?

यह सत्य है कि इस पुरुष प्रधान समाज में आज लड़की जाग्रत होकर उच्च शिक्षा ग्रहण करती हुई अपने कैरियर के प्रति अधिक सजग हो रही है। वर्तमान में अनेक योग्यताएं हासिल कर सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं रक्षा आदि क्षेत्रों में उच्च पदों को सुशोभित करती कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही है लेकिन लडकियों के कैरियर में विवाह करना बाधक नहीं है।

आवश्यकता है सामंजस्य की। पति को भी विवाह के बाद छोटे मोटे कार्य में हाथ बटाना चाहिए साथ ही परिवार जनो का सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार भी होना चाहिए। बात बात पर पत्नी को रोकना-टोकना नहीं चाहिए।


कॅरियर और विवाह दोनों अलग-अलग अवयव
यदुनंदन जाजू, भोपाल

यदि लड़कियां यह सोच ले कि कैरियर और विवाह दोनों जीवन के अलग-अलग अवयव हैं। अत: जरूरी नहीं है कि कॅरियर विवाह में बाधक बने या विवाह कॅरियर में बाधक बने। वास्तव में यह सब कुछ हमारी सोच समझ पर निर्भर करता है। विवाह के पश्चात यदि पति व ससुराल पक्ष लड़की के कॅरियर के लिए तैयार हैं तो विवाह शीघ्र कर देना चाहिए।

इसमें किसी भी प्रकार का भय रखना नासमझी है। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां विवाह के पश्चात लड़कियों ने सीए किया, आईएएस किया, एमबीए किया, पीएचडी किया। विवाह में विलंब जीवन के स्वर्णमयी समय को बर्बाद करना होता है। अत: यदि ससुराल पक्ष बहू के कॅरियर में सहयोगी बनता है, तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।

इससे न तो विवाह में देरी होगी और न ही कॅरियर में बाधा बल्कि दोनों साथ-साथ सहयोगी होंगे। इसके साथ ही इस सहयोग से दाम्पत्य जीवन के रिश्तों में और अधिक मजबूती आऐगी वह अलग।



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